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एक बार पुनः नवरात्र तथा विजय दशमी की मंगलकामनाएँ.आजकल सम्पूर्ण देश में किसी न किसी रूप में नवरात्र पर्व धूम धाम से मनाया जा रहा है.घर घर में जगत जननी का आहवान,स्थापना पूजा पाठ,मंगल कलश की स्थापना आदि चल रहे हैं.स्वरुप भले ही भिन्न हो परन्तु ये दिन बहुत पवित्र माने जाते हैं . नवरात्र के दिनों में माँ के नव रूपों की पूजा अर्चना होती है.तद्पश्चात .कन्या पूजन कर,यथा शक्ति अपनी श्रद्धा समर्पित कर माँ की कृपा प्राप्त करते हैं.
एक ओर तो माँ की आराधना करते हैं हम कन्या के रूप में.और दूसरी ओर उस कन्या को जन्म ही नहीं लेने देते या फिर जन्म ग्रहण करने के बाद व्याध बन उसकी हत्या कर देते हैं,शिक्षा,अच्छे खानपान से बंचित रखते हैं.हर स्तर पर लड़के की तुलना में उसके साथ भेद भाव होता है.यहाँ एक बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि संभवतः शहरी परिवारों मेंऐसे उदहारण आपको कुछ कम मिलें,(यद्यपि iये संख्या भी बहुत कम है क्योंकि अधिकांश परिवारों में पुत्रमोह किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान है) परन्तु समस्या तो हमारी उस मानसिकता को लेकर है जिसके चलते कन्या की महत्ता को तो स्वीकार करते हैं,उसकी पूजा तो कर सकते हैं उसको देवी बनाकर,कन्या दान का महत्त्व जो हमारे शास्त्रों में वर्णित है,उसकी भी चर्चा तो कर सकते हैं,विशिष्ट अवसरों पर दान दक्षिणा के रूप में (परिवारों में कोई भी शुभ कार्य होने पर ) उसको धन वस्त्र आदि देते हैं परन्तु कामना पुत्र की करतें हैं ,तारनहार पुत्र को ही मानते हैं.
बहुत विचार करने पर अन्य सम्बंधित जनों से चर्चा करने पर जो कारण सामने आये उनके अनुसार आज की इस भयावह,घृणित,जघन्य कन्या भ्रूण हत्या या फिर कन्या हत्या या फिर दुसरे शब्दों में पुत्र की ही कामना करने के पीछे प्रमुख कारण निम्नांकित हैं;
(१) हमारी मूल मानसिकता ,जिसके अनुसार पुत्र के बिना मुक्ति नहीं होती क्योंकि लोक परलोक की सदगति पुत्र से ही संभव है)
(२) देश के कुछ भागों में संपत्ति के बंटवारे को लेकर बने हुए कायदे कानून.
(३)माता पिता को पुत्री की सुरक्षा की चिंता जिसके अनुसार लडकी के किसी भी प्रकार का शारीरिक शोषण आदि का शिकार होने पर पुत्री का भविष्य अंधकारमय हो जाता है तथा परिवार की बदनामी होती है.
(४)दान दहेज़ का कोढ़ तथा विवाह संस्कारों में होने वाला बेतहाशा अपव्यय .
(५)पुत्री को शिक्षित करने के पश्चात् भी उसके विवाह की चिंता………..(६)..उनका भरण पोषण करने की जिम्मेदारी से बचना भी एक कारण है क्योंकि वो कमाऊ सदस्य नहीं हैं ……
(७ )परिवारों का घटता आकार भी इस समस्या का एक कारण है.
हाँ,एक तथ्य स्पष्ट करना आवश्यक है कि मेरा विरोध पुत्र से नहीं है अपितु कन्या हत्या से या फिर उसको संसार में आनेसे रोकनेको लेकर है.
( उपरोक्त कारणों का समाधान खोजना,मानसिकता में परिवर्तन लाना दूसरा विषय है अतः उस पर विचार दुसरे आलेख में करना उत्तम होगा)
इन्ही कारणों से आज स्तिथी यहाँ तक पहुँच गयी है कि लड़कियों का जन्म अनुपात दिनोदिन लड़कों की तुलना में घटता जा रहा है जिसके चलते समाज में असंतुलन बढ़ता जा रहा है.ये असंतुलन कितनी नयी समस्याओं को जन्म देगा इसका अंदाजा लगाना ही रोंगटे खड़ा कर देने वाला है.महिलाओं की असुरक्षा में और अधिक वृद्धि,लड़कों की विवाह की समस्या और इसके चलते कुंठाएं,यौन अपराध बढेंगें समाज का ढांचा और विकृत होगा और न जाने ………………
कन्या भ्रूण हत्या की समस्या तथा कन्या बध जैसी कुप्रथाएँ ग्रामीण भागों में तो और भी अधिक हैं अभी कल ही मेरी हरयाणा की एक महिला अधिकारी से बात हो रही थी जिसने बताया कि पुत्र न होने पर पति का दूसरा विवाह निश्चित है.यदि प्रथम संतान पुत्री है तो दूसरी संतान के समय ultrasound या सोनोग्राफी आदि टेस्ट के माध्यम से लिंग ज्ञात करके लडकी होने पर गर्भपात कराया जाना निश्चित है.सारे नियम कानूनों को तक पर रखकर उपरोक्त टेस्ट धड़ल्ले से होते हैं.यहाँ तक की गर्भपात करते समय महिला के जीवन को भी खतरे में डाल दिया जाता है
इस समस्या को समाप्त करना दुरूह तो है असंभव नहीं.स्वयंसेवी संघटनों द्वारा युद्ध स्तर पर अभियान चलाया जाना,सरकारी कानूनों को कठोरतम बना उनका ईमानदारी से पालन कराया जाना,हमारा स्वयं में ईमानदार हो अन्यों को प्रेरित करना आदि के माध्यम से यदि प्रयास किया जाये तो सफलता भी मिलेगी ही..
यदि हम वास्तव में माँ जगत्जननी की आराधना कर रहे हैं.माँ के स्वरूपों की सच्ची पूजा तो यही है कि हम उन कन्याओं को जन्म लेने के अधिकार से वंचित न करें.उनको ससम्मान यथाशक्ति सम्पूर्ण साधन उपलब्ध करा आत्मनिर्भर बनने दें.यही हमारा माँ को प्रस्सन करने का उपयुक्त मार्ग है,यही सरस्वती,दुर्गा व माँ लक्ष्मी की उपासना है.
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