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नारी नहीं बेचारी,(शक्ति पहिचानो) jagran junction forum

chandravilla
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                                                                            भारतीय नारी तो स्वयं शक्ति स्वरूपा है,बस आवश्यकता है,कि वह स्वयं अपनी शक्ति पहिचाने और उसकी शक्ति को यथेष्ठ मान्यता प्राप्त.हो.

                                                                 राष्ट्राध्यक्ष,प्रधानमन्त्री देश को पर्दे के पीछे से चलाने वाली कांग्रेस अध्यक्षा,मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष,प्रमुख न्यायाधीश,सैन्यधिकारी,सर्वोच्च पुलिस अधिकारी(के रूप में वर्तमान या पूर्व में ),हिमालय की चोटी पर विजय प्राप्त कर भारतीय ध्वज फेहराने वाली,ऑटो रिक्शा से लेकर वायुयान तक उड़ाने वाली,घर,खेत खलिहानों ,में,,प्रबंधन ,चिकित्सा,तकनीक,अन्तरिक्ष आदि क्षेत्रों में अग्रणी तथा , मेहनत -मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाली बहादुर परिश्रमी महिलाओं से सम्पन्न हमारे देश में महिला सशक्तिकरण का नारा?
                                                                      कुछ अद्भुत सा लगता है! “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते………. ” के सिद्धांत में विश्वास करने वाला देश,विदुषी नारियों को शास्त्रार्थ का अधिकार प्रदान करने वाला देश अपने देश की रक्षार्थ अपने पुत्र का बलिदान करने वाली,नारियों का देश ,पुरुष से पूर्व नारी को सम्मानित स्थान प्रदान करने वाला हमारा देश भारत नारी सशक्तिकरण की पुकार करे! ,”सीता राम”,राधाकृष्ण,उमापति महादेव,लक्ष्मीपति विष्णु के नाम से पुकारे जाने वाले शिव-विष्णु के इस देश में, यज्ञ में पत्नी की अनुपस्थिति को स्वीकार न करने वाले इस देश में आज नारी को अपना सम्मानित अस्तित्व बनाये रखने के लिए इतनी जद्दोजेहद करनी पड़े! .किसी भी समस्या पर विचार करने से पूर्व उसके अतीत पर दृष्टिपात करना आवश्यक हो जाता है.
                                                                       प्राचीन आख्यानों में हमारे देश में नारी की शिक्षा के उदाहरण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं,शिक्षा प्राप्त करना बड़े बड़े ऋषियों को शास्त्रार्थ में पराजित करना ,स्वयंवर के द्वारा पति चुनने का विकल्प आदि का विवरण उपलब्ध है.यद्यपि ऐसे समस्त उदाहरण प्राय राजपरिवारों या कुलीन परिवारों के हैं,तथापि नारी के प्रति सम्मान का उल्लेख मिलता है.राजदरबार में पति के साथ उपस्थित रहना,युद्ध में भाग लेना आदि विवरण भी उपलब्ध हैं.भले ही ये विवरण राजपरिवारों के रहे हों परन्तु “यथा राजा तथा प्रजा” अतः प्रजा भी इन्ही सिद्धांतों की अनुयायी रही होगी,ऐसा माना जा सकता है.
                                                                    मुस्लिम आक्रमणकारियों के लूटपाट तथा महिलाओं को बलपूर्वक लेजाकर अपने रनिवास में सम्मिलित कर लेना ,उनके सम्मान को ठेस पहुँचाना.अपनी दासियाँ बना लेना आदि कुप्रवृत्तियों के कारण हमारे यहाँ नारियों का मुक्त जीवन बंदियों जैसा बन गया तथा उनकी शिक्षा-दीक्षा आदि भी सीमित हो गयी. बाल-विवाह पर्दाप्रथा,सतीप्रथा और जौहर आदि परम्पराओं को प्रोत्साहन मिला जिनके अनुसार युद्ध भूमि में पति के वीरगति को प्राप्त होते ही रानियाँ तथा अन्य स्त्रियाँ भी जीवित ही स्वयं को अग्नि को समर्पित कर देती थीं. छोटी छोटी लड़कियों को विवाह बंधन में बाँध दिया जाता था. मुस्लिम समुदाय में तो पर्दाप्रथा आवश्यक थी ही.यद्यपि नारी जाति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण इस काल में वीरांगनाएँ,कवियत्री,समाज-सुधारक महिलाओं का आविर्भाव हुआ.
