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हमारे शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लिए साईकिल रिक्शा ही प्रमुख साधन है (निजी वाहनों के अलावा ) अभी दीपावली से २-४ दिन पूर्व ही रिक्शा से जा रही थी कि अधिक भीड़ के कारण( मै जिस रिक्शा मे थी) रिक्शा वाहक ने बराबर से निकलने वाले एक युवा लड़के को जरा सा हाथ लगा दिया (जिससे वह टक्कर से बच जाए ) लड़के ने बिना एक भी पल गवाएँ एक थप्पड़ रिक्शा वाहक के जड़ दिया और खूब गालियाँ दीं, बेचारा रिक्शा वाहक भौचक्का सा रह गया ,ये सोच कर कि क्या गलती की उसने,जिसका प्रतिदान उसको थप्पड़ व अभद्र भाषा के रूप में मिला. आगे निकलने पर उसने ये प्रश्न मुझसे किया,मेरे पास उसको समझाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था कि तुमने सही किया था,वो लड़का अशिष्ट था. चलते चलते मै उसके प्रश्न का उत्तर खोज रही थी क्या संस्कार हमारी भावी पीढी ग्रहण कर रही है.आखिर एक मजदूर आदमी में तो इतनी मानवीयता है और ये तथाकथित युवा पीढी ?इतनी कटु व गन्दी भाषा?
हमारे यहाँ तो सिखाया है
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोये,ओरहुं को शीतल करे आपहुं शीतल होए” और यहाँ बानी तो क्या बोलेंगे, हाथा-पायी पर उतर आना और वो भी अकारण.ये घटना तो वही कहानी याद दिलाती है”,सीख न दीजे वानरा घर बया का जाए” बया बरसात से बचने के लिए बन्दर को घर बनाने कि शिक्षा दे रही थी और बन्दर उसने बया का घर ही उजाड़ दिया.
बहुत विचार करने पर इसी निष्कर्ष पर पहुँची कि इस पतन,संवेदनहीनता का कारण बहुत हद तक हमारा सिनेमा तथा दूरदर्शन के कार्यक्रम हैं,जहाँ फूअड कार्यक्रम तो परोसे ही जा रहे हैं,भाषा इतने निम्नस्तर की है कि बोलने व् सुनने में भी ………………हास्य कार्यक्रमों के नाम पर सस्ता भद्दा हास्य वो भी छोटे कलाकारों तथा महिला वर्ग द्वारा प्रस्तुत कराया जाना.संभवतः ये टी.आर.पी. बढाने के लिए है आखिर क्या सीखेगी हमारी आगामी पीढी जब छोटे बच्चों को अश्लील तथा फूहड़ कार्यक्रम प्रस्तुत करने पर पुरूस्कार मिलता हो.बच्चे दोषी नहीं दोषी तो उनके माता-पिता तथा प्रोग्राम प्रस्तुतकर्ता हैं.बच्चे में प्रतिभा है तो उसकी कच्ची उम्र में उस प्रतिभा को सही दिशा देकर निखारा भी जा सकता है कुछ समय पूर्व एक प्रोग्राम देख रही थी,बच्चों का नृत्य कार्यक्रम था,बच्ची ने नृत्य किया,जो अश्लील था (भाव भंगिमा से भी तथा गीत के बोल भी.) बाद में बच्ची को मंच पर बुला कर निर्णायकों ने उससे पूछा तुमको नृत्य किसने तैयार कराया ,तो बच्ची का उत्तर था मेरे पापा ने.पापा को भी बुलाया गया तथा उनसे पूछा आपने इतनी छोटी बच्ची के लिए यही गीत और नृत्य के एक्शन क्यों चुने तो उनका उत्तर था ,आजकल सबको यही पसंद आता है .पुरूस्कार के लिए हम आज से ही बच्ची का मस्तिष्क विकृत करने पर तुले हैं.
ये तो मात्र एक उदाहरण है,टलेंट खोज के नाम पर बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा देना,उनके तन-मन से खिलवाड़ .,कभी कभी तो लगता है माता-पिता आधुनिकता की दौड़ में दौड़ते हुए अपने अपूर्ण स्वप्नों को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं.अपने अपूर्ण स्वप्नों को पूरा करना अनुचित नहीं परन्तु राह या साधन तो सकारात्मक होने चाहियें. हिंसा,अनैतिकता,अश्लीलता का आश्रय लेकर हम स्वयं,दूरदर्शन.सिनेमा तथा साहित्य आगामी पीढी को न जाने कहाँ पहुँचाने वाले हैं अभी. जो धारावाहिक प्रारम्भ होतें हैं शुरू में लगता है कि किसी अच्छे उद्देश्य को लेकर चला गया है परन्तु धीरे धीरे वही अनैतिक संबंधों के चक्र में उलझाना और उसको लंबा खींचना आज एक नियम बन चुका है.माता-पिता भी तथाकथित आधुनिकता की दौड़ में छोटे छोटे बच्चों को टी. वी. के भरोसे छोड़ अपना भविष्य संवारने? में लगें हैं.आज आप स्कूल जाते या आते समय यदि बच्चों की बातें सुनें तो पायेंगें की बच्चे खेल-कूद,पढ़ाई या अन्य किसी विषय पर बात न कर टी. वी.प्रोग्राम,गानों या फिल्मों के संवादों,(सस्ते) अभिनेता अभिनेत्रियों की बात करते या नक़ल करते दिखाई देंगें.
आखिर किस भावी पीढी को तैयार कर रहे हैं हम,हमारा समाज. अभी भी समय है चेतने का वरना तो अब पछिताय क्या होत है ………………..
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