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घर के पास एक दुकान पर जिस पर साईबर केफे का बोर्ड लगा था, नित्य सुबह,दोपहर,सायं स्कूल जाने वाले बच्चों के वाहन दीखते थे जब कि उस दुकान पर ऐसी कोई सामग्री विक्रय हेतु रखी दिखाई नहीं देती थी ,उत्सुकता वश एक दिन सुबह के समय मै उस दुकान में गयी यही देखने के लिए कि सुबह ही सुबह स्कूल के समय में बच्चे ऐसा क्या महत्पूर्ण कार्य कर रहे हैं. पहले तो दुकानदार अंदर जाने नहीं देना चाह रहा था,फिर भी मै जबरदस्ती अंदर चली गयी तो देखा हर पी सी के आगे रही सीट पर दो दो बच्चे लदे हैं और सब पर अश्लील भद्दी साईट्स खुली हैं.सर्वथा असुविधाजनक स्तिथि होने के कारण मुझे तुरंत ही बाहर आना पड़ा.बहुत देर तक मस्तिष्क में बच्चों की साईट्स पर तल्लीनता,स्कूल छोड़ कर वहां जमे रहना ,माता-पिता को धोखे में रखना ,भविष्य अंधकारमय बनना आदि तथ्य मस्तिष्क में घूमते रहे.क्या होगा देश का?समाज का, आगामी पीढी का? कोई उत्तर नहीं सूझा.
इन्टरनेट के विषय में मुझको बचपन में पढ़ा एक उदाहरण याद आ रहा है जो हम “विज्ञान वरदान या अभिशाप “पढ़ते समय पढ़ते थे,कि यदि हमारे हाथ में चाकू है तो हम किसी की जान भी ले सकते हैं,अपने अंग को क्षति पहुंचा सकते हैं,यदि सदुपयोग हो तो फल,सब्जी काटने के अतिरिक्त कुछ भी सकारात्मक कर सकते हैं इसी प्रकार .इन्टरनेट ज्ञान का महासागर है,उसमें जितना चाहे गहनता में जाकर हम नयी नयी जानकारियां घर बैठे एक क्लिक से प्राप्त कर सकते हैं ,इसके सर्वथा विपरीत अश्लील साहित्य,फ़िल्में या साईट्स पर जाकर बच्चे कच्ची आयु में भ्रमित हो कर अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं.इन साईट्स पर आकर्षक लुभावने जाल फ़ेंक कर बच्चों को अपनी फोटो आदि डालने को कहा जाता है,जिसका कुछ भी दुरूपयोग हो सकता है लड़कियां तो एक बार इनके चक्र में फंस कर इस दलदल से बाहर आ ही नहीं पाती..बड़ी धनराशि के ईनाम का लालच देकर खातों में से धन गायब किया जाता है एक बार इनके जाल में फँसना सरल है पर निकलना लगभग असंभव.कई बार तो इनसब से त्रस्त आकर बच्चे आत्महत्या तक को विवश हो जाते हैं..
वास्तविकता पर दृष्टिपात किया जाय तो साइबर केफेज का हमारे देश में जिस समय चलन हुआ था तो इंटरनेट सुविधाएँ आम नहीं थीं अतः ये आम व्यक्ति के लिए एक विशिष्ठ सुविधा थी तथा बिजनस का एक साधन.आज तो नेट सुविधाएँ घर घर हैं ,चाहे वो कम्प्यूटर के रूप में हो या फिर मोबाइल के माध्यम से.लेकिन नेट का दुरूपयोग भी सरल हो रहा है.साइबर अपराधों पर लेख भी लिखे गएँ हैं जिनसे हमें कुछ जानकारी मिलती है.परन्तु स्कूल जाने वाले बच्चों द्वारा इस वरदान का सर्वाधिक दुरूपयोग देखा जाता है.यही कारण है कि वो अपना ट्यूशन व स्कूल जाने का समय यहाँ बिता ते हैं. इसका एक कारण यह भी है कि परिवारों में थोडा बहुत तो लुका छिपी रहती है,और यहाँ तो कोई रोक टोक है ही नहीं १० से १५ रु घंटे पर बच्चे अपना समय यहीं बिताते हैं कहने को वीडिओ गेम खिलाये जाते हैं बच्चे अपनी पढ़ाई से सम्बन्धित कार्य करते हैं पर वास्तविकता यह नहीं है. बच्चों का भविष्य निर्माण का समय यहीं व्यतीत होता है..चरित्र निर्माण की बात हम करते हैं परन्तु क्या ऐसे चरित्र निर्माण होगा.?वो तो अब एक स्वप्न है.कच्ची उम्र,अपरिपक्व मस्तिष्क,और भ्रमित करती ये साईट्स.
