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भोली सी सूरत,बड़ा सा दिल (श्रद्धा सुमन)

chandravilla
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एक दिन अचानक किसी कार्यक्रम में श्रीमती पुंडीर से भेंट हुई.बातों- बातों में उन्होंने बताया मुकेश जी का बड़ा बेटा आजकल किसी कम्पनी में बहुत ऊँचे पद पर है तथा विदेश में ही उसको बड़ा सम्मान भी मिला है.समाचार जान कर अच्छा लगा परन्तु इससे भी बड़ी ख़ुशी इस बात के अगले भाग से हुई उन्होंने बताया कि जब उसको सम्मान प्रदान किया गया तो उसने अपनी माँ से सबका परिचय तो कराया ही एवं सम्पूर्ण श्रेय अपनी माँ को दिया.सच एक बार को तो मन द्रवित हो गया पर लगा इन सबमें मुकेश जी कहाँ खो गए वो तो फिर नेपथ्य में ही चले गए शायद ऊपरवाला कुछ लोगों को ऐसा ही चरित्र निभाने के लिए दुनिया में भेजता है..मै आपको कोई कहानी नहीं सुना रही हूँ वास्तविक घटना है ये.
मेरे दोनों बेटे छोटे थे. पूर्व में भी लिखा था कि मै व मेरे पति अपने बच्चों को हिंदी माध्यम से ही शिक्षा दिलाना चाहते थे,अतः हिंदी माध्यम में ही उनको प्रवेश दिलवाया.बच्चों के विद्यालय की व्यवस्था के अनुसार शिक्षक को अभिभावकों से सम्पर्क करना उस समय आवश्यक था.अतः एक दिन छोटे से कदकाठी वाले,चेहरे पर निर्दोष भोलेपन वाले कृशकाय ,जिनकी वयस भी अधिक नहीं थी,घर आये.उस समय बड़ा बेटा ही स्कूल जाता था उसने बताया कि वो उसके अध्यापक हैं.बड़े प्रेम से मिले,बात-चीत हुई,परिचय हुआ,थोड़ी देर बेटे के विषय में जानकारी ले-दे कर चले गए.लेकिन कोई विशेष बात न होने पर भी उनके चेहरे का भोलापन व अबोध छाप ने प्रभावित किया.
थोड़े दिन बाद मै स्वयं, बेटे के स्कूल गयी.प्राचार्य की आज्ञा से उसकी कक्षा के बाहर पहुँच गयी तो देखा एक बच्चा बेंच पर बैठा था और वही शिक्षक जमीन पर घुटनों के बल बैठ कर उसको कुछ सिखा रहे थे.कुछ अच्छा सा लगा क्योंकि सयुंक्त परिवार में रहने के कारण मेरा प्राय अन्य स्कूलों में भी जाने का रहता था,कभी इतनी लगन से मैंने किसी शिक्षक को पढ़ाते नहीं देखा था.मेरा बेटा कुशाग्र बुद्धि था अतः उनको उससे कुछ विशेष स्नेह ,लगाव था.धीरे धीरे घर में उनका थोडा आगमन बढ़ा हमारे परिवार से उनके सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए.
कुछ दिन बाद उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र बदला तथा बैंक में चले गए शायद वेतन का कम होना उसका कारण था..पारिवारिक सम्बन्ध बन चुके थे ,अतः मिलना -जुलना जारी रहा.,वैसे भी अब वो विवाहित थे.एक दिन उन्होंने किसी संस्था के लिए चंदा देने की बात कही,यद्यपि उन्होंने बहुत ही सकुचाते हुए ही कहा था,परन्तु हम भी संकोच में थे,खैर मेरे पति ने उनसे कहा लाओ आप अपनी रसीद बुक दिखाओ,जिससे शेष लोगों ने जैसे योगदान दिया होगा वैसे ही हम भी दे देंगें.रसीद देखी तो उन्होंने प्रथम रसीद अपनी ही काटी थी और अपना पूरे माह का वेतन दान दिया था.लेकिन इसका दिखावा वह नहीं करना चाह रहे थे. अब तो धर्मसंकट में पड़ने की बारी हमारी थी.उनकी स्वयं की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी और उसके बाद……..वैसे भी कोई भी अवसर हो उनका समर्पण भाव सदा रहता था.दो छोटे बच्चे भी थे,परन्तु वो यथार्थ में सब के लिए बने थे.उसके बाद भी किसी से कोई अपेक्षा नहीं,कोई शिकवा-शिकायत नहीं क्योंकि समाज में ऐसे लोगों का उपहास उड़ने वाले,आलोचना करने वालों की कमी नहीं.सर्वथा निस्पृह जीव थे वो.बैंक में भी अपना कार्य पूर्ण कर जरूरतमंद लोगों की मदद उनका ध्येय था.सत्यवादिता भी उनका गुण था उनके विषय में कहा जाता था की किसी भी बात की पुष्टि यदि मुकेश जी कर दें तो वह बात झूठ नहीं होगी.सबसे बड़ी बात उन्होंने अपने द्वारा किये गए किसी भी बड़े से बड़े कार्य का कभी किसी से जिक्र भी नहीं किया.इतने गुण व्यवहार में किसी भी व्यक्ति में……………….
एक दिन अचानक ही सुना की मुकेश जी इस दुनिया में नहीं रहे.धक्का लगा इतनी छोटी आयु,परिवार का उत्तरदायित्व,वृद्ध माता-पिता,कैसे होगा.सोचा ही सोचा परन्तु उनकी तरह महान बनकर कुछ किया नहीं.शायद हमारा या शेष परिचित लोगों का दिल उनके हृदय की विशालता के आगे कहीं था ही नहीं.कोई कहता है,उन्होंने आत्महत्या की,कोई कहता है उनकी हत्या हुई जो भी हो परिवार को अधर में छोड़ वो उस दुनिया से जो उनके लिए नहीं बनी थी चले गए.शायद जिसकी आवश्यकता मानव जाति को है,वही प्रभु को प्रिय है.
पत्नी की शिक्षा-दीक्षा अधिक नहीं थी बस सरकार की अच्छी नीति के कारण उनको उसी बैंक में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का कार्य मिला और अपने परिवार का दायित्व निभाते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण कर सकीं.उनके बच्चे मेधावी निकल गए और बड़ा बेटा आई आई टी टोपर बना छात्रवृत्ति के बल पर शिक्षा पूर्ण कर आज करियर के शीर्ष पर है.छोटा भी आई आई टी.से . इंजीनीरिंग की पढाई कर रहा है .आत्मसंतोष अनुभव किया चलो शायद उनके सद्कार्यों के कारण ही ऐसा हो सका.,और वो महिला कम से कम अपने बच्चों से वो पा सकी जिसकी वो अधिकारिणी थीं.
आज उनको स्मरण करने का कारण है उनका जन्मदिन मेरे विचार से श्रद्धा के योग्य ऐसे ही लोग हैं जो गुमनाम रहते हुए समाज व देश के प्रति अपने निर्धारित योगदान को पूर्ण करने का प्रयास करते हैं. नमन उनको.

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