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सरकार सुधर गयी है?

chandravilla
chandravilla
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buffalo-2903
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सारी उम्र भी बीन बजाई जाय तो भी सारा देश एक ओर,सरकार की जिद्द एक ओर ,आखिर हो भी क्यों न? बेतहाशा धन सम्पत्ति का खेल है,अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कौन मारेगा.अन्ना रामदेव ,सारा देश व्यर्थ में ही हाय तौबा मचा रहे हैंअंधों के आगे रो रो कर अपने नैना खो रहे हैं.,(और मजेदार बात ये है कि अधिकांश को तो जबरदस्ती साथ होने का ढोंग करना पड़ रहा है साथ होने का ,क्योंकि भ्रष्टाचार रूपी मैली गंगा में स्नान करने का लोभ संवरण कोई नहीं कर पाता)
रामदेव की आवाज़ अपने अत्याचार व प्रत्यारोपों से बंद करने वाली सरकार ने एक बार अन्ना को कुछ समय के लिए प्रसन्न होने का अवसर दिया था जब जनाक्रोश सरकार से संभाले नहीं संभल रहा था.विश्वास तो अन्ना को भी सरकार पर बहुत अधिक नहीं था,परन्तु समझौता हो गया .थोडा समय भी सरकार धैर्य नहीं रख पायी और अपनी मिथ्या आन-बान-शान दिखने के लिए कांग्रेस की अधिष्ठात्री देवी की चारण मंडली ने अपनी वास्तविकता का प्रदर्शन प्रारम्भ कर दिया था.कभी दिग्विजय,तो कभी सिब्बल ,चिदम्बरम और बाद में स्वयं सदा मौन व्रत धारी मनमोहन भी संकेत मिलते ही अनर्गल प्रलाप करने लगे मानो बोलने के अतिरिक्त कोई काम नहीं बचा हो,उनको.
आखिर १६ अगस्त आ गयी और रस्साकशी चालू हो गयी,अनुमति नहीं देंगें,अनशन की,स्थान नहीं देंगें,निश्चित संख्या में लोगों को आन्दोलन में सम्मिलित होने की अनुमति होगी.और अंततः सारी आशंकाओं को सत्य प्रमाणित करते हुए अन्ना और उनके कुछ साथियों को गिरफ्तार किया गया.मीडिया की मेहरबानी से पल पल का समाचार हम सबको उपलब्ध है.
कितना महान आश्चर्य है जो सरकार न अनशन के लिए राजी थी,न स्थान प्रदान करने के लिए ,आन्दोलन में भाग लेने वालों की संख्या की भी सीमा तय की जा रही थी गाड़ियों की अनुमति नहीं दी जा रही थी,दिल्ली पुलिस व्यवस्था संभालने में अपनी अक्षमता प्रदर्शित कर रही थी बहानों की लम्बी सूची प्रस्तुत की जा रही थी,अनशन के दिनों पर सौदेबाजी चल रही थी और एकदम सब परिदृश्य बदल गया सरकार रामलीला मैदान से धारा १४४ समाप्त करने को तैयार,आन्दोलन में भागीदारों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं,गाड़ियों पर प्रतिबन्ध नहीं आन्दोलन की अवधि भी बढ़ते बढ़ते २१ दिन पहुँच गयी आखिर क्या है यह सब.? इतनी जल्दी सरकार की सभी आपत्तियों का उन्मूलन हो गया?
सरकार अपनी हार मान रही है?अन्ना व आम जनता के आगे सरकार झुक रही है? सरकार को अपनी गलतियों का अहसास हो रहा है ?भ्रष्टाचार का अंत करने को सरकार राजी हो गयी है? बडबोले सिपहसालार मौन व्रत धारण कर रहे हैं? क्या जनता का जूनून देख कर सरकार घबरा गयी है यद्यपि ये सभी प्रश्न भविष्य के गर्भ में हैं परन्तु मुझको तो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सरकार की नियत पर संदेह हो रहा है
चलिए आशावादी बने और सबको शुभकामनाएं .शुभस्य पन्थानः सन्तु.

