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माया! दलितों की पुकार तो सुनो! ( jagran junction फोरम)

chandravilla
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                                                             < विश्व की सर्व प्रभावशाली ८ शीर्ष महिलाओं में स्थान प्राप्त करने वाली (newsweekपत्रिका के अनुसार ) देश के सबसे बड़े प्रांत( जनसंख्या के दृष्टिकोण से) में शीर्ष पद पर शोभायमान सुश्री मायावती के भाग्य से किसको ईर्ष्या नहीं होगी? एक ऐसा वर्ग जिसको हमारे समाज में सर्वाधिक उपेक्षा,अपमान सहना पड़ा हो,जिस वर्ग के किसी व्यक्ति का सामने आना अशुभ माना जाता हो,अपने सामने बैठने की अनुमति भी समाज न देता हो,जिनके पानी के कुँए अलग हों,ईशस्थानों में जाना वर्जित हो,सामान क्रय करने के लिए दुकानें भी अलग हों,उस वर्ग का कोई व्यक्ति और वो भी महिला इतने शीर्ष पद पर …………………कौन कल्पना कर सकता था,कि व्यवहारिक रूप में ऐसा संभव है.,ये भाग्य है,चमत्कार या उस व्यक्तित्व का परिश्रम? (दलितों की जो स्थिति ऊपर वर्णित है,भले हो आज उसमें परिवर्तन आया हो परन्तु अभी भी स्थिति कम भयावह नहीं)
                                                                 राजनीति में शीर्ष पर पहुँचने के लिए,प्राय परिवार की राजनैतिक पृष्ठभूमि,आर्थिक समृद्धता,वंश परम्परा ,कोई god फादर सरीखी शख्सियत का साथ या फिर भाग्य की भूमिका होती है.और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो ये अनिवार्य शर्तें हैं.इनमें से किस कारक का योगदान सुश्री मायावती को शीर्ष पर पहुँचाने में सहयोगी बना ,यह देखने के लिए संक्षेप में उनके जीवन से परिचित होना पड़ेगा.
                                                      एक निम्न मध्यमवर्गीय सरकारी लिपिक की ७-८ संतानों में एक मायावती ऩे अपनी विधि स्नातक तथा शिक्षा स्नातक (शिक्षा शास्त्र) की शिक्षा दिल्ली व गाज़ियाबाद से पूर्ण की.कुछ समय उन्होंने शिक्षण का कार्य किया.भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने की इच्छुक मायावती पर भाग्य संभवतः बहुत अधिक कृपालु था.
                                                    दलित राजनीति में मसीहा रहे श्री कांशीराम दलितों तथा पिछड़ों को संगठित करने में जुटे थे,मायावती उनके साथ ही सक्रिय हुईं तथा १९८४ में जब उन्होंने समाज के बहुजन अर्थात दलितों ,अनुसूचित जनजातियों आदि को संगठित कर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की तो एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में मायावती उनके साथ जुट गयीं.उन्होंने १९८४, में कैराना (मुज़फ्फरनगर)१९८५ में बिजनौर से तथा १९८७ में हरिद्वार से लोकसभा के लिए बहुजन समाज दल की प्रमुख कार्य कर्त्री रहते हुए लड़ा. कभी दूसरे कभी तीसरे नम्बर पर रहते हुए मायावती ऩे साहस के साथ कांशी राम तथा तथा राजनीति का दामन नहीं छोड़ा` और उनका परिश्रम रंग लाया.कहा गया है
                               उद्यमेन ही सिद्ध्यन्ते कार्याणि न….
                                                अंतत १९८९ में लोकसभा चुनाव जीत कर उन्होंने ये सिद्ध भी कर दिया.यद्यपि सत्ता तो बहुजन समाज पार्टी को नहीं मिली परन्तु उनकी पहिचान बढ़ती गयी.१९९६ में राज्य सभा में स्थान लेकर उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद अल्प समय के लिए संभाला.१९९७ में पुनः थोड़े ही समय के लिए उनको मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने का सुअवसर मिला.इसी मध्य कांशी राम जी ऩे मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और फिर तो मायावती का जादू ऐसा दिखाई दिया कि मान्यवर काशीराम ही उनके अनुयायी से बन कर रह गये. मायावती की पहिचान बढ़ती गयी.२००२ -२००३ तक पुनः उनको भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने का अवसर मिलगया और फिर गद्दी पर अधिकार.
