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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं.

chandravilla
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स्वाधीनता दिवस की ६४ वी वर्षगाँठ पर सभी देशवासियों को मंगलकामनाएं.हमारा देश दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करे. ऊंचा सदा रहे ये झंडा ऊंचा सदा रहे
भगवान् भास्कर के प्रात आगमन के साथ ही सम्पूर्ण सृष्टि में नवजीवन का संचार हो जाता है,परन्तु वो स्थायी नहीं होता घड़ी के साथ सूर्यदेवता अस्त होते हैं,और जगत को विश्राम प्रदान करने हेतु रात्रि का आगमन होता है.सृष्टि के प्रारम्भ से यही क्रम चला आ रहा है और सम्भवतः यूँ ही चलता रहेगा.इसी प्रकार जीवन में सुख-दुःख,हर्ष-विषाद,उन्नति-अवनति का क्रम चला आ रहा है.
व्यष्टि -समष्टि के विकास का क्रम भी यही है.विश्व में अग्रणी देश भारत आर्थिक सम्पन्नता में सोने की चिड़िया था,ज्ञान-विज्ञानं में शीर्ष पर था,चिकित्सा,गणित,विज्ञानं आदि सभी क्षेत्रों में अग्रणी था,परन्तु उत्थान के बाद पतन तो शाश्वत सत्य है,अपनी मूर्खताओं,आंतरिक विद्वेषों,कलह,रुग्न प्रतिद्वंदिता,ईर्ष्या -द्वेष,क्षुद्र मानसिकता के कारण हम धीरे -धीरे सब कुछ गंवाते रहे,विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी को तो अतुल धन सम्पदा सम्पन्न भारत के रूप में मानो कुबेर का खजाना मिला,फिर अंग्रेजों की लार टपकने लगी हमारी धन संपदा पर.व्यापार के बहाने से पुर्तगाली,फ्रांसीसी सबमें प्रतिस्पर्धा हुई कौन अधिक लूटे इस सोने की चिड़िया को? अंग्रेजों का पेट नहीं भरा और हमारा दुर्भाग्य कि वो तो हमें अपना गुलाम बना हमारे स्वामी ही बन बैठे.
परन्तु मेरा सवाल स्वयं अपने बंधुओं से दोषी कौन है हमारे इस पतन के लिए ,क्यों अवसर दिया हमने उन लुटेरों को? आखिर स्वार्थ तो हमारे अपने टकरा रहे थे,जिनके कारण राष्ट्र हित गौण और व्यक्तिगत क्षुद्र स्वार्थ प्रधान बन गये और हम स्वयं को लुटते देखते रहे मूकदर्शक बने. .
मुहम्मद गौरी के एक अदना से गुलाम कुतुबदीन ऐबक द्वारा स्थापित गुलाम वंश,खिलजी,तुगलक ……………… मुगलों में बाबर से बहादुर शाह ज़फर(बहादुर शाह ज़फर ऩे तो क्रांतिकारियों का नेतृत्व भी किया, १८५७ की क्रांति के समय ) ,और फिर लगभग २०० वर्षों की अंग्रेजों दासता ऩे तो हमें बर्बाद कर दिया.परन्तु जैसा कि ऊपर लिखा है, अन्धकार के बाद प्रकाश का उदय अवश्य होता है ,देशभक्त क्रांतिकारियों, (जिनके ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते हम )स्वाधीनता सेनानियों ऩे अपना जीवन ही भारतमाता के चरणों में समर्पित कर दिया और कूद पड़े इस महासमर में उनका बलिदान,उनका परिश्रम रंग लाया..आखिर हम आज़ाद हो गये .हमारी भारत माता दासता की जंजीरों से मुक्त हुईं.अंग्रेजों को जाना पड़ा .
१५ अगस्त १९४७ को आज़ाद तो हम हो गये परन्तु अभी भी स्वार्थी नेताओं का वर्चस्व विद्यमान था हमारे देश में. ,गोरों की फूट डालो और शासन करो की नीति के चलते अपने स्वार्थों से मुक्त नहीं हो सके हमारे कर्णधारों ऩे अखंड भारत को विभाजित करा दिया.देश में भी गोरों ऩे कलह -विद्वेष के बीज बोये और विभिन्न राज्य अपना अपना ध्वज उठाकर खड़े हो गये .लौह पुरुष सरदार पटेल यथासंभव उन सब को अपनी दृढ इच्छाशक्ति के बल पर किसी प्रकार एक ध्वज तले लाने में सफल हुए . परन्तु फिर भी हमारी गलत नीतियों के कारण” पृथ्वी का स्वर्ग काश्मीर ” सदा के लिए हमारी दुखती रग बन गया. आज ६४ वर्ष बाद भी हम काश्मीर की समस्या से मुक्त नहीं हो सके हैं.और वर्तमान व्यवस्था को देखते हुए आशा भी नहीं है.
