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नज़र न लगे (हम भी नौकर हैं)

chandravilla
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कुछ शीर्षक अजीब सा लगा न……चलिए पढ़ते हैं ! आजकल हमारे देश के कुछ प्रान्तों में एक नए आतंकवादी का कहर बरप रहा है ,आतंकित तो वो सभी को करता है परन्तु उसके सबसे बड़े शिकार हैं गरीब लोग क्योंकि उनको प्रताड़ित करना जरा आसान होता है.वस्त्रों,भोजन का अभाव,सर पर या तो छत नहीं ,है तो जीर्ण-शीर्ण,जो चाहे ,जब चाहे जो चाहे हमला बोल देता है.जी हाँ ये आतंकवादी है,सर्दी .सर्दी का भयंकर प्रकोप देश के कुछ भागों में इस समय व्याप्त है.हमारा पश्चिमी उत्तरप्रदेश भी इसी श्रेणी में सम्मिलित है.
ऐसी सर्दी में घरेलू कार्यों में सहायता प्रदान करने वाली महिला जब २-३ दिन छुट्टी मारकर (बिन सूचना के) घर में घुसी तो बहुत गुस्सा आ रहा था,उसपर .गुस्सा करना चाह तो बहुत रही थी,क्योंकि उधर तो सर्दी का प्रचंड प्रकोप,मेहमान और मेहमानों के स्वागत सत्कार के काम बढ़ना ,उसके बाद कोई और सहायता करने वाला भी नहीं.,परन्तु उसकी हालत देखकर चुप हो गयी.फिर भी रुका नहीं गया तो कह ही दिया “,बिन बताये गायब हो जाती हो,ऐसे कैसे काम चलेगा”.उसने कहा “जी सर्दी बहुत थी,घ’र दूर है,इसलिए नहीं आयी” यद्यपि ये एक व्यवहारिक समस्या है परन्तु मानवीय दृष्टि कोण से देखा जाए तो हम सभी इस स्तिथि .का सामना करते हैं,बस अंतर केवल इतना है कि हम स्वयम को उनका स्वामी मान लेते हैं.जबकि हम जहाँ भी नियुक्त हैं किसी न किसी रूप में यही सब करते हैं.
आज का लेख घरेलू हिंसा की चतुर्थ कड़ी के रूप में आपके समक्ष रख रही हूँ,जिसके शिकार हैं नौकर-नौकरानी (पहले ऐसा कहना मुझको अच्छा नहीं लगता था ,फिर ये कहकर स्वयं ही लीपा-पोती कर दी कि नौकर तो सभी हैं,चाहे वो सरकार के हों,मल्टीनेशनल कम्पनी के,किसी अन्य कम्पनी,उद्योगपति के,प्रभु के या किसी भी अन्य के और हाँ स्वयं अपने घर के.)
एक बार किन्ही विद्ववान सज्जन से बात हो रही थी,मैंने स्वाभाविक जिज्ञासावश उनसे पूछा क्या “नज़र लगने वाली धारणा में सच्चाई है?” उन्होंने कहा “हाँ क्यों नहीं” ये बात जरा पच नहीं रही थी क्योंकि वहां बुद्धिजीवी समुदाय उपस्तिथ था.परन्तु उन्होंने जो उत्तर दिया ,वह मुझे यथार्थ लगा.उनका कहना था आप अपनी रसोई में भांति-भांति के सुस्वादु व्यंजन बनाती हैं,थोक में झूठे बर्तन मांजती है काम करने वाली महिला , स्वयं सब लोग चटखारे लेकर खाते हैं,उसको या तो दिया नहीं जाता या फिर बचा-खुचा देकर हम स्वयं को उदार मान लेते हैं.ऐसे में यदि ये कहा जाए कि उसकी कहीं न कहीं हमारे व्यंजनों पर नज़र रहे तो क्या गलत है. हमारे सामने कोई स्वादिष्ट भोजन खा रहा हो तो देख कर हमारी जीभ में भी तो पानी आता है तो फिर हमारे खाने को नज़र क्यों नहीं?…..ये यथार्थ है प्राय अधिकांश घरों में ऐसी व्यवस्था रहती है.बचा-खुचा खाने को देना,अपने ही पुराने वस्त्र जो हमारे लिए बेकार हैं,देकर स्वयं को दानी मान लेना,वेतन बढ़ाने की बात करने पर सौ सुनाना (अपवाद सर्वत्र हैं),छुट्टी मांगने पर भी असहज होना आदि आदि…….इसके अतिरिक्त कुछ घरों में तो बहुत ही गन्दा व्यवहार किया जाता है.गाँव में या शहरों के जरा दबंग परिवारों में तो नौकरों की पिटाई कर डालना आम बात है.नौकरानियों का यौन शोषण की घटनाएँ प्राय सुनने में आती हैं.परिवारों में बच्चे भी बहुत ही अपमानजनक व्यवहार करते हैं. कोई नुकसान होने पर वेतन आदि में कटौती भी प्राय की जाती है.

