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तनातनी का माहौल चल रहा था
, आशंकाओं के बादल घिर रहे थे,
दिलों में विचारतो कुछ दुसरे थे,
जवान पे शब्द आ बदल रहे थे.
मंदिर बन जाये वहां बोलते थे,
मस्जिद सेगुरेज न कर रहे थे,
ये शब्द बोलने ओ लिखने के थे,
मन राम रहीम की जय बोलते थे.
जन्मभू राम की है जज बोले थे,
आशाओं के पुष्प खिल गए थे,
मन मयूर नाच उठे सबके थे,
मिठाई बाँट खाने में जुटे थे.
आज प्रश्न मन में मेरे उठे थे,,
क्यूँ खुल कर बोले न थे तब
घुमा फिराकर बात करते थे,
सच बोलने में क्यूँ डर रहे थे.
ये टूटी फूटी पंक्तियाँ प्रस्तुत करते समय एक बात स्पष्ट कर दूं न तो मै कविता लिखती हूँ न ही मुझको कविता रचने के नियमों का ज्ञान है.अतः त्रुटियों पर न जा मेरे उन विचारों पर मंथन करें,जिनकी प्रष्टभूमि ये है,कई दिन से जो गहमागहमी सर्वत्र चल रही थी,भय व्याप्त था,मीडिया,सरकार,जनता,आम आदमी,बुद्धिजीवी सब की चर्चा का विषय एक ही था अयोध्या.आश्चर्य इस बात का था जब सब के बीच बात होती थी ,तो सब कहते दीखते थे अरे इश्वर,अल्लाह सब एक ही हैं शांति रहनी चाहिए,कल जब फैसला आया तो सब के सुर बदल रहे थे.तब लगा कि हमारी छवि न बिगड़े इसलिए सब ये जानते हुए भी कि सच क्या है,बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे .तब मन में ये विचार आया कि पढ़े लिखे होने के बाद भी दूसरा आवरण क्यों चढ़ाये रखते हैं.धर्म निरपेक्ष विचार रखना अलग बात है और सच का सामना करना वो सबके बस का नहीं.
ये निर्विवाद सत्य है कि ईश्वर एक है,अपने अपने रास्ते पर चलते हुए दुसरे के रास्ते में रोढा न बने.स्वयं भी शांति से रहें और अन्यों को भी शांती प्रेम से रहने दें. जय भारत
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