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धीरे-धीरे बोल कोई सुन न ले

chandravilla
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” धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले ” ये बात संभवतः कभी यथार्थ रही होगी परन्तु इसका स्वरुप तो व्यापक हो कर इतनी गहरी पैठ बन चुका है कि …………………………… ” ये बात मै केवल आपको बता रही हूँ /या बता रहा हूँ सीक्रेट है अपने तक सीमित रखना ” एक आम वाक्य जो हर किसी को सुनने को मिलता है या कहा जाता है.हम सभी के साथ ऐसी घटनाएँ होती हैं.श्रोता ये मान लेता है कि वो वक्ता का घनिष्ठ है.वक्ता भी शायद आत्मीयता के नाते ऐसा कहता है.
इसी सन्दर्भ में एक महात्मा जी का उदाहरण याद आया .महात्मा जी भोजन कर रहे थे,भोजन के साथ छोटा सा पंख के समान
बाल उनके मुख में चला गया,बेचारे बाहर जा कर थूक भी आये.कुछ दिन बाद एक दबी-दबी खबर सुनायी दी ,महात्मा जी ने तो पंख खाया था ,धीरे धीरे पंख से वो मुर्गे की टांग बन गयी और फिर बन गया मुर्गा.महात्माजी जी को मांसाहारी घोषित कर दिया गया.मांसाहारी के साथ अन्य व्यसन भी जोड़ दिए गए और उनके चरित्र को नमक मिर्च लगाकर व्यभिचारी के रूप में प्रचारित कर दिया गया.
मोहल्ले की एक लड़की कालेज में किसी सहपाठी से बात कर रही थी,मेधावी,गंभीर स्वभाव वाली छात्रा के साथ उस सहपाठी का सम्बन्ध होने की बात उड़ा दी गयी,लडकी के घर वाले स्वयं लड़की समझदार थी,अतः अप्रिय स्तिथि उत्पन्न नहीं हो सकी.कोई लडकी अपने किसी उपचार के सन्दर्भ में मायके रहने आयी,थोडा लम्बे समय रूकने के कारण उसके तलाक की खबर का सुराग छोड़ दिया गया,और बात उसकी ससुराल तक पहुँच गयी.खैर अंत में मामला सुलझ गया.कई बार तो स्तिथि इतनी गंभीर बन जाती है कि अफवाहों से बदनाम हो कर आत्महत्या तक को विवश होना पड़ता है पीड़ित या पीडिता को..
ऐसी घटनाओं के भुक्तभोगी सब किसी न किसी रूप में होते हैं.मेरे विचार से इनको अफवाहों की संज्ञा दी जाती है.ऐसा नहीं के ये विशेष कार्य महिलाओं के साथ ही जुड़ा हो पुरुष वर्ग भी इतना ही जुड़ाव रखता है अफवाहों से..पड़ोस,घर,कार्यालय,कालेज,समाज,राजनीती सब ओर अफवाहों का जोर रहता है.फ़िल्मी कलाकारों का तो ये दैनिक कार्यक्रम है.कभी अफवाहे अनचाहे उडती हैं, कभी प्रचार पाने के लिए अफवाहों का सहारा लिया जाता है.पिक्चर देखी थी” आंधी” सुना था इंदिरा जी के जीवन पर आधारित थी दिखाया गया था इंदिरा जी पर पथराव होता है बाद में पता चलता है कि वो सब प्रायोजित था.उस समय बहुत आश्चर्य हुआ था.परन्तु आज तो ये पब्लिसिटी स्टंट हर क्षेत्र में धडल्ले से प्रयोग किया जा रहा है.नेताओं की तो रोज़ की नाटकबाजी है ये.इस्तीफ़ा देना,इस्तीफ़ा मांग लेने की अफवाहें उड़ना अपने गुंडों से पिटाई करवा विपक्ष को बदनाम करने के लिए कोई भी अफवाह उड़ा देना विशेष रूप से चरित्र हनन से सम्बंधित .इतना ही नहीं किसी व्यक्ति विशेष के मरने तक की अफवाह उड़ जाती है.

किसी जमाने में कहा जाता था” दीवारों के भी कान होते हैं ” ये बात सत्य है.बड़े लोगों का कथन था,जब तक कोई बात अपने पेट में है तभी तक रहस्य है.ये वास्तविकता हैमुख से बात बाहर आते ही बात सार्वजनिक हो जाती है.लेकिन हर वो व्यक्ति ,जो कहता है कि अमुक बात वो मात्र आपको बता रहा है अफवाह फैलाने का सूत्र है.बात का स्वरुप किस प्रकार बदल जाता है इसका उदाहरण दैनिक जीवन में देखा जा सकता है.कई बार तो जीवन बर्बाद होते देखे गए हैं.अफवाहे देशों को बदनाम, करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उडाई जाती हैं,जैसे हमारा पड़ोसी पाक.आये दिन पाकिस्तान भारत को बदनाम करने के लिए अफवाहे उड़ाता है.
जब अफवाहों का बाजार इतना गर्म है ,जीवन के हर क्षेत्र में इनसे जूझना मजबूरी है तो सावधान स्वयं को ही रहना होगा.अतः बिन परखे तथ्यों का पता लगाये इन पर विश्वास न करें तथा स्वयं इनके प्रसारक न बनें अफवाह फैलाने वाले समाज द्रोही,देश द्रोही व इनसे बढ़कर मानवता द्रोही हैं.

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