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१८५७ की क्रांति और मेरठ (द्वितीय भाग)

chandravilla
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iln1857मेरठ में क्रांति के श्रीगणेश का चित्र (नेट से साभार)
ऐतिहासिक प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम १८५७ ने मेरठ जिले को अन्तराष्ट्रीय महत्ता प्रदान की,क्योंकि क्रान्ति का वास्तविक श्री गणेश यहीं हुआ था.मंगल पाण्डेय के बलिदान को स्वर्णाक्षरों में अंकित कराने में महत्पूर्ण भूमिका का निर्वाह मेरठ छावनी के वीरों ने ही किया.मंगल पाण्डेय को फांसी के तख़्त पर लटकाकर अंग्रेजों को शांति या चैन मिलना और भी दुष्कर हो गया मंगल पाण्डेय तो क्रांति के नायक बने ही परन्तु उनके द्वारा बोये गये .असंतोष के बीज प्रस्फुटन की प्रतीक्षा कर रहे थे, और इसके लिए सर्वाधिक उर्वर भूमि मिली मेरठ में..
२४ अप्रैल को गोरों द्वारा अपनी कुटिल चाल पुनः चली गयी .इस बार ये कुचक्र मेरठ में चलाया गया जब ९० सैनिकों की टुकड़ी को पुनः वही कारतूस प्रदान किये गये.हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही अपने धर्म के प्रति निष्ठावान थे और उनको अपमानित करने की या उनका धर्मभ्रष्ट करने की भावना से अंग्रेजों ने उन सैनिकों को सूअर व गौ की चर्बी वाले कारतूस दिए जिनको प्रयोग करने से पूर्व मुख से खोलना अनिवार्य था.धर्म पर प्रहार न सहन करते हुए लगभग ८५ रन बांकुरों ने उनको प्रयोग करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया.अहंकारी व स्वयं को श्रेष्ठ मानने वाले अंग्रेज अपनी अवज्ञा कैसे सहन कर सकते थे ,अतः उन सैनिकों को १० वर्ष का कठोर कारावास,कोर्टमार्शल तथा अन्य कठोर दंड घोषित किये गये.९ मई के दिन उन सभी लोगों का सरे आम न केवल अपमान किया गया,उनकी वर्दी उतरवाई गयी,अपितु अमानवीय रूप से जेलों में ठूंस दिया गया,
अग्नि में घी डालने वाली इस घटना ने सैनिकों को आग बबूला कर दिया और १० मई को जब अंग्रेज चर्च जा रहे थे,अन्य कार्यों में लगे थे इन सैनिकों ने , जहाँ भी अवसर मिला जो भी अंग्रेज मिला मार गिराया.जेल तोड़ दी गयी और अपने साथियों को मुक्त कराया गया.इस कार्य में भरपूर सहयोग दिया जेल रक्षक ,कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने.उसने इन विद्रोहियों को जेल से भागने में भरपूर सहायता दी.
310px-KotwalDhanSinghGurjarMeerut९( कोतवाल धन सिंह गुर्जर.)
स्वाधीनता संग्राम में मेरठ के वीरों का यह अभियान द्रुत गति से आगे बढ़ा और क्रान्ति की यह मशाल अपने पथ के अग्रिम पड़ाव दिल्ली पहुँच गयी ११ मई को.जहाँ अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफ़र को अपना नेता घोषित कर दिया.

(गौरवमयी क्रान्ति १८५७ की ……..पर आलेख ९ मई को प्रकाशित हुआ था,उस पर आयी प्रतिक्रियाओं के सम्मान में क्रान्ति में मेरठ के विशेष योगदान पर यह संक्षिप्त लेख प्रस्तुत किया गया है)

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