- 307 Posts
- 13083 Comments
” मेरे बुढ़ापे की लाठी था मेरा बेटा,” ” मै बर्वाद हो गयी” पूरा गाँव चीख पुकार से गूँज रहा था,बच्चों,महिलाओं का करुण क्रंदन.विलाप सब को द्रवित कर रहा था,” ये दृश्य किसी फिल्म का नहीं है.आम हो चले वास्तविक जीवन के दृश्य हैं जहाँ जहरीली शराब का सेवन कर अधिकांश परिवार उजड़ जाते हैं,.कोई अपना इकलौता बेटा खोता है,,तो किसी की मांग उजडतीहै,,कोई बच्चा अनाथहो जाता तो कोई अपाहिज वृद्ध अपनी संतान को खोकर दाने दाने को तरसने को विवश हो जाता है..मीडिया में यही समाचार सुर्ख़ियों में होता है. .राजनीतिक दलों को एक मुद्दा मिल जाता है, ,कहीं सहानुभूति प्रदर्शित की जाती कहीं सरकार को कोसा जाता है .,अपराधियों को दंडस्वरुप फांसी देने की मांग भी उठती है,.सरकार की निंद्रा भी थोड़ी खुलती है, क्योंकि मामला विपक्षी दलों के हाथों में पहुँचने पर राजनीतिक हानि का डर सताताहै.अतः अपराधियों को दंड देने की बात कह कर मुआवजे की घोषणा कर दी जाती है..
इस प्रकार की घटनाएँ कोई एक दो नहीं प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही हैं.गाँव हो चाहे शहर ,युवा हो चाहे प्रौढ़ हो या फिर वृद्ध यहाँ तक कि महिलाएँ भी शराब की गिरफ्त में हैं.अंतर मात्र जेब के हिसाब से शराब की केटेगरी का है अर्थात ठर्रा, देसी,महंगी विदेशी शराब आदि (मेरा ज्ञान इस विषय में जरा अल्प है) परन्तु कोई उत्सव हो,त्यौहार हो या कोई अन्य अवसर इसके अभाव में पूरा नहीं होता.हर पार्टी में एक काउंटर शराब का होना आवश्यक है ,जहाँ नहीं होता है वो पार्टी या तो रसहीन है या पार्टी आयोजित करने वाले गंवार,पिछड़े हैं. परिणामस्वरूप दूध घी की नदियाँ तो लुप्त हो रही हैं शराब की नयी नयी नदियाँ हर गाँव हर शहर में बह रही हैं.और इन नदियों में नहा कर भी अतृप्त आबाल वृद्ध अपने को धन्य मानते हैं.देख कर अनदेखा करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है.प्रतिवर्ष नशे में हुई दुर्घटनाओं के कारण मरने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है.नशे की गिरफ्त मेंआकर अपना शरीर खोखला करती युवा पीढी बेफिक्र है.तथाकथित क्षणिक आनंद उनका भविष्य किस प्रकार चौपट कर रहा है इसकी कोई चिंता नहीं.”खाओ पीयो करो आनंद भाड़ में जाए परमानंद “मूलमंत्र बन रहा है.जहरीली शराब का जहाँ तक प्रश्न है,मौत के ठेकेदार क्यों बाज आयें अपनी बड़ी से मोटी रिश्वत दो और फिर काम पर चलो.मेरे विचार से मुआवजा देनाभी है तो सरकार द्वारा नहीं दिया जाना चाहिय पहले तो पीना ही गलत और मुआवजा देना ……मुझे नहीं लगता पीड़ित परिवारों का कुछ भला होता होगा
प्रश्न तो ये उठता है कि इतनी गंभीर समस्या का हमारे पास कोई निदान नहीं.प्रतिबन्ध लगाना कोई उपचार होता नहीं क्योंकि तब तो ये व्यापार चोरी छिपे और धड़ल्ले से चलता है.सरकार को कोई चिंता नहीं क्योंकि मोटे राजस्व की प्राप्ति का साधन है,वैसे भी चिंतन का विषय तो तब होगा जब चिन्तक स्वयं सुरापान से अछूते हों.आखिर क्या होगा हमारे देश का? पाश्चात्य देशों की नक़ल में हम भूल रहे हैं कि संभवतः उनके जलवायु के अनुसार उनके लिए हानिकर न परन्तु हमारी जलवायु खान-पीन उनसे भिन्न है.भूमंडलीकरण की दुहाई देकर जलवायु के अनुसार आवश्यकताओं को तो विज्ञान भी नहीं नकारता.दुःख तो तब होता है जब एक दिहाड़ी मजदूर,रिक्सा चालक या अन्य रोज कुआँ खोद कर पानी पीने वाले भी अपनी कमाई शराब में उड़ा देते हैं और उनका परिवार भूखों मरता है हमारी पर्वतीय बंधुआदि हो चुकें है, .मेरे विचार से हमारी निर्धनता का एक कारण ये शराब है.,जिसके कारण गरीब लोगों की कमाई शराब में उड़ शराब के ठेकेदारों को अमीर बनाती है और निर्धनों का जीवन स्तर न सुधर पाने के कारण देश को निर्धन.इस कारण ही हमारे देश के ४१.६% लोग (वर्ड बैंक ) के २००५-६ के आंकड़ों के अनुसार गरीबी का जीवन यापन करने को विवश हैं.केवल निर्धनता ही नहीं कुपोषण,अशिक्षा,अन्धविश्वास………आदि भी इनसे जुड़े अन्य तथ्य हैं,जिनपर चर्चा यहाँ करना थोडा विषयांतर हो जाएगा.ऐसा नहीं कि केवल निर्धन ही दुष्परिणामों के शिकार हैं,मध्यमवर्गीय या सभी धनवान लोग भी शराब से होने वाले लिवर विषयक रोगों से पीड़ित हैं.सही कहा गया है पहले लोग शराब पीते हैं फिर शराब उनको पीती है.
वैसे तो सरकार इस ओर गंभीर होगी इसकी आशा ही कपोलकल्पित है परन्तु सरकारी प्रयासों के साथ विशिष्ट जन जागृति अभियानं,स्वयंसेवी संगठनों द्वारा चलाये जाएँ या स्वयं प्रभावित परिवारों द्वारा,विशिष्ट मेडिकल कैम्पस जहाँ इसके दुष्परिणामों की वास्तविक जानकारी दी जाए,स्कूल के स्तर से ही इसके दुष्परिणामों के बारे में बताया जाये,गाँव गाँव में शिविर आयोजित किये जाएँ ऐसा नहीं ये संभव नहीं.गत कुछ ही वर्ष पूर्व महिलाओं ने ये बीड़ा उठाया था,मुज़फ्फरनगर,हरयाणा के कुछ भागों में तथा पहाड़ों पर भी उसके परिणाम भी सामने आये थे शराब के ठेके बंद होने लगे थे परन्तु कुछ समय बाद ये प्रयास आगे न बढ़ सके.परन्तु इनको आगे बढाया जा सकता है.. उपाय तो और भी मिलेंगें यदि विचार किया जाए तो. काश!कोई तो संभले.
Read Comments