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पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब (सोच बदलें)

chandravilla
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बधाई सभी खिलाडियों को,बधाई सम्पूर्ण देश को आज एशियन गेम्स की फाईनल पदक तालिका में हमने १४ स्वर्ण सहित ६४ पदक जीत भारत को छटे स्थान पर पहुंचाया.इससे पूर्व हम मात्र १० स्वर्ण ही जीत सके थे..उपलब्धी कोई छोटी नहीं होती,हमारे खिलाड़ी,धावक सभी ने कठोर परिश्रम की राह पर चल ये सफलताएँ अर्जित कीं.इन विजेता खिलाडियों पर सम्पूर्ण देशवासियों को गर्व है
सफलता पर प्रसन्न हम हैं परन्तु इतराने की स्तिथी में नहीं हैं.कारण चीन के १९७ स्वर्ण सहित ४१२ के करीब पहुँचते पदको को देखने के बाद जब हमें कजाकिस्तान,ईरान जैसे छोटे देशों को पदक तालिका में अपने से ऊपर स्थान पर देखते हैं तो दिल कुछ डूबने सा लगता है.इसको ईर्ष्या नहीं कह सकते .विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश जो जनसँख्या में बस चीन से पीछे है एशियन गेम्स की पदक तालिका में छटे स्थान पर और ओलम्पिक में तो कभी कभी एक पदक के लिए ही नाम दिख जाता है.अतः दुःख होना स्वाभाविक है.क्रिकेट ,शतरंज ,बेडमिन्टन ,टेनिस तथा होकी आदि चंद खेलों में तो कभी १९ तो कभी २१ हमारा प्रदर्शन फिर भी चलता रहता है.निशानेबाजी,मुक्केबाजी ,कुश्ती आदि में मिली यदा-कदा सफलताओं को कम नहीं आँका जा सकता ,लेकिन जिस मंजिल पर हम पहुँच सकते थे या खेलों में जो और उपलब्धियां हासिल कर सकते थे ,उनसे बंचित क्यों रह जाते हैं.
मीडिया के समाचारों से पता चलता था की वो समस्त देश जो खेलों में अग्रणी रहते हैं बच्चों को प्रारम्भ से ही प्रशिक्षित किया जाता है तैराकी ,जिम्नास्टिक ,फूटबाल तथा अन्य खेलों के लिए सुविधाएं ,विशेष प्रशिक्षण सरकार की और से भी तथा माता-पिता की ओर से प्रोत्साहन मिलता है.
इसके सर्वथा विपरीत सरकार की नीतियां हमारे यहाँ बच्चों को तो विशेष प्रशिक्षण या सुविधाएं क्या उपलब्ध करायेंगे प्रतिभागी खिलाड़ी ही सुविधाओं के लिए तरसते हैं कभी धावकों के पास जूते नहीं तो कभी उनके खेल से सम्बंधित उपकरण नहीं.कोच नहीं ,बाहर खिलाडियों को भेजने के नाम पर कठिनाई,पहलवानों,मुक्केवाजों ,जिमनास्ट,अन्य सभी खेलों के लिए पौष्टिक भोजन व अन्य खाध्य सामग्री नहीं कहाँ तक गिनाया जाए.शेष हमारे यहाँ सब सम्बंधित लोग भूखे बैठें है कि जो धन राशी सरकार द्वारा प्रदान की जाती है उसको डकार जाते हैं.कोमंवेल्थ खेलों के घोटाले ताजा उदाहरण है.खेल मंत्री,उनके रिश्तेदारों,सम्बंधित अधिकारियों ने अपना बेन्क्बेलेंस बढ़ाया और सरकार लीपापोती कर छुट्टी पा लेगी.वो भी अभी ताजा मामला है उनमे से कुछ लोगों को हटा कर बाद में पुनः समायोजित कर लिया जाएगा .अभी समाचारपत्र में मुज़फ्फरनगर की सात वर्षीया बच्ची के विषय में पढ़ा था जो प्रतिदिन दौड़ का अभ्यास करती है तथा मात्र २ घंटा ३० मिनिट में २१ किलोमीटर की दूरी तय करती है.उसके द्वारा अपना सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन जिलाधिकारी तथा अन्य खेल अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया सबने लोहा तो उसका माना परन्तु आयु कम होने की बात कह कर टाल दिया गया.प्रश्न है कि यदि उसकी आयु कम है भी तो क्या उसको भावी संभावित प्रतिभा के रूप में सुविधा नहीं मिलनी चाहिए?उस स्तिथि में जब उसके माता-पिता के बूते से बाहर की बात है यदि विदेशों में बच्चों को अल्पायु में तैयार किया जा सकता है तो हमारे यहाँ क्यों नहीं?उसकी डाईट,फिटनेस,कोच ,जुटे तथा अन्य सम्बंधित सामग्री मिलनी चाहिए.