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———————————————————————————————–         एक विहंगम दृष्टि आन्दोलन और उसके प्रभाव पर ———————————————————————————–
भारत सदृश विशाल देश में इतना भयंकर तूफ़ान ! आज विश्वपटल पर जहाँ हमारे देश का नाम (गिने चुने अपवाद छोड़ कर) शीर्ष पर है इस आन्दोलन को लेकर , एक दिहाड़ी मजदूर से लेकर व्यापारी,चाय वाला घर में काम करने वाली सहायिका सभी को ये ज्ञात है,कि इस समय देश में कोई बहुत महान नेता देश की गड़बड़ियों को दूर करने के लिए उपवास कर रहा है,सरकार उसको पकड़ कर जेल में बंद कर रही है परन्तु वो अपनी धुन का पक्का है (निश्चित रूप से मीडिया का योगदान है इस क्रांतिकारी घटना को जन जन तक पहुंचाने में).दिहाड़ी मजदूर या घर में काम करने वाली सहायिका का नाम इसलिए लिया  क्योंकि उनको भी अपनी बित्ते भर की कमाई से एक हिस्सा रिश्वत के रूप में देना पड़ा है जब उन्होंने अपना बी पी एल कार्ड बनबाया,या फिर पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र बनबाया या फिर उनके बच्चों को भूले भटके कोई आर्थिक सहायता मिलती है.आवास योजना में घर मिलना हो या फिर..कृषको या अन्य साधन विहीन वर्गों से सम्बद्ध …………….सभी रिश्वत, भ्रष्टाचार की मार से पीड़ित हैं…..(मात्र यही उदाहरण देने का कारण ये है कि ये तथा ऐसी अन्य ढेरों योजनायें समाज के ऐसे वर्ग से सम्बन्धित हैं,जिसके यहाँ रोज चूल्हा जलने का जुगाड़ नहीं होता,तन ढकने को वस्त्र नहीं होता और सर पर होता है,बस आकाश )
कभी कभी तो लगता है ये जन कल्याणकारी योजनायें लागू करने के पीछे मूल भावना जन कल्याण की नहीं रिश्वत भ्रष्टाचार के नए नए माध्यम उपलब्ध कराने की रहती है क्योंकि अधिकांश योजनायें तो बस कागजों पर होती हैं और जिनका अस्तित्व होता भी है वहां भी रिश्वत रिश्वत और रिश्वत .मैं प्रारम्भ से सुनती आ रही हूँ कि बेईमानी का धन पचता नहीं परन्तु लगता है,छोटे से लेकर बड़े से बड़े रिश्वतखोर की पाचन शक्ति हाजमोला के चमत्कार से बहुत मज़बूत है.क्योंकि आज कल्पना करना भी विचित्र सा लगता है कि रिश्वत के अभाव में कोई काम संभव है . रिश्वत लेने वाले दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति पर हैं.और हम सभी तैयार रहते हैं भेंट चढाने के लिए.क्योंकिं कोई अपने काम में अवरोध या झंझट नहीं चाहता.
आरोप हमने लगाये हैं,आरोपी कटघरे में हैं,क्षम्य भी नहीं हैं,परन्तु एक क्षण हमें भी विचार करना होगा दोष हमारा भी कम नहीं.सुविधाभोगी हम भी हैं,बिजली चोरी हम करते हैं,साधन विहीन के नाम पर दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ साधन सम्पन्न भी उठाते हैं,आदि आदि और उन सबसे बढ़कर भ्रष्टाचारियों,अपराधियों तस्करों को चुन कर हम ही सर पर बैठते हैं क्यों?व्यवस्था सुधारने के लिए सबका योगदान आवश्यक है,अतः कृत संकल्प होना होगा, तभी भ्रष्टाचार के कैंसर की जड़ों का खात्मा हो सकेगा..

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