भारत में अंग्रेजी राज के समय शिक्षा का प्रसार दृष्टिगोचर हुआ,,जिसके परिणाम स्वरूप स्वामी दयानंद सरस्वती,राजा राममोहन रॉय ,ईश्वरचंद विद्यासागर ,महात्मा गाँधी,स्वामी विवेकानंद आदि कुछ समाज सुधारकों के प्रयासों से इन कुप्रथाओं पर नियंत्रण लगा.
                                                               स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ऩे बढचढ का भाग लिया.कुलीन परिवारों की या आम परिवारों की ,सभी की भागीदारी इस यज्ञ में रही. रानी लक्ष्मीबाई,एनी विसेंट,भगिनी निवेदिता,बेगम हज़रत महल ,सरोजिनी नायडू,दुर्गा भाभी आदि महान विभूतियों ऩे तन-मन धन देश के लिए समर्पित किया.,,स्वदेश में ही नहीं विदेश जाकर भी मैडम कामा सदृश वीरांगनाओं ऩे अपना योगदान दिया.(ये नाम तो उन महान महिलाओं के हैं,इनके अतिरिक्त जिन्होंने परिवार का भार अपने कन्धों पर सम्भालकर अपने पति ,पुत्र,भाई सभी को स्वाधीनता के पुनीत यज्ञ में आहुति देने को प्रेरित किया वो तो असंख्य हैं.)
                                                                        स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भी. हमारे संविधान में सबको समान अधिकार प्रदान किये गये. संविधान के अनुसार लिंग,जाति,धर्म आदि किसी भी भेदभाव के बिना सबको समान अवसर प्रदान किये गये हैं.संविधान के अनुच्छेद १४,१५,१६ के अनुसार जहाँ सबको समान अवसर प्राप्त हैं, लड़कियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था के लिए भी विशिष्ठ व्यवस्थाएं हैं. मातृत्व अवकाश तथा शिशु की देखभाल के लिए अवकाश की व्यवस्था है. गर्भ परीक्षण लिंग जानने हेतु प्रतिबंधित व दंडनीय अपराध है.प्रतिनिधित्व के लिए पंचायतों में स्थान आरक्षित है,महिला थानों की व्यवस्था भी है,सरकारी नौकरियों आदि में भी उनको समान अवसर प्राप्त हैं,कुछ तकनीकी शिक्षण संस्थानों में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित हैं
१९९० में महिलाओं के हित में महिला आयोग के गठन के लिए विशेष अधिनियम भी पारित किया गया है..१९९२-९३ में नीति निर्माण महिलाओं की भागीदारी की महत्ता समझते हुए संविधान में ७३वां , ७४ वां संशोधन कर पंचायतों में तथा स्थानीय संस्थाओं में स्थान आरक्षित किये गये हैं. .महिलाओं के सशक्तिकरण के संदर्भ में २००१ को नारी वर्ष घोषित करते हुए उनके कल्याण के लिए विविध व्यवस्थाएं की गयी हैं.
                                                                 निस्संदेह आज विश्व के किसी भी देश से अधिक कार्यरत महिलाएं हमारे देश में हैं,महिला प्रोफेशनल्स भी हमारे देश में सर्वधिक हैं,जो हमारे देश में तथा देश से बाहर कार्य रत हैं.,परन्तु?—————————————————————————-
आज भी समस्त सरकारी प्रतिबंधों के पश्चात भी लिंग परीक्षण होते हैं और लड़कियों के जन्म ग्रहण करने से पूर्व ही उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी जाती है.आज भी ग्रामीण व सुदूर स्थानों पर हमारी बालिकाएं स्कूल जाती ही नहीं और यदि जाति भी हैं तो महत्त्व न समझ पाने के कारण प्राथमिक शिक्षा से पूर्व हो पढ़ाई छोड़ देती हैं बाल मजदूरी करने को विवश हैं वो बच्चियां ,उनका बचपन परिवार में आर्थिक योगदान देने पर भी उपेक्षित ही रहता है. यद्यपि २०११ की जनगणना के अनुसार महिलाओं का साक्षरता अनुपात बढ़ा है,परन्तु नारियों का जीवन पूर्णतया असुरक्षित है बस,ट्रेन,हवाई यात्रा,कार्यस्थल,यहाँ तक की परिवारों में भी .लड़कियों को छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है,बलात्कार,आदि समस्याएँ वृद्धि को प्राप्त हो रही हैं.कुपोषण,दहेज़ ,स्वास्थय,की समस्याएँ,घरेलू हिंसा,कार्यस्थलों पर शारीरिक,मानसिक उत्पीडन,आर्थिक परतंत्रता ,वेश्यावृत्ति बाल विवाह (देश के कुछ भागों),आदि समस्याओं के कारण हमारे नारी सशक्तिकरण के दावों पर प्रश्नचिंह लग जाता है.