नशे का घिनौना व्यापार एक अन्य मार्ग है पतन का.छोटे छोटे बच्चे सिगरेट,बीडी के कश लगाते तो दिखाई देते हैं,आफत की पुडिया गुटका जो सबसे सरल सस्ता साधन है तन को बर्बाद करने का , अधिकांश नौनिहालों को अपनी गिरफ्त में ले रखा है.कोल्ड ड्रिंक्स तो हम सब को अपना गुलाम बना ही रहे हैं,इनके साथ शराब मिला कर बेचा जाना,फ्रूट जूसेस के साथ शराब मिक्स कर बेचना,कहाँ कहाँ तक गिने सरकार द्वारा खोले गए पब्स ……………..कोई चोरी नहीं पहले बीयर और बीयर के साथ शराब की आदत डालो ,अपने विनाश को न्यौता दो.
इन के पश्चात नम्बर आता है चोरी छिपे बेची जाने वाली नशीली वस्तुएं जो तस्करी के माध्यम से आती हैं और महेंगे दामों पर बिकती हैं. छोटे छोटे बच्चे चाहे वो घर से पैसे चुराएँ ,पुस्तकें,घर का सामान बेचें परन्तु इसके अभाव में नहीं रह पाते.पहाड़ों में नशे के आदि लोग गरीबी में जीवनयापन करने के लिए विवश हैं.धनवान परिवारों में तो ये रोग पूर्ण चरम पर है.यद्यपि ऐसे अधिकांश कार्यक्रम पुलिस के संरक्षण में ही चलते हैं परन्तु छापे आदि मारने पर भी कुछ विशेष लाभ नहीं हो पाता.
यदि इन सबके कारणों का विश्लेषण किया जाय तो बचपन से बच्चों पर ध्यान न दिया जाना,स्वयं माता-पिता का नशेडी होना,साथियों का नशे की लत से पीड़ित होना अर्थात उचित माहौल का न मिलना,कभी कभी बच्चों के हाथ में खुला पैसा होना,बच्चों में नैराश्य,पढ़ाई का दवाब आदि कारणों से बच्चे इन का शिकार बनते हैं.प्राय एक दुसरे की देखा -देखी प्रारंभ हुआ ये शौक एक लत बन जाता है.
प्रश्न तो ये उत्पन्न होता है कि समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं और निकालने का हल नहीं सूझ रहा है.हमारे बच्चे जो हमारा कल हैं विनाश के गर्त की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं केवल संस्कारों का नाम ले कर उन को बचाना संभव नहीं है. संस्कार देने के लिए जो वातावरण वांछित है वो अपवाद स्वरूप में चंद परिवारों में ही दीखता है.कैसे पार लगेगी नैय्या हमारी ?ये एक ज्वलंत प्रश्न है जिसका उत्तर हम सबको मिलकर खोजना होगा.संभवतः कुछ लोगों को लगता हो ,ये उनकी व्यक्तिगत समस्या नहीं ,परन्तु यहाँ हम गलत हैं.समाज,राष्ट्र से जुडी हर समस्या सब को प्रभावित करती है.सरकारी प्रयास यदि ईमानदारी से किये जाएँ तो कुछ लगाम कसी जा सकती है,परन्तु सामूहिक प्रयास के अभाव में हल नहीं निकलने वाला.
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