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कृष्ण जन्माष्ठमी पर आप सभी को मेरी मंगलकामनाएं .आप सभी को यह पावन पर्व मंगल मय हो. “यदा यदा ही धर्मस्य को चरितार्थ करते हुए दिव्य शक्तियों के भण्डार योगिराज कृष्ण धरा पर अवतरित हों.
यूँ तो कृष्ण अपने सभी रूपों में दिव्य सन्देश जगत को देते हैं.भगवान् कृष्ण का सम्बन्ध ज्ञान ,भक्ति ,कर्म योग ,सांख्य योग, राजनीति,सामाजिक समरसता न्याय ,कूटनीति सभी रूपों से है.,पुत्र, ,बन्धु,मित्र, पति,शिष्य,सारथी ,सहयोगी …………. आदि विविध रूपों में एक नयी छटा के साथ उनके दर्शन होते हैं.भक्ति एक ऐसा भाव है जिसके चमत्कार से भगवान् भक्तों के वश में रहते हैं,ऐसे असंख्य उदाहरणों भरपूर कृष्ण चरित्र अनुपम,विलक्षण है और समाज को सन्देश देता है.
बाल लीलाएं करते हुए जहाँ कृष्ण गोकुल में केवल नन्द यशोदा के नहीं सभी की आँखों का तारा है, गायों के रखवाले हैं,,ग्वालों,गोपियों के सखा हैं ,गुरुकुल में आदर्श शिष्य हैं,सहपाठियों के परमप्रिय हैं.राजा बन जाने पर भी अपने बाल सखा सुदामा के चरण पखारते हैं,अर्जुन के सारथी बनते हैं.धर्म के युद्ध में ,आवश्यकता होने पर कूटनीति का आश्रय भी लेते हैं.धर्म के युद्ध में ,अधर्मियों का विनाश करने हेतु साम, भेद ,दंड सभी नीतियों को अपनाते हैं,शरणागतवत्सल हैं द्रौपदी के चीरहरण के समय वही उसकी रक्षा करते हैं. संबंधी होने का दायित्व निर्वाह करते हुए अधर्मी दुर्योधन की भी सहायता करते हैं, जब वह याचना करता है .महात्मा विदुर का आथित्य स्वीकार करते हैं तथा साग खा आनंदित होते हैं.उनको देवकी वासुदेव पर कंस द्वारा अत्याचारों के लिए दण्डित कर अपनी जन्मदात्री व पिता के अश्रुओं व कष्टों का बदला लेना है तो नंदराय व यशोदा मैय्या के लिए कुछ भी कर सकते हैं..
ऐसे