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पूजा नहीं सम्मान चाहिए (आधी आबादी की पुकार)

chandravilla
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ग्रामीण परिवेश में पली लडकी १२ वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर स्नातक शिक्षा के लिए माँ-पिता तथा परिवार जनों को बड़ी कठिनाई से समझा-बुझा कर शहर के बड़े कालेज में प्रवेश लेती है.मेधावी छात्रा जो परिवार की सोच के चलते तकनीकी प्रोफेशनल कोर्स के लिए चाहते हुए भी स्वजनों को न समझा सकी थी,,अपनी प्राथमिकताएं (पढाई )बदल कर सामान्य कोर्स में ही प्रवेश ले सकी थी.अभी पढाई शुरू हुए एक माह भी नहीं हो पाया था कि लडकी परेशान हो गयी.कारण कालेज का एक दादा टाईप छात्र जो उस पर दोस्ती का दवाब डाल रहा था तथा शादी कि जिद्द कर रहा था.लडकी की विवशता, घर में नहीं बता सकती थी ,.बड़ी कठिनाई से घर के सदस्यों को तैयार कर पाई थी.घर में पता चलते ही भूचाल आ जाता तथा उसको घर में बैठा दिया जाता.दबे स्वर में एक साथिन को बताया दोनों ने मिलकर प्राचार्य महोदय से बात करने की कोशिश की ,वो भी विषय को एकदम इतनी गंभीरता से नहीं ले सके.२-३ दिन बीत गए,लड़के ने कुटिल प्रस्ताव पुनः रखा स्पष्ट शब्दों में अस्वीकार करने पर लड़के का दुस्साहस लडकी पर गोली चला कर हत्या कर दी और सबके देखते नौ-दो-ग्यारह हो गया.
ये घटना कोई काल्पनिक नहीं हमारे शहर की घटना है कुछ दिन टी.वी समाचारपत्रों में की सुर्खियाँ बनी ,गिरफ्तारी को लेकर धरने पदर्शन ,जाम ,तोड़-फोड़ लड़के ने आत्मसमर्पण कर दिया .अब केस चलेगा,कभी गवाह नहीं,तो कभी न्यायधीश बदल गए इसी प्रकार एक के पश्चात एक दूसरी कोर्ट छोटी सजा मिलकर या जुर्माना लग कर सब समाप्त.अपनी शिक्षा पूर्ण करने के लिए उस लडकी की मौत इतिहास का एक पृष्ट बन कर रह जायेगी.पता नहीं कितने परिवार अपनी सुपुत्रियों को इस या अन्य किसी ऐसी ही घटना का नाम लेकर शिक्षा पूर्ण करने से वंचित करते रहेंगे.
ऐसी घटनाएँ कोई नयी नहीं .समाज में महिलाओं के इस प्रकार के
उत्पीडन को ” इव टीजिंग “का नाम दिया गया है. थोडा विश्लेषण करने पर जानकारी बढ़ी कि ये शब्द पाश्चात्य देन है तथा इसका उद्गम स्त्रोत सृष्टि के प्रारभ से एडम व इव से जुड़ा है.ऐसी घटनाएँ चली आ रही हैं बस स्वरूप बदल गया है.हमारे ग्रंथों में भी ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है .चाहे वो अहिल्या का प्रसंग मिलता हो या रामायण में सीता हरण,इसी प्रकार महाभारत में रुकमनी हरण आदि प्रसंग हैं. (उन सबके कारण व पृष्ठभूमि अलग हैं.) इतिहास के अनुसार विदेशी व मुस्लिम आक्रमणकारियों के आगमन के बाद ऐसी घटनाओं का प्रतिशत बढ़ता गया.उसके आंकड़ों के विषय में बहुत विश्लेष्णात्मक इसलिए भी नहीं कहा जा सकता कि इतिहास में सभी घटनाएँ उपलब्ध होना भी आवश्यक नहीं क्योंकि हमारे इतिहास को बहुत अधिक तोड़ामरोड़ा गया है.परन्तु इतना उल्लेख हर स्थान पर मिलता है कि अधिकतर सभी आक्रान्ताओं ने नारी जाति को अपनी संपत्ति समझा तथा दासियों के रूप में या बलात विवाह करके यहाँ से ले गए.नारी का सौन्दर्य सदा ही नारी का शत्रु रहा फिर चाहे वो विवाहिता हो या अविवाहित उसका अपमान हुआ.ब्रिटिश आक्रान्ताओं ने भी नारी जाति का दमन करने में कसर नहीं छोडी
इसके सर्वथा विपरीत हमारे यहाँ शिवाजी ,तथा नाना साहब सदृश उदाहरण हैं जिन्होंने विजय प्राप्त भी महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार नहीं किये.परन्तु आज हम न तो गुलाम है न कोई विदेशी हमारा शासक.फिर???????????????
