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अपने सभी परिचितों व रिश्तेदारों में एक कोने से दुसरे कोने तक केसर प्रसाद जी मारे -मारे भटक रहे थे.उनको धन राशि चाहिए थी.कारण पूछने पर जवाब था “आवश्यक काम है”.एक तो धनवान से धनवान रिश्तेदार या सगे सम्बन्धी भी पैसा देने के नाम पर कन्नी काट लेते हैं और ऊपर से मिलने की आशा धूमिल तो कौन चक्कर में पड़े.निराश थे कुछ सूझ नहीं रहा था पर धुन लगी थी,अतः शांत कैसे बैठें.बेंकों में भी गए पर कोई सफलता नहीं मिली.हार कर अपने एक पुराने परिचित खिलाडी (खेलों में नहीं ) माया प्रताप, जिनके घर में काले कारनामों से कमाई गयी बेशुमार माया थी,,पहुंचे, .अपने मतलब की बात पर भी आ गए जल्दी ही.लेकिन इन सज्जन ने बिन कारण बताये बात आगे नहीं बढ़ाई तो केसर प्रसाद को बताना पड़ा कि चुनाव लड़ना है.केसर प्रसाद की किस्मत आज साथ दे रही थी, माया राम को केसर प्रसाद की इच्छा में कुछ स्वर्णिम भविष्य नज़र आया और हाँ कर दी.
अब तो फूले नहीं समा रहे थे केसर प्रसादजी.असल में कुछ विशेष कारणों से किसी नेता जी ने उनको टिकट दिलाने का वादा किया था,परन्तु चुनाव लड़ना कोई हंसी खेल तो है नहीं.बेशुमार धन लुटाने के लिए कहाँ से लायें.और आज तो उनकी मनोकामना पूरी हो गयी थी.,अब तो केसर प्रसाद जी की आँखों में सपने रहते थे,नए बंगले-कोठी ,फार्महाऊस ,चमचमाती नए नए माडल वाली गाड़ियाँ ,सुरा सुन्दरी,हवाई यात्राएँ देश-विदेश की ,कतार लगाये हाथ जोड़े खडी भीड़ और न जाने क्या क्या……….खैर ये स्वप्न शेखचिल्ली वाली कल्पनाएँ न होकर वास्तविकता में बदल गयी चुनाव में अपने आकाओं की सलाह मानकर साम,दाम दंड भेद सभी हथियार आजमा कर,शराब की नदी बहाकर और धन लुटा कर आखिर केसर बाबु चनाव जीत ही गए..चुनाव जीतकर केसर प्रसाद के गले में फूलों की कम नोटों की मालाएं अधिक थी,जीवित ही लोगों के कन्धों पर सवार हो कर जा रहे थे.जय जयकार हो रही थी.विजयश्री का वरण कर इन ताम-झाम से थोडा समय निकाल कर नए नेताजी पहुंचे माया राम जी के यहाँ मिठाई ,मेवों,फलो,फूलों और महंगे उपहारों से लदकर. .आवभगत हुई ठंडा गरम पिलाया गया.किस्मत विशेष मेहरबान थी केसर प्रसाद के ऊपर,सीट्स की खरीद फरोक्त के चलते मंत्री पद भी मिल गया .बस अब क्या था ,अब तो पाँचों अंगुलियाँ घी में थीं केसर प्रसाद की.