                                                                          प्रश्न उत्पन्न होता है कि नारी शिक्षा में प्रगति,सरकारी प्रयासों, पूर्व की तुलना में शिक्षित परिवारों में परिवर्तित सोच के बाद भी वांछित परिवर्तन महिलाओं की स्थिति में क्यों नहीं हो पा रहा है.
                                                                  व्यापक दृष्टि से यदि विचार किया जाय तो एक ही मूलभूत तथ्य पर आकर विषय ठहर जाता है और वो है सोच.आज भी परिवार में लडकी का जन्म उस उत्साह से स्वीकार नहीं किया जाता,जितना पुत्र जन्म.कितना ही पढ़ा-लिखा परिवार हो पुत्र दूसरा उत्पन्न हो तो चलेगा परन्तु पुत्री के जन्म के समय विषाद की रेखाएं चेहरे पर अवश्य दिखेंगीं.(अपवाद सर्वत्र हैं),दहेज़ के दानव से मुक्ति कठोर से कठोर क़ानून बनने पर भी नहीं हुई है.
                                                                       नारी मुक्ति आन्दोलन मेरे विचार से कोई हल नहीं हैं.महानगरों में रैली निकाल लेना ,कोई भाषण आदि आयोजित कर लेना,पत्रक वितरित कर देना मात्र दिखावा है.सरकार के प्रयास तभी रंग ला सकते हैं जब क़ानून कागजी न रहें, उनके क्रियान्वयन में कोई ढिलाई न हो.नारी का महत्व स्वयं नारी समझे और जीवन के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने. ., नारी जागृति की सार्थकता तभी है जब गाँव गाँव तक ये सन्देश यथार्थ में पहुंचे कि समाज का ,देश का उत्थान ,विकास तभी संभव है जब आधी आबादी भी तन -मन-धन से देश के विकास में अपना सक्रिय सम्पूर्ण योगदान दे सके. शिक्षित नारी ही सुखी,नियोजित ,तथा स्वस्थ परिवार का महत्व समझ सकती है .और देश की अधिकांश समस्याओं को दूर करने में अपना योगदान दे सकती है सभी साक्षर नहीं सुशिक्षित हों.इसके लिए निरंतर प्रयासरत रहने की आवश्यकता है तब भी यह स्वर्णिम स्वप्न साकार होने में समय लगेगा.
                                                                     यद्यपि देश में बहुत से संगठन ,स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हैं,परन्तु केवल विदेशों से धन एकत्र करना प्राय इन संस्थाओं का प्रमुख कार्य होता है,महिलाओं का उत्थान बड़े बड़े होटलों,वायुनुकुलित कक्षों में(एयर कंडिशंड कक्षों) नहीं होता .उनके मध्य जाकर उनके साथ रहकर उनकी समस्याओं को समझ कर,उनको किताबी शिक्षा के साथ व्यवहारिक शिक्षा प्रदान कर ही जन सेवा हो सकती है. राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत लगाए गये २-३ दिन के शिविरों से नारी जाती को सशक्त नहीं बनाया जा सकता.जिन मान्यताओं की जड़ें इतनी गहन हैं उनके समूल विनाश के लिए सभी को प्रयासरत होना होगा.
                                                      ओपचारिक शिक्षा कार्यक्रम का एक आवश्यक अंग नारी जाग्रति व उत्थान का सन्देश व्यवहारिक रूप में जन जन तक पहुँचाने के लिए योजनाबद्ध कार्यक्रम तैयार कर इस कार्यक्रम को मूर्तरूप प्रदान किया जा सकता है.अंतरात्मा की आवाज़ को सुन कर ही कोई कार्य व्यक्ति सफलता पूर्वक करता है,अन्यथा तो बचाव के ढेरों रास्ते निकाल लिए जाते हैं.सकारात्मक उपायों से,संस्कारों के माध्यम से ही सोच में परिवर्तन आ सकता है.
 
 
 
 

 

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