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६५ वर्ष का समय कुछ कम नहीं होता.राष्ट्र के प्रति प्रेम,अपनत्व,अपना सब कुछ न्यौछावर करने की भावना और नीति निर्धारकों की नीतियां यदि स्वार्थ रहित होती तो आज शायद ये दिन न देखने पड़ते ,जो हम देख रहे हैं.सत्य है उपलब्धियां हम गिना सकते हैं,परन्तु अनगिनत समस्याओं ,भुखमरी,निर्धनता,अशिक्षा,बेरोजगारी,कुपोषण,पेयजल,की कमी,विद्युत की कमी या अभाव.,आतंवाद ,तस्करी …………………….से भी ग्रस्त हैं हम ,हम आज भी विकासशील बने हैं अन्यथा हम विकसित राष्ट्र होते.उपलब्धियां गिनते समय ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत केवल महानगरों में ही नहीं बसता ,भारत ग्रामों में ,सूदूर प्रान्तों में , दुर्गम पर्वतीय ,जनजातीय क्षेत्रों में भी बसता है और ये जटिल समस्याएं भी हम सबकी हैं .
वास्तविकता तो ये है कि इतनी लम्बी गुलामी के बाद हमारा राष्ट्र प्रेम लगता है जंग खा गया है ,”आप भरा तो जग भरा” तथा गद्दी हमारी बनी रहे देश जाय भाड़ में आदि सोचों ऩे हमारी विचार शक्ति को कुंठित कर दिया है हमारे नेता तो उसी वृक्ष को काट रहे हैं जिस पर वो बैठे हैं,भ्रष्टाचार का भस्मासुर भस्म करने को तैयार है सम्पूर्ण व्यवस्था को . अंग्रेज हमारे नेताओं से तो अच्छे थे. अंग्रेजों और मुस्लिमों ऩे हमारे देश को लूटा था क्योंकि वो विदेशी थे और हमारे नेता जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद कर रहे हैं,जिस नाव में बैठकर पार होना चाहते हैं उसी में छेद पर छेद किये जा रहे हैं.
आज देश पर जहाँ वाह्य शत्रुओं की कुदृष्टि है,कभी चीन आँखें दिखाता है तो कभी पकिस्तान.कभी हम विदेशों के समक्ष सहायता के लिए गिडगिडाते हैं.और हमारे नेता वो तो निश्चिन्त हैं.देश का धन लूट कर विदेशो में सुरक्षित करने से ही फुर्सत नहीं है उनको .देश को बांटने की कुत्सित नीति पर आज भी चल रहे हैं वो..
वास्तविकता तो ये है कि आज़ाद होने पर भी हम उन्ही नक़्शे कदम पर चलते रहे जिन पर अंग्रेज चल रहे थे बस नाम बदल गया था..इसी में नेताओं का स्वार्थ था परन्तु विदेशी अंग्रेजों को तो बाहर निकाल दिया अब इन स्वदेशी अंग्रेजों का क्या करें जो उनसे भी अधिक घातक बन बैठें हैं देश के लिए और देश पर फिर संकट मेघ आच्छन्न हैं..
घबराएँ नहीं क्या हुआ यदि आज देश में समस्याएँ हैं. ,इस संकट का निवारण हमारे ही हाथ में है बस आवश्यकता है जागृति की.

आज हम सब देशवासी उन महान वीरों राष्ट्रभक्तों,क्रांतिकारियों को कोटिश नमन करते हैं और आह्वानं करते हैं ऐसी ही भावनाओं से भरपूर युवा शक्ति का जो देश के प्रति समर्पण भाव रखते हुए भारत को पुनः उसका खोया गौरव लौटा सकें.

लगता है देश में २६ जून १९७५ के हालात लौट रहे हैं,एस एम् एस पर प्रतिबंध,गिरफ्तारी आगे आगे क्या क्या देखना होगा पता नही

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