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आज़ादी के ६४ वें वर्ष में पहुँच आज हम हर्षित हैं, उल्लासित हैं,चहुँ और धूम मची है .स्वाभाविक है,आखिर इतना कठिन संघर्षं कर अपने वीरों का बलिदान देकर,,गोरों के अत्याचारों से मुक्त हो सके थे हम.ख़ुशी मानना हमारा अधिकार है. आज हम आज़ाद हैं अराजकता मचाने के लिए, कुछ भी अनर्गल प्रलाप के लिए,अपने गरीब राष्ट्र की संपत्ति का विनाश करने के लिए,गद्दी हाथ आते ही अपनी तिजोरी भरने के लिए,नारीशक्ति के अपमान के लिए,अपना स्वाभिमान गिरवी रखने के लिए,अपने राष्ट्रीय संसाधनों का दुरूपयोग करने के लिए, अपने उन महापुरुषों का अपमान करने के लिए जिनके बलिदानों से आज हम मुक्त हैं.अधिक क्या कहना, हम प्रत्येक उस कार्य
करने को आज़ाद हैं जिससे हमारा अपना हितसाधन होता हो.
परन्तु जिस भारतमाता का यदाकदा नाम लेकर आज हम इतनी मनमानी करने को स्वतंत्र हैं उसकी चिंता किसी को नहीं.कहाँ लुप्त हो गया हमारा राष्ट्रप्रेम,देश के लिए मर मिटने का जोश कहाँ खो गया?क्यों आज हम “स्व” पर केन्द्रित हो कर रह गए?”क्यों आज भी हमारे देश में लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलता ,१००० में से २५० देशवासी भूखे सोने को विवश हैं,आज भी हमारे सूदूर स्थानों पर बिजली,पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैंआज भी हमारे नन्हें मुन्ने या स्कूल नहीं जा पाते या प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने से पूर्व ही स्कूल छोड़ देते हैं,आज भी हमारे अस्पतालों में समुचित उपचार के अभाव में दम तोड़ने को मजबूर हैं रोगग्रस्त सुविधाहीन जन………
अपने देश की मलिन तस्वीर प्रस्तुत करना अच्छा नहीं लग रहा है, शायद कहा जाये ये तस्वीर का एक पहलू है, मानती हूँ उन्नति हमने की है ,आज हमारे देश में अरबपतियों की संख्या बड़ी है, हमारे अपने उपग्रह हैं,रेलों सड़कों का जाल हमने बिछाया है चाँद पर जाने का स्वप्न भी हम देख रहें हैं,…….. पर विचार करें क्यों हमको दादागिरी सहन करनी पड़ती है विकसित देशों की पडोसी देशों द्वारा पोषित आतंकवाद से क्यों नहीं निपट पा रहे हैं मेरे विचार से आज हमारेलिये समय है मंथन का . आईये पुनः अपने स्व से ऊपर उठ देश की सोचें अपने देश को पूर्णरूपें आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग दें.उन नेताओं को गोरों की भांति देश निकला दें जो देश को लूटने में मग्न हैं
प्रस्तुतकर्ता Nisha Mittal पर २:४० पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
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