सरकारी प्रयासों के बाद नंबर आता है परिवार का तथा हमारी मानसिकता का.यदि किसी बच्चे की खेल विशेष में रूची है तो परिवारों में भी उसको हतोत्साहित किया जाता है ये मानकर कि इससे समय व्यर्थ गवांया जा रहा है भविष्य में केवल पढाई काम आयेगी.पढ़ाई के बढे बोझ के बाद बच्चे के पास समय होता ही नहीं कि वो अपनी प्रतिभा को निखार सके.वैसे कुछ सीमा तक ये बात सही है भी क्रिकेट जितना पैसा हर खेल में नहीं मिलता हर खिलाड़ी की एक निश्चित खेल आयु है उसके बाद ??????????????????
आजकल टी.वी पर एक विज्ञापन आता है जिसमें क्रिकेटर्स को ही दिखाया जाता है कि इतने बल्ला चल रहा है सब अच्छा है पर उसके बाद..? ये वास्तविकता है क्रिकेट में तो फिर भी बड़े खिलाडियों को पैसा मिलता है पर अन्य सभी खेलों में उनका भविष्य? उनका स्वर्णिम समय तो खेल में लगा बाद में परिवार का तथा स्वयं खिलाड़ी का क्या हो?
समस्या का समाधान खोजा जाना परमावश्यक है यदि इस क्षेत्र में आगे बढ़ना है और अपने देश को सिरमौर बनाना है. आवश्यकता है सोच में बदलाव की.यदि बच्चे की रूचि और प्रतिभा है तो परिवार द्वारा भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए.
स्पोर्ट स्कूलों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए भरपूर सुविधाओं के साथ जहाँ बच्चों को खेल प्रशिक्षण के साथ पढ़ाई भी कराई जाए जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो मात-पिता अपने बच्चों के भविष्य के विषय में आशंकित न रहें.साथ ही इन स्कूलों में प्रवेश आदि को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए. .ग्रामीण स्तर पर केम्प आदि लगा कर ऐसी प्रतिभाओं की खोज जारी रहनी चाहिए उन प्रतिभाओं को सुविधाएं उपलब्ध कराना.निखारना आदि से खेलों का स्तर ऊंचा उठेगा.इसी प्रकार प्राईमरी स्तर से बच्चों के लिए यथार्थ में खेलकूद आदि के लिए विशेष सुविधाएँ रहेंगी तो प्रतिभासंपन्न हमारे देश में न जाने कितने रिकार्ड्स तोड़ने वाले खिलाड़ी मिलेंगें. दुसरे शब्दों में “जहाँ चाह वहां राह” यदि सरकार चाहे तो असंभव कुछ नहीं.
यद्यपि कुछ आरक्षण खिलाड़ियों के लिए अब विभिन्न विभागों में रहता है परन्तु उद्योगिक घरानों को आगे आना होगा,जैसा की सहारा परिवार या कुछ घराने करते हैं परन्तु उसको और अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा अन्य उद्योगों को आगे आना चाहिए..इसके लिए भी सरकारी प्रतिवद्धता जरूरी है.
खिलाडियों के काम आदि की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि खेल जीवन के बाद उनको उनकी प्रतिभा के अनुसार अन्यत्र समायोजित किया जा सके जिससे उनके सामने आजीविका का संकट न आये.इस कार्य के लिए एन .जी. ओस भी भूमिका निवाह सकते हैं.इन खिलाडियों को भावी आजीविका की चिंता न रहे,ऐसी नीति बननी चाहिए.
इन सबसे बढ़कर आवश्यकता है कि खेलों में जो राजनीति चलती है उस पर अंकुश लगे.बहुत बार राजनीति के चलते अच्छी प्रतिभाएं चयनित नहीं हो पाती.भाई-भतीजावाद के चक्कर में योग्य खिलाड़ी चुन लिए जाते हैं और योग्य अपनी बारी की प्रतीक्षा कर असमय ही बाहर हो जाते हैं.
भ्रष्टाचार को समाप्त किये बिना तो किसी भी क्षेत्र में देश आगे नहीं बढ़ सकता.और हाँ निर्धनता पर काबू पाया जाना भी जरूरी है.आखिर “पहले पेटपूजा पीछे काम दूजा”
अतः अब बच्चों को ये मत कहिये ‘”खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब.” पढना आवश्यक है परन्तु प्रतिभाओं को विकसित करना भी जरूरी है इसके लिए वृहद् स्तर पर समग्र प्रयास की आवश्यकता है…

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