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उनके स्वप्न साकार होने लगे थे,शीघ्र ही गली का मकान छोड़ पाश कालोनी की बड़ी कोठी में शिफ्ट हो गए मंत्री महोदय.गाडी तो आलीशान मिल ही गयी.पत्नी बच्चों की ठसक भी देखने लायक थी.जो रिश्तेदार परिचित कोई मतलब नहीं रखना चाह रहे थे,आगे पीछे चक्कर काटने लगे.बच्चे भी भाषण देते थे कोई किसी टीम का कप्तान था तो दूसरा कम्पनी का मालिक जल्द ही बन गया था., पत्नी नित नए उदघाटन करती थीं,स्वयं नेता जी की तो पूछिए ही मत उनके तो ठाठ ही निराले थे.किसी जमाने में सात्विक से लगने वाले केसर महाशय के लिए सुरा अब दवा बन गयी थी. . विकास के नाम पर मिलने वाला धन उनका और उनके परिवार का खूब विकास कर रहा था.शहर की सड़कों पुलों ,अन्य आवश्यक कार्यों में लगाई जाने वाली राशि का अधिकांश भाग उनके बैंक बेलेंस को बढ़ा रहा था
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आज नेता जी का जन्मदिन था .बहुत बड़ा आयोजन उनकी देख-रेख में उनके अनुयायियों ने किया था..सामिष-निरामिष भोजनों के सभी व्यंजनों से पंडाल भरा था,आगुन्तुकों का रेला टूट नहीं रहा था.चमचे महंगे महंगे उपहार,फूल नोटों की गद्दियाँ सम्भाल कर रख रहे थे.मौज ही मौज थी आखिर नेता जी की पांचो…………………
!. ! एक बेटे ने शराब के नशे में अपनी गाडी से सड़क पर सोने वाले आश्रयहीन कई लोगों को इस जीवन से मुक्ति प्रदान कर दी थी.छोटे बेटे को अवैध हथियार रखने व किसी माफिया से दोस्ती रखने का आरोप में बंदी बनाया गया था.परन्तु ऐसे मामलों को निबटाना नेताजी के बाएं हाथ का कमाल था. .जो लोग मौत की नींद सो गए थे उनकी राजनीति करते हुए कुछ विपक्षी दलों ने हो-हल्ला मचाया भी तो नेताजी व उनके राजनीति पटु चमचों ने ले दे कर मामले निबटा दिए.दुसरे पुत्र के विरुद्ध सरकारी जांच बैठी परन्तु होना कुछ नहीं था ये नेताजी को पता था.अतः वह भी निष्कलंक साबित हो क्लीन चिट लेकर आगे की अपनी जुगत भिड़ाने में व्यस्त हो गया.
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अब तो नेताजी छोड़ उनके बच्चों का भी भविष्य सुरक्षित था. पाँचों अंगुलियाँ घी में जो थीं. परन्तु एक उत्कंठा सभी के मन में अवश्य होगी.आखिर मायाराम जी जैसे खिलाड़ी ने केसर प्रसाद की निस्वार्थ सहायता क्यों की.? मायाराम जैसे घाघ और निस्वार्थ?………………..वास्तविकता तो ये थी कि माया राम जी की कुछ बाध्यताएं ऐसी थी कि वो स्वयं चुनाव लड़ नहीं सकते थे,जातीय समीकरणों के कारण उनके रिश्तेदार को भी टिकट न मिलता ,केसर प्रसाद इस फ्रेम में फिट थे,टिकट और फिर जीत ऊपर से इन्ही समीकरणों से मंत्री पद की भी आशा थी.आशीर्वाद मायाराम जी का मिल गया.माया राम जी के सारे मंसूबे पूरे हो रहे थे.उनके काले कारनामों के कारण उनके ऊपर चलने वाले केसेस के कारण उनकी नैय्या को डूबने से बचने के लिए जिस खेवनहार की जरूरत थी,वो उन्हें केसर प्रसाद के रूप में मिल गया था.उसपर निवेश किया धन उनको ब्याज सहित वापस मिल गया था.
आज हमारे अधिकांश सत्ताधीशों की पाँचों (दसों भी कहें तो कुछ आश्चर्य नहीं) अंगुलियाँ घी में तो हैं परन्तु सर कढ़ाई में नहीं .क्या आपके पास ऐसे नेताओं का सिर कढ़ाई में पहुँचाने (उनको दण्डित कर सत्ताच्युत करने का )फ़ॉर्मूला है तो बताएं.
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