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सड़कों में गड्ढे या गड्ढों में सडकें (प्राण घातक सडकें )

chandravilla
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Picture 2आज प्रात समाचार पत्र दैनिक जागरण की पहली पंक्ति “रोड सबसे बड़ा किलर “पर दृष्टि पडी. इकतालीस लोगों की जीवन लीला समाप्त एक क्षण में ,इतनी सस्ता हो गया इंसान का जीवन कहा जाता है,”बड भाग मानुष तन पावा” जो मानव जीवन दुर्लभ कहा जाता है, जिसे प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं,उसका अंत अकारण………..! कितने परिवार पूरे पूरे तबाह हो गए ,कितने परिवारों का एकलोता चिराग बुझ गया,कितने ही परिवारों का अकेला धनार्जन करने वाला सदस्य परिवारजनों को भगवन भरोसे छोड़ दुनिया छोड़ गया. .घर से विदा देते समय जो प्रियजन घर से बाहर जा रहे हैं उनके लिए शुभ यात्रा की शुभकामनाएं देना एक प्रचलन है क्या वो सब कामनाएं निष्फल होने लगी हैं?प्रतिदिन समाचार पत्रों, में दूरदर्शन के समाचारों में काल का ग्रास बनने वाले जनों में सड़कों के कारण दुर्घटना में मरने वाले लोगों की संख्या ही सर्वाधिक होती है क़त्ल से मरने वालों की कम..प्राप्त आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष सडक दुर्घटना में मरने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है.गाज़ियाबाद कार्यालय के अनुसार प्रतिवर्ष मरने वालों में ५०० लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं,परन्तु वास्तव में ये संख्या कहीं अधिक है.ये आंकडें केवल पश्चिमी उत्तरप्रदेश के हैं.
सड़कों का सुव्यवस्थित,सुदृढ़,नियोजित होना किसी भी देश के पूर्ण विकास की एक आवश्यक शर्त है.यदि सड़कों पर उनकी क्षमता से अधिक भीड़ हो भीड़ चाहे वाहनों की हो या व्यक्तियों की, और सड़कें जर्जर .गहरे गड्ढों वाली हों रखरखाव शून्य हो तो स्वयं ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन पर चलने वाले वाहन या व्यक्तियों का जीवन कितना सुरक्षित है..
potholes1 एक अध्ययन के अनुसार हमारे देश में सड़कों के रखरखाव में जो धनराशी व्यय होती है वह सड़कों से प्राप्त होने वाले राजस्व का मात्र ३५% है ,जबकि,विकसित देशों अमेरिका,जापान,जर्मनी में ये क्रमश ९६%,१२८% व ८२% है.इसी प्रकार इंग्लैंड व आस्ट्रेलिया में भी लगभग इसी अनुपात में व्यय किया जाता है.
वर्ड बैंक के अनुसार सड़कों के मेंटेनेंस में १ dollar की कमी वाहनों पर होने वाले व्यय को २-३ गुना बढ़ा देती है.अतः सर्वप्रथम तो सड़कों की व्यवस्था को परफेक्ट रखने के लिए होने वाला अपेक्षाकृत अत्यल्प व्यय ,उसपर यातायात नियमों का भरपूर उल्लंघन,सड़कों की जर्जर व्यवस्था किस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचा रही है इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है.
वर्ड बैंक के सर्वे के अनुसार ४००० करोर से अधिक की धनराशी का नुक्सान प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं के कारण होता है.
सड़कों के रख-रखाव की कमी या सही सड़क निर्माण न होने के कारण वाहनों का मेंटेनेंस का व्यय १५% से ५०%तक बढ़ता है.
सड़कों पर चलने वाले अपनी क्षमता से कई गुना अधिक भार ढोते वाहन सड़कों की दुर्दशा के लिए दोषी हैं.
उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर तो देश की अर्थव्यवस्था को हानि पहुँच रही है,,,देशवासियों के लिए प्राणघातक सिद्ध हो रही है सडकें,वाहनों की आयु घटती है,वाहनों के रखरखाव पर कई गुना अधिक धन व्यय होता है,एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने के लिए समय अधिक लगता है,जर्जर सड़कों के कारण वाहन चालकों को अन्य व्याधियों से भी ग्रस्त होना पड़ता है.