दुकानों या फेक्ट्री आदि में काम करनेवाले कर्मचारियों की पिटाई,परिवार को करने प्रताड़ित करने,जान से मरवा देने आदि की घटनाएँ समाचारपत्रों के माध्यम से पता चलती हैं.ये सत्य है कि किसी विवशतावश वो अपनी सेवाएँ आपको देते हैं.परन्तु इसका अर्थ ये भी तो नहीं होना चाहिए कि उनके जीवन पर अपना अधिकार मान लें हम.हमारे शहर में एक दबंग राजनीतिक नेता\ उद्योगपति ने किसी नौकर को इस्पात की भट्टी में फिकवा दिया तथा फेक्ट्री के बने छोटे घर में रहने वाले उसके परिवार का सामान सड़क पर फिकवा दिया .थोड़े दिन हल्ला मचा,फिर बात दबा दी गयी और दुर्घटना का रूप दे दिया गया.
सिक्के के दुसरे पहलु परविचार किया जाये तो समस्याएँ दुसरे पक्ष से भी हैं,.नौकर द्वारा मालिक-मालकिन की हत्या,चोरी-डकैती ,बच्चों का अपहरण कोई नयी घटनाएँ नहीं.इसी प्रकार आयाएँ जो कामकाजी महिलाओं द्वारा अपने शिशुओं को पालन करने के लिए नियुक्त की जाती हैं,उनके द्वारा छोटे बच्चों के साथ की जाने वाली अनुचित गतिविधियाँ बच्चों के लिए प्राण घातक तक सिद्ध होती हैं.एक बार सुना था कि बच्चे को जरा सी अफीम चटा कर स्वयं मौज करती थी,बच्चे की आया.बहुत दिन बाद पता चल पाया जब बच्चा धीरे धीरे कुछ सुस्त रहने लगा और उसका परीक्षण करवाया गया.
इसी प्रकार कभी कभी धन के लोभ में व बदले की भावना से प्रेरित हो कर भी पुराने सेवक जान के दुश्मन बन जाते हैं.
सिक्के के दोनों पहलुओं पर विचार करने पर निष्कर्ष यही निकल कर आता है कि आँख कान खुले रख कर अपनी सुरक्षा व्यवस्था हम कर सकते हैं.प्राय टी.वी. या समाचारपत्रों से पता चलता है कि फुलटाईम सेवकों की नियुक्ति से पूर्व उनका सत्यापन करना चाहिए.समय समय पर उनके विषय में परीक्षण करते रहना ही समझदारी है.
परन्तु जिनकी सहायता से हम अपने घर का कार्य सुचारू रूप से चला रहे हैं,जिस मौसम में हमारी नाजुकता इतनी बढ़ जाती है कि हाथ धोने के लिए भी गर्म पानी चाहिए,,ऐसे शीत में वो हमारे घर में पोछा लगाते हैं,,झूठे बर्तन साफ़ करते हैं या ऐसे समस्त कार्य जिनको करने में हमें कष्ट है ,सम्पन्न करते हैं,मई -जून की भीषण गर्मी में जब आप एयर कंडिशनर या कूलर में आराम करते हैं वो हमारे सारे काम करते कड़ी धुप व लू में एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाते हैं..उनके साथ मानवीयता का व्यवहार करना हमारा कर्त्तव्य बन जाता है.जिस प्रकार हम अपने नियोक्ताओं से कुछ सुविधा चाहते हैं वही हमारा भी कर्तव्य है.किसी भी प्रकार के शोषण से हमें बचना चाहिए.

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