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जब आये संतोष धन सब धन धूरी समान

chandravilla
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कहानी एक धनिक की.अकूत संपत्ति का स्वामी वह व्यक्ति इतना धन अर्जित कर चुका था कि उसकी आगामी ८-१० पीढियां बिन कुछ किये आराम से जीवन व्यतीत कर सकती थीं.कामनाएँ अनंत हैं, इनके जाल से बाहर निकलना तो असंभव तो नहीं दुष्कर कार्य है. धनिक अपनी संपत्ति का मूल्यांकन करने बैठा तो दुखी हुआ ये सोचकर कि मेरी ८-१० पीढ़ियों के बाद की पीढी कैसे गुजारा करेंगी” .चिंता चिता समान होती है”.यही कारण है धनिक बीमार हो गया.चिकित्सक उसकी व्याधि समझ नहीं पा रहे थे.परिजन उसको लेकर एक उच्च कोटि के संत के पास पहुंचे.संत बोले कि वह रोगी से एकांत में बात करना चाहते हैं.उनके मध्य हुआ वार्तालाप अंग्रेजी में है कृपया ध्यान दें;
mahatma ji -what is your problem?
dhanik – swami ji’I want peace.”
swami ji-this is very simple.first remove I ,Then remove “want” peace is always there.
I अर्थात मै,अहम
want अर्थात चाह,इच्छाएँ
peace अर्थात शान्ति
छोटी सी कथा परन्तु सन्देश कितना गहन.सभी जानते हैं कि यदि हम अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लें तो शायद न केवल हम सुख से रह सकेंगे अपितु दुनिया की असंख्य समस्याएँ स्वत ही समाप्त हो जायेंगी.
सभी पाठक पढ़ कर सोच रहे होंगें कि इसमें कौन सी नयी बात कह दी मैंने ?सभी इस तथ्य से परिचित हैं.हाँ,मै मानती हूँ .यद्यपि ये सन्देश मेरे सहित सभी के लिए है.परन्तु एक कुलबुलाहट मेरे मस्तिष्क में कई दिन से थी ,वो आपके समक्ष रखती हूँ.
आज राजनीति में आने की अभिलाषा रखने वाले हर व्यक्ति का एक ही स्वप्न रहता है कि वह सांसद या विधायक बने .यदि सौभाग्य से वही पार्टी सत्ता में आती है तो मंत्री बनने के लिए जुगाड़बाजी प्रारम्भ हो जाती है.बस यही प्रश्न इस कुलबुलाहट के पीछे था.आखिर मंत्री बनने के स्वप्न क्यों देखता है वह?.आप सभी मानेंगे कि पूरे मंत्रिमंडल में किसी भी मंत्री की भावनाएँ समाज या राष्ट्र की सेवा की नहीं होती.,एक मात्र उद्देश्य सत्ता सुख भोगना या अपनी आगामी पीढीयों का भविष्य सुरक्षित करना होता है .उन्हें ज्ञात होता है कि अगली अवधि में तो पता नहीं ये सुख सौभाग्य प्राप्त होगा या नहीं अतः जितनी भी तिजोरियां भरी जा सके भर लो इसके लिए जिस जनता की सेवा का वो वादा करते हैं,जिस देश की सेवा की वो दुहाई देते हैं उसी को लूट लूट कर चल-अचल संपत्ति बढाते रहते हैं.उससे भी पेट नहीं भरता तो वो स्विसबैंक या अन्य ऐसे ही बैंकों में जमा करते हैं और इतना धन लूटते हैं कि यदि वो धन हमारे देश के पास हो तो हम अपनी निर्धनता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं तथा पुनः हमारा देश सोने की चिड़िया कहला सकेगा यही मोह होता है मंत्री बनने का . वैसे तो सत्ता लोलुप नेता पुत्र-पुत्री को पिछले द्वार से प्रवेश करा देता है,या प्रयास जारी रखता है पार्टी चाहे जो भी हो ये मायने नहीं रखता क्योंकि आज के नेताओं(अधिकाँश)की विचारधारा तो स्थाई होती नहीं.एक मंच से गाली देने वाले नेता कब अपनी शत्रुता भूल गले लग जाते हैं और स्वार्थ पूरा होते ही फिर वही शत्रुता प्रारम्भ हो जाती है..किस लिए ?एक ही उत्तर सत्तासुख और सम्पदा .
मै भी कोई साधुसंत या त्यागी नहीं हूँ पर इतना जानती हूँ कि “पैसा बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं”आखिर इतनी लोलुपता किस लिए.न जाने क्यों सब कुछ जानते हुए भी इस मृगमरीचिका में भटकते रहते हैं.धनार्जन कोई जुर्म नहीं होता परन्तु धन के पीछे पागल बन जाना तो वैसा ही है जैसे कि वो कथा जिसमें धन का लोभी एक व्यक्ति ईश्वर से वरदान मांग लेता है वो जिस वस्तु को स्पर्श करे वह स्वर्ण की हो जाए अंतत वह अपनी संतान पर ही हाथ रख देता है,परिणामस्वरूप संतान स्वर्ण का पुतला बन जाती है.अतः धन अर्जित करिए प्रसन्न रहिये परन्तु ध्यान रखिये प्रसन्नता धन से नहीं खरीदी जाती..

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