अब इन आंकड़ों से हटकर यदि विचार किया जाए तो जो धन राशी व्यय की जनि चाहिए तथा जो सरकार द्वारा अवमुक्त की जाती है उसका भी एक बहुत छोटा सा प्रतिशत सड़क निर्माण पर व्यय होता है.एक ठेकेदार से एक बार जानकारी के लिए पुछा कि कितना` धन वास्तव में सड़क निर्माण में में व्यय होता है तो उसने बताया कि जहाँ १६ कट्टे सीमेंट का बजट पारित है वहां मात्र डेढ़ कट्टा सीमेंट व इसी अनुपात में अन्य निर्माण सामग्री प्रयोग होती है,उसके अनुसार ये तो प्रमुख मार्गों की दशा है.थोडा दूरस्थ स्थानों पर तो ये व्यय और भी घट जाता है.कारण पूछने पर बताया कि ये धनराशी निम्नस्तर के कर्मचारी से वरिष्ठ अधिकारी तक बंटती है तभी ठेका मिलता है तो इससे से अधिक सामग्री कैसे लगाई जा सकती है.
एक दिलचस्प तथ्य ये भी कि एक कालोनी की सड़क बनते समय स्थानीय निवासियों ने अपने योगदान से सामग्री की व्यवस्था करने की बात करी जिससे सड़क का निर्माण स्तरीय हो सके तो भी ठेकेदार ने मना कर दिया उसका कथन था एक बार इतनी अच्छी सड़क बननें पर आगे ठेका ही नहीं मिलेगा.
सड़कों के निर्माण के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने पर पता चला कि राष्ट्रीय राजमार्ग,राज्य राजमार्ग,जिले,नगर तथा उसके बाद ग्रामीण क्षेत्र में उनसे आगे भी सडकें बनबाने के लिए धनराशी विभिन्न स्तरों पर केन्द्रीय सरकार,राज्य सरकार से मिलती है तथा ये सडकें सांसद निधि,विधायक निधि,मंडी समिति जिला पंचायत,नगरनिगम,नगरपालिका, आदि विविध साधनों द्वारा प्राप्त धनराशी से बनाई जाती हैं प्राय इनके बनबाने का उत्तरदायित्व विकास प्राधिकरण का रहता है.राष्ट्रीय राजमार्गों का उत्तरदायित्व राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का होता है.राज्यों में सर्वत्र ये व्यवस्था एक समान नहीं है अथ स्पेसिफिक आंकडें जुटाना थोडा कठिन है.
ये तो समस्या है प्रश्न तो समाधान का है.मेरे विचार से सरलतम व सर्वोत्तम समाधान ये हो सकता है की हर स्तर पर दो बोर्ड्स का गठन हो जिनको फंड्स भी पर्याप्त प्रदान किये जाएँ .एक बोर्ड का कार्य सड़कों के निर्माण का हो और दुसरे का उसकी व्यवस्था व रखरखाव का. ये बोर्ड्स जिन माध्यम से भी सड़क निर्माण कराएँ सड़क बनाने की शर्त होनी चाहिए की सड़क कीटूटफूट एक निर्धारित समय से पूर्व नहीं हो.यदि होती है तो उसकी मरम्मत का उत्तरदायित्व उस बोर्ड का हो.सड़क निर्माण होने पर सही ढंग से परीक्षण हो तथा कोई भी कमी पाए जाने पर सम्बंधित बोर्ड को दण्डित किया जाए .आदर्श स्तिथि तो यही है सड़क निर्माण के लिए अधिक धन राशी तो अवमुक्त हो समय समय पर उनकी व्यवस्था को दुरुस्त कराया जाये.इस सन्दर्भ में नगरीय,ग्रामीण,जिले स्तर पर प्रबुद्ध,जिम्मेदार नागरिकों की समिति बनाई जाएँ उनकी भी सहभागिता हो .
एक महत्वपूर्ण तथ्य सडकें बनते ही कभी टेलीफोन विभाग तो कभी जलकल संस्थान,कभी विद्युत् विभाग पुनः तोड़ फोड़ करते हैं.इसी प्रकार गली मोहल्लों में भी छोटे छोटे कार्यों के लिए नागरिक सडकें खोद देते हैं,यहाँ तक कि किसी नेता को आना है तम्बू लगने हैं बड़े बड़े बोर्ड्स लगने हैं तो भी सडकें खोद कर बल्लियाँ आदि लगाई जाती हैं.इन सभी कार्यों पर इन समितियों का नियंत्रण होना चाहिए.
परन्तु प्रश्न फिर वहीँ आकर रूकता है कि पहले भ्रष्टाचार का सफाया हो अन्यथा सभी बोर्ड्स,सभी समीक्षा अधिकारी ,सभी जांच व्यर्थ है.परन्तु हमें ये स्मरण रखना होगा जब तक सड़कें दुरुस्त नहीं होंगीं तो हमारा व्यय उससे कहीं अधिक बढ़ता रहेगा,परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था खोखली होती रहेगी.जिस दिन कमीशन का काला धंधा खत्म होगा हमारी धन जन की हानि रुकेगी और न तो सड़कों में गड्ढे मिलेंगें न ही गड्ढों में सडकें.

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