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हम भी इंसान हैं (बंद करो अत्याचार)

chandravilla
chandravilla
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bashingbashing

  • घर पर बर्तन झाडू-पोंचा आदि कार्यों में सहायतार्थ नियुक्त महिला के 3दिन निरंतर काम पर अनुपस्थित रहने के कारण (बिना सूचना के) समस्या हो रही थी.एक ओर घर में अतिथि उधर उसका गायब हो जाना, झुंझलाहट थी,अगले दिन घर आने पर देखा उसके हाथ ,मुहं.माथा सब जगह चोट .कारण पूछने पर कठिनाई से बताया कि उसके पति ने पिटाई की थी.सुनकर बुरा लगा. मैंने उसको कहा तुम दिन भर इतनी मेहनत करती हो ,घर का सारा बोझ तुम्हारे ऊपर है और तुम्हारा पति सारा दिन खाली रहता है घर में, क्यों पिटती हो उससे,मेरी आशा के सर्वथा विपरीत उसका उत्तर था,कोई बात नहीं बड़ा है मार लिया तो क्या हो गया,हमारे यहाँ ये सब चलता है.
    सरकारी अस्पताल में नियुक्त डाक्टर पति-पत्नी के मध्य पहले झगडा और फिर पति द्वारा पत्नी की पिटाई.ये कोई एक दिन की घटना नहीं दिनचर्या कहूं तो अनुचित नहीं होगा.शराब पीने के बाद अमानुषिक बने डाक्टर साहब अपने हाथों की खुजली पत्नी को पीटकर मिटाते थे.अति तब हुई जब एक दिन उन्होंने पत्नी के ऊपर गर्म चाय फ़ेंक दी.
    स्नातकोत्तर महाविध्यालय में विभागाध्यक्षा पत्नी को अभियंता पति ने इतनी जोर से तमाचा मारा कि उनके कान से खून आ गया.डाक्टर ने जांच करने पर बताया कि अब वो कभी उस कान से नहीं सुन सकेंगी.
    ये कोई काल्पनिक घटनाएँ नहीं वास्तविक हैं.इससे भी गंभीरतम मारपीट की घटनाएं हमारे चहुँ ओर घटित होती हैं.आप सबने भी समाचारपत्रों, दूरदर्शन तथा प्रत्यक्ष रूप से इनके विषय में सुना या देखा होगा जिनको सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और इनको व्यवहार में लाने वाले तथाकथित मानव
    (जिनमें प्राय पति ,प्रेमी) ही होते हैं जिसको पशु कहना मेरे विचार से पशु का अपमान है.
    ऐसी किसी भी घटना को घरेलू हिंसा का नाम दिया जाता है.घरेलू हिंसा का शिकार पत्नी,पति,बच्चे,कोई अन्य सेवक या परिवारजन हो सकता है.घरेलू हिंसा शाब्दिक,मानसिक,शारीरिक,आर्थिक,भावनात्मक या फिर यौन उत्पीडन के रूप में कोई भी घटना हो सकती है. विषय अधिक विशद न हो इसलिए इस कड़ी में घरेलू हिंसा कि शिकार पत्नियों के लिए लिए लिख रही हूँ.
    पति( चाहे वो सात फेरे लेकर बना हो या अन्य किसी भी पद्धति से, यहाँ तक कि प्रेमविवाह करने वाले भी जो लम्बे समय तक साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं,साथ रहते हैं ) पत्नी के साथ अमानुषिक अत्याचार करते थकते नहीं जिस लडकी को अर्धांगिनी बनाने के लिए इतने यत्न किये जाते हैं,जो लडकी अपने माता-पिता परिवार को छोड़ ,अपना करियर भी दांव पर लगा देती है, पतिगृह में अन्य लोगों के साथ स्वयं को समायोजित करती है,पति के विश्वास और प्रेम के आधार पर .ऐसे में पाशविक कृत्य करते हुए पति कैसे भूल जाता है कि उसने अग्नि को साक्षी मान कर उसके साथ फेरे लिए हैं या अन्य पद्धतियों में समाज के सामने उसका सुख-दुःख में साथ देने का वचन दिया है. ऐसा नहीं कि ये घटनाएं केवल उन पत्नियों के साथ होती हैं जो अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का मुकाबला करती हैं अपितु , सीधी-सरल पति को परमेश्वर मान लेने वाली पत्नियों को भी इनका शिकार होना पड़ता है.
    यदि इस प्रताड़ना या हिंसा के कारणों पर विचार किया जाए तो मेरे विचार से कारण सामने आते हैं वो निम्न हो सकते हैं
    (१) पति का शराबी होना ,बेरोजगार होने के कारण या अपनी किसी अन्य अक्षमता रूपी कुंठा से प्रभावित होना,पति का अहम् .