                                              मायावती की राजनैतिक परिपक्वता बढ़ती गयी और ब्राह्मणों ,क्षत्रियों तथा बनियों को जूते मारने का आह्वान करने वाली मायावती ऩे ये समझ लिया कि केवल दलितों के आधार पर अपना वर्चस्व बनाये रखना कठिन है,अतः उन्होंने अपनी योजना में बड़ा परिवर्तन करते हुए “;हाथी नहीं गणेश है,ब्रह्मा विष्णु महेश हैका नारा दिया.; इस परिवर्तित नीति के चलते सवर्ण विशेष रूप से ब्राह्मण समुदाय ,मुस्लिम तथा अन्य पिछड़े लोग उनके समर्थन में आ खड़े हुए.परिणाम भी अप्रत्याशित रहे और भारी बहुमत से विजय श्री का वरण कर चौथी बार २००७ में मुख्यमंत्री बनीं और उत्तर प्रदेश समय समय पर हाथी तथा नीले झंडों से पता दिखने लगा.
अपने इसी मुख्यमंत्रित्व काल में अब उन्होंने स्वतंत्र हो कर निर्णय लिए तथा रोज़गार वितरण,निर्धन कन्याओं को पढ़ाई व विवाह के लिए धन दिया.और नारा दिया उत्तर प्रदेश को ;उत्तम प्रदेश ; बनाने का.
पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह के काल में हुई अनियमितताओं को सुधारने के लिए मायावती ऩे आई पी एस अधिकारियों को निलम्बित कर अपने व्यवस्था सुधारक होने का दावा किया.
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वर्तमान में सबसे धनी मुख्यमंत्री कही जाने वाली मायावती को लगभग ८६ करोड़ रु की मालकिन बताया जाता है(ये आंकड़ा पुराना है,वर्तमान में नॉएडा व ग्रेटर नॉएडा भूमि अधिग्रहण मामलों के बाद इस कोष का आकार “;दिन दुनी रात चौगुनी”; प्रगति पर है..प्रश्न उत्पन्न होता है कि एक सामान्य कार्यकर्त्री के रूप में अपना राजनैतिक सफ़र शुरू करने वाली मायावती भारत की समृद्धतम मुख्यमंत्री कैसे बन गयीं.इसके अतिरिक्त भी मूल्यवान आभूषणों तथा हीरे जवाहरात का भी उनको शौक है.और उनका कोष भी बहुत समृद्ध है.
रिक्त बैंक बेलेंस वाला कोई भी व्यक्ति यदि इतना समृद्ध बनता है तो अंगुली उठनी स्वाभाविक है.मात्र वेतन और अन्य प्राप्त सुविधाओं के दम पर तो इतनी सम्पत्ति अर्जित नहीं की जा सकती .एक प्राचीन कहावत है “;आटे में नमक खप सकता है,नमक में आटा नहीं” ; अर्थात थोडा बहुत तो क्षम्य हो सकता है,क्योंकि वर्तमान राजनीति पूर्णतया पंकिल हो चुकी है,परन्तु इतनी सम्पन्नता !
आर्थिक भ्रष्टाचार के संदर्भ में यदि बात की जाय मुख्यमंत्री मायावती के दामन पर भ्रष्टाचार के अनेकों मामलों के छीटें ही नहीं अपितु पूरा दुपट्टा ही दागदार है.(सलवार सूट पहनती हैं वो)
u p हेल्थ स्केम जो सुश्री मायावती की चिंता का कारक हो सकता है, और जिसके अंतर्गत पहले दो सी.एम्.ओ का कत्ल और फिर उनके क़त्ल के आरोप में आरोपित डिप्टी सी.एम् ओ, सचान का क़त्ल सब कुछ संदिग्ध है.(वास्तविकता कभी सामने आ ही नहीं पाती क्योंकि केवल बदले की भावना से विरोध का स्वर बुलंद होता है,और बाद में अपने स्वार्थ के चलते सब मामले अँधेरे में ही दफ़न हो जाते हैं.आरोपी और आरोपित सब हाथ मिला लेते हैं.)
शेष भ्रष्टाचार के मामलों में भी भूमि अधिग्रहण उत्तर प्रदेश सरकार का प्रचार व प्रकाशन अभियान का ठेका., चीनी मिलों के आवंटन,माईन्स का ठेका दिया जाना,वृद्धों,विधवाओं ,अपंगों की पेंशन आदि के घोटाले सारी कहानी स्वयं ही कह रहे हैं.
सरकार की कमाई का एक बड़ा साधन है,; स्थानान्तरण व्यवसाय जो मायावती के राज में सबसे अधिक फलफूल रहा है. स्थानान्तरण के रेट नम्बर दो की कमाई के अनुपात में निश्चित हैं, जितनी कमाई उतना बड़ा कमीशन के रूप में धन. स्थानान्तरण व नियुक्तियों की स्थिति उत्तर प्रदेश में इतनी शोचनीय है,कि कई बार तो अधिकारी अपना सामान भी नहीं खोल पाते कि उनका स्थानान्तरण अन्यत्र हो जाता है.स्थानान्तरण पर जो सरकारी धन व्यय होता है,उसकी चिंता कौन करे? वो तो सरकारी धन.और ऐसी मुहम्मद तुगलकी नीतियों के कारण सरकारी कामों में जो व्यवस्था का अभाव व विलम्ब रहता है वो अलग.
_47482474_garland466afp लाखोंके नोटों का ये हार महारानी मायावती को जन्मदिन पर पहिनाया गया था.
जन्मदिन मनाने के लिए पूरे प्रदेश से मुफ्त में बसें ,गाड़ियाँ ट्रक्स आदि अधिग्रहित कर जो शक्तिप्रदर्शन होता है,वो आश्चर्यजनक है,असलियत में तो धनार्जन का सबसे बड़ा स्त्रोत है.अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मोटी थैलियाँ,हीरे जवाहारात वाले आभूषण धन कुबेरों द्वारा उनके चरणों में भेंट चढ़ाई जाती है.और काली कमाई जो ऐसे एक हज़ार स्त्रोत्रों से एकत्र होती है,उसको उपहार बता दिया जाता है.
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दलितों व समाज के अति पिछड़े वर्गों के संरक्षण के लिए बने कठोर क़ानून, सम्पूर्ण देश में उत्तर प्रदेश में दलितों की सर्वाधिक जनसंख्या होना उत्तर प्रदेश की जनसँख्या में भी लगभग २१.५% दलितों का होना,इतने लम्बे समय तक दलित मुख्यमंत्री महिला का अस्तित्व में होना, , और फिर भी उसी वर्ग की महिलाओं के साथ बलात्कार व उत्पीडन,उन निरीह अनपढ़ महिलों पर अत्याचार,दबंगों द्वारा सबके देखते-देखते गोलियों से छलनी कर दिए जाना,उनके झोपड़ें जला डालना,निर्वस्त्र कर महिलाओं को गाँव में घुमाना,उनके मासूम बच्चों पर अत्याचार ,शारीरिक -मानसिक उत्पीडन …………………क्या ये स्वतंत्र भारत की सुखद तस्वीर हो सकती है?.
( आंकडें न देने का कारण है,आंकडें विश्वसनीय न होना.सरकारी पक्ष आंकड़ों को लीपापोती कर तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करता है विरोधी पक्ष उनमें मिर्च मसाला लगाकर).

यद्यपि मुख्यमंत्री मायावती के प्रवक्ताओं तथा सरकारी आंकड़ों में इन अत्याचारों का ग्राफ अधोगामी या गिरता हुआ दिखाया जाता है,परन्तु यह वास्तविकता नहीं क्योंकि वास्तविकता तो यह है कि वर्तमान समय में अधिकारीवर्ग भी मुख्यमंत्रियों के गुलाम बनने को मजबूर से हैं.अपनी नियुक्ति,नौकरी बचाय रखना, अनचाहे स्थानान्तरण या निलंबन से बचना ,अपना जीवन बिन बुलाई मौत या कत्ल से बचाना. आदि.अतः सर्वप्रथम तो रिपोर्ट लिखी ही नहीं जाती या फिर उस रिपोर्ट को ऐसी धाराओं में बदल दिया जाता है कि वो सामान्य केस बन कर रह जाता है.निर्धन लोगों को डरा धमका कर वापस भी करा दिया जाता है मायावती के निरंकुश आदेशों के चलते पुलिस अधिकारी रिपोर्ट न लिखने में ही अपनी सुरक्षा मानते हैं..
निश्चित रूप से माया राज की यह कहानी कोई सुन्दर चित्र प्रस्तुत नहीं करती . माया अपने माया संग्रह में खोयी हैं,दलितों की याद उनको चुनाव से पूर्व आयेगी जब दिन रात एक करते हुए उनको भाषण देने होंगें और उससे पूर्व सरकारी कोष में और धन कब्जाने के लिए घोषणाएं कर दी जायेंगीं. और उन घोषणाओं का धन किसको सुखी बनाएगा निर्धन दलितों को?………

परन्तु मैं अंत में पुनः ये कहना चाहूंगी की जब तक एक सकारात्मक मज़बूत विपक्ष का विकल्प मतदाताओं के सामने नहीं होगा,मायावती, मुलायम सिंह सदृश नेताओं को सबक नहीं सिखाया जा सकता अन्यथा एक विदा होगा दूसरा उपस्थित और भी अधिक दुश्चक्रों के साथ.

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