आज हम स्वयं को आधुनिक, स्वतंत्र मानने का दावा भले ही करते हों परन्तु दिन हो या रात ,सुबह-शाम किसी भी समय को आप महिलाओं को सुरक्षित नहीं मान सकते..अश्लील कमेंट्स,छेड़छाड़ की घटनाएँ तेज़ाब लडकी के ऊपर डाल देना न जाने कितने वीभत्स रूपों में सामने आ रही है ये इव टीजिंग की घटनाएँ स्कूल,कालेज,कार्यस्थल,बस,अस्पताल,ट्रेन,ऑटो,प्लेन,मंदिर या फिर कोई अन्य सार्वजनिक स्थान कहीं भी सुरक्षा की गारंटी नहीं.l , विज्ञान के नए अविष्कारों के साथ ये घटनाएँ नए नए रूपों में सामने आ रही है.अभी कुछ समय पुरानी बात है जब राजधानी दिल्ली में ९ वी क्लास की लडकी का ऍम ऍम एस (अश्लील)भेजने की घटना चर्चित हुई थी.इसके अतिरिक्त भी नेट पर अश्लील तस्बीरें,ट्रिक फोटोग्राफी के प्रयोग से गंदी फोटो प्रेषित करना,सड़क पर जाती लडकी को टेक्सी में डाल कर ले जाना आदि ……………..
इन समस्त परिस्तिथियों में यदि लडकी के माता-पिता लडकी को समय असमय घर से बाहर भेजने पर डरते हैं तो उनका क्या दोष है? माना समय पंख लगा कर उड़ रहा है,परन्तु ऐसे वातावरण में हम आधुनिक,स्वतंत्र प्रगतिशील कैसे कहला सकते हैं.
यदि कारणों का विश्लेषण किया जाए तो इन घटनाओं के पीछे एक बड़ा कारण है प्रारम्भ से ही लड़के लडकी के बीच एक सीमा रेखा खींचना .”अति सर्वत्र व्रजेत ” परिवारों में बहुत अधिक वर्जनाएँ थोप देना भी नकारात्मकता को जन्म देता है.`एक स्वाभाविक उत्सुकता एक भिन्न परिवेश पाकर उछ्रंख्लता में परिणित हो जाती है.
सिनेमा,सस्ता साहित्य(चाहे वो इंटरनेट के रूप में हो या पत्रिकाओं के रूप में )इन घटनाओं की वृद्धि का कारण है.सिनेमा के गिरते स्तर ने प्रेम सदृश पवित्र रिश्ते को मज़ाक बना कर इतना गिरा दिया है कि शर्म आती है सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए ,अपनी टी आर पी बढ़ने के लिए आज चेनल्स कुछ भी दिखा सकते हैं.भद्दे नाच गानों को अनावश्यक रूप से आयटम सोंग के नाम से समावेशित किया जाता है इन गानों को जानबूझ कर फुल वोल्यूम में बजाया जाता है की सड़क पर निकलना दूभर हो जाता है…हमारी मानसिकता दूषित हो चुकी है ,संवेदनशीलता खत्म हो चुकी है .यदि किसी महिला के साथ कोई दुर्व्यवहार कहीं होता दिखाई देता है तो कोई आवाज नहीं उठाता अब ये सब गतिविधियाँ एक सामान्य बात लगती हैं.
दूरदर्शन,विज्ञापनों से भी मेरे विचार से इन गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलता है.सामान्य सी किसी वस्तु को प्रचारित करने में भद्दे तरीकों को आजमाया जाता है.चाहे वो साबुन हो डिटर्जेंट हो,टूथपेस्ट हो,या कोई अन्य वस्तु.
एक बार एक लेखक महोदय से मैंने इन घटनाओं के पीछे निहित कारण को पुछा तो उन्होंने कहा” जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन” उनके अनुसार दूषित दिनचर्या,नशीली वस्तुओं का खान-पीन में समावेश .कुछ हद तक ये तथ्य भी एक कारण है
वस्त्रविन्यास का भद्दा होना इन घटनाओं में वृद्धि होने का एक कारण है..सुंदर आकर्षक दिखना सबको अच्छा लगता है लेकिन शालीन वस्त्र विन्यास में आकर्षक नहीं लगा जा सकता???????????ऐसा तो कोई नियम नहीं.वैसे भी वस्त्र विन्यास स्थान के अनुरूप होना अच्छा लगता है.
कुछ सीमा तक अधिक समय खाली रहना भी “खाली मस्तिष्क शैतान का घर है “वाली कहावत को चरितार्थ करता है.दुसरे शब्दों में आवारागर्दी को प्रोत्साहन मिलता है.
ये घटनाएँ विश्व में होती तो सर्वत्र हैं परन्तु हमारे यहाँ विशेष रूप से उत्तर भारत में कुछ विशेष दिखाई देती हैं.दक्षिण में थोडा भिन्न रूप दिखाई देता है.

एक बार किसी से मैंने पुछा विदेशों में भी ये घटनाएँ होती होंगी तो उन्होंने बताया कि होती तो हैं पर वहां वातावरण में अंतर है,साथ ही लड़कियां आत्मसुरक्षा करने में सक्षम होती हैं.उन्होंने बताया कि आत्मसुरक्षा के लिए वहां लड़कियां पीपर स्प्रे (कालीमिर्च) टाइप साधन अपने साथ रखती है.एक अंतर उन्होंने बताया कि वहां लड़कियों को ये खतरा नहीं होता कि यदि उसके साथ कुछ अनहोनी होती है तो उसका विवाह नहीं होगा या उसका भविष्य असुरक्षित है
समस्या तथा समस्या के कारण पर विचार करने के बाद निदान पर जब आते हैं तो पिक्चर इतनी स्पष्ट नज़र नहीं आती अर्थात हमारे यहाँ का वातावरण इतना विषाक्त हो चुका है कि विष रहित करना तो अभी दूर का स्वप्न है परन्तु प्रयास करने पर नारी शक्ति को सुरक्षित किया जा सकता है.
सर्वप्रथम कानून को कठोरतम बनाया जाना जरूरी है.हमारे कानून इतने लचीले हैं कि सर्वप्रथम तो पीडिता के लिए भरी अदालत में न्याय मांगने के लिए पहुंचना ही कठिन ऊपर से ऐसे अश्लील प्रश्नुत्त्रों का सामना करना और उनका उत्तर देना.कैसे आशा कर सकते हैं की पीडिता सप्रमाण अपराध सिद्ध करने में समर्थ हो सकती है.जिसकी जान पर बन आयी है वो प्रमाण कैसे एकत्र कर सकती है,और जब तक अपराध सिद्ध न हो दंड अपराधी को मिलेगा ही नहीं .
लड़कियों में आत्मविश्वास होना बहुत आवश्यक है.हम लड़कियों को प्रारम्भ से ही दब्बू बना देते हैं तो वो किसी अपराधी का सामना करने का साहस कैसे जुटा सकती है.परिवार का पूर्ण समर्थन लडकी के साथ होने का आश्वासन उसके साथ होना चाहिए जिससे ऐसी किसी भी परिस्तिथि का खतरा होने पर या शिकार बनने पर वह एकाकी अनुभव न करे. उसका आत्मबल बना रहे.
लड़कियों को आत्म सुरक्षा के साधन किसी न किसी रूप में प्रदान किये जाने चाहिए.समय पर उनके प्रयोग के लिए समर्थ रहें इतना साहस उनमे हमें पैदा करना होगा.उनकी शिक्षा-दीक्षा यदि पूर्ण हो तो आत्मविश्वास की वृद्धि हो सकेगी उनमे.
.परिवार में छोटे बच्चों (लड़कों)को प्रारम्भ से ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाना चाहिए.परिवार का वातावरण यदि सकारात्मक हो तो कुछ भी गलत करने से पूर्व जरूर सोचता है,थोड़ी नैतिकता बनी रहती है.
महिला पुलीस की अंख्या में वृद्धि भी एक कारगर उपाय हो सकता है.अश्लील गानों को तेज आवाज में बजाये जाने पर प्रतिबंध होना चाहिए.
जैसा कि उपरोक्त पंक्तियों में मैंने लिखा है काम बहुत कठिन है मानसिकता बदलना इतना सरल नहीं परन्तु अपनी बेटियों को शिक्षित कर उनका ,आत्मविश्वास बढाकर,परिवार उनके साथ है ये विश्वास पैदा कर ,आत्मरक्षा के लिए समर्थ बनाकर हम उनको सशक्त,समर्थ स्वाबलंबी बना सकते हैं.

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