    (२)पत्नी का अधिक सक्षम,योग्य होना
    (३)पति का प्रारम्भ से ऐसे वातावरण में रहना अर्थात पारिवारिक पृष्ठभूमि
    (४) स्वयं पति का झगडालू होना.
    (५)अनैतिक सम्बन्ध (दोनों में से किसी के भी)
    (६) दहेज़ से सम्बंधित झगडे
    (७)अर्थ अभाव के कारण छोटे से छोटे व्यय पर झगड़ा बढ़ कर हिंसा में बदल जाता है.
    (८)स्वयं को शक्तिसंपन्न माने वाला पति पत्नी को कमजोर समझ मार-पीट करता है.अपनी खीज उतारने को बच्चों या पत्नी पर हाथ उठाता है.
    (९)फिल्मों या धारावाहिकों में दिखाए गये ऐसे वीभत्स दृश्यों से भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.अभी एक चैनल पर एक दृश्य देखा जो रोंगटें खड़े करने वाला था.दिखाया गया था कि वहशी पति (जबकि वो नशे में भी नहीं होता )अपनी असीम सुन्दरी ,कर्तव्यनिष्ठ पत्नी के पैरों को आग पर तपाई लोहे की छड से इसलिए जलाता है,जिससे वो उसको छोड़ कर ना चली जाय और घर पर ताले में बंद कर जाता है साथ ही उसके सभी सम्पर्क के साधन भी अपने नियंत्रण में रखता है.और जब वह उसको प्रताड़ित करता है तो पृष्ठभूमि में गीत बजता है,”हम तुम्हे चाहें इतना …………..ऐसा प्यार मेरे विचार से किसी पत्नी को नहीं चाहिए.साथ ही ये भी कहना चाहूंगी कि ऐसी किसी भी परिस्थिति में तो पत्नी को अविलम्ब अपने परिजनों को बताना चाहिए. सहन शीलता की सीमा होती है परन्तु सीमा से अधिक सहनशीलता या धैर्य ऐसे राक्षसों की दुष्प्रवृत्तियों को बढ़ावा देना ही है.
    उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त इसी प्रकार के तात्कालिक कारणों से ये घटनाएं होती हैं.जिनके चलते पत्नी को एक एक पैसे से लाचार बना दिया जाता है,किसी से सम्पर्क नहीं रखने दिया जाता,मायके वालों से भी एकदम सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाता है उसके साथ गाली-गलौज,हर समय कलह,भूखा रखा जाता है आदि आदि .ऐसा नहीं ये समस्याएं केवल हमारे देश में ही हैं विश्व्यापी समस्या है, बस अंतर कम ज्यादा का होता है.
    समाधान का जहाँ तक प्रश्न है परिस्तिथि के अनुसार ही समाधान की प्रकृति भी भिन्न होगी.एक नियम सभी मामलों में लागू नहीं होता.सामान्य उपायों में सर्वप्रथम तो झगडे को पारस्परिक विचार-विनिमय से सुलझाया जाना चाहिए यदि किसी समझौते या आपसी समस्याओं को सुलझाने से बात बनती है तो सर्वोत्तम है. .ये नहीं भूलना चाहिए”रहिमन धागा प्रेम का ” परन्तु ये तभी संभव है जब धागा प्रेम का हो पर यदि गंभीर तथा विपरीत परिस्थिति हो जाए अर्थात सभी उपाय निष्फल हो जाएँ तो? परिवारजनों या विवाह में यदि कोई मध्यस्थ रहे हों तो उनको समस्त विवाद से अवगत कराया जाना आवश्यक है.साथ ही अन्य कोई भी समझदार विश्वसनीय घनिष्ट मित्र आदि को भी विश्वास में लेना चाहिए.
    हिंसा की घटनाएं यदि सीमा से अधिक बढ़ जाएँ तथा जीवन को खतरा हो तो सावधान रहना जरूरी है .अपने परिजनों या पुलिस को भी सूचना देनी चाहिए घरेलू हिंसा की समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए सन २००५ में घरेलू हिंसा अधिनियम पारित किया गया था जिसके अनुसार उपरोक्त सभी प्रकार की हिंसाओं के विरुद्ध केस भी किया जा सकता है.यदि अपने प्राणों पर संकट है तो घर छोड़ना भी अंतिम उपाय के रूप में अपनाया जा सकता है.यथासंभव बड़े शहरों में किसी अच्छे एन.जी. ओ.की भी सहायता ली जा सकती है ..!
    एक महत्पूर्ण तथ्य ये भी है की परिवार जनों को ऐसी विपरीत परिस्तिथि होने पर बात को मामूली समझ कर लापरवाही नहीं करनी चाहिए उपरोक्त निरोधात्मक सभी उपाय केवल अंतिम विकल्प के रूप में ही अपनाए जाने चाहियें.
  • (ये आलेख गत वर्ष पोस्ट किया था कुछ परिवर्तनों के साथ इसको पुनः प्रकाशित किया है)
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