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अपमान कब तक?

chandravilla
chandravilla
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” ते ते पांव पसारिये जे जे लाम्बी सौर” हमारे पूर्वज हमारे से कितने आगे की सोचते थे और हम और हमारे कर्णधार…………………… लगता है हमारी सोच, योजनाओं,आत्मसम्मान देशप्रेम सब को भ्रष्टाचार की दीमक चाट कर खोखला कर चुकी है हमारे पूर्वज ये बात हमको इतने पूर्व समझा गए (जब की उनका तो ओपचारिक शिक्षा से दूर का भी रिश्ता नहीं था”.मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ”) कि उतने ही पैर पसारने चाहियें जितनी चादर हो.
कभी लेट लतीफी, कभी गिरते पुल,निर्माणाधीन भवनों का गिरना ,पानी टपकना, अतिथी खिलाडियों के रूकने की उचित व्यवस्था का अभाव,ठहरने के स्थानों पर पसरी गंदगी, रोगों को न्योता देते पानी भरे गड्ढे ,लचर सुरक्षा व्यवस्था……………और न जाने क्या क्या.यदि हमारी सामर्थ्य नहीं थी तो अपनी चादर से पैर निकलते हुए आयोजन का जिम्मा लिया ही क्यों? और समय रहते अव्यवस्थाओं तथा भ्रष्टाचार का पता लगने पर चेते क्यों नहीं.
नित्य कोई न कोई समाचार देश के स्वाभिमान को चिढाता हुआ मिल जाता है.कभी विदेशी channels द्वारा सुरक्षा व्यवस्था की जाँच के लिए स्टिंग ओपरेशन होते है,जिनमे हमारी सुरक्षा व्यवस्थाओं को लेकर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर आलोचना होती है,कभी चहुँ ओर पसरी गंदगी दिखाई जाती है,और उन सबसे ऊपर केंद्रीय शहरी विकास मंत्री के बयां आते हैं,कि गंदगी कोई मुद्दा नहीं है.और राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष श्री ललित भनोट ने तो हमारे देश की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा दिए ये कहकर कि इधर उधर मल मूत्र ,पान की पीक और गंदगी विदेशियों के लिए समस्या हो सकती है,लेकिन भारतियों के लिए बड़ी बात नहीं है. यही टिप्पणियाँ यदि विदेशी हम पर करते है तो हम अपने अपमान कि दुहाई देते ,पर अब…….. क्या स्वयं भनोट महोदय इसी गंदगी में अपने परिवार के साथ रह कर दिखायेंगे.
हमारे देश की इस अपमानजनक छवि के कारण प्रतिदिन कोई न कोई खिलाड़ी,कोई न कोई टीम खेलों से नाम वापस लेने कि बात करती है,यदि ऐसा हुआ या खेल रद्द हुए तो कैसे होगी इस अपमान की भर पाई.और जैसा कि सरकारी आश्वासन दिए जा रहें हैं कि सब कुछ संपन्न हो भी गया तो भी जो अपमान हमारे कुप्रबंध,हमारी अव्यवस्थाओं को लेकर हो चुका है,वह मिट सकेगा?
अंत में मेरे विचार से ये सब तब हो रहा है, जब न तो हमारे पास साधनों की कमी थी न समय की,बस कमी रही योजना बद्ध रूप से कार्य करने की और सारे विश्व के सामने हमारी छवि ये बनी कि हम समर्थ नहीं है,पिछड़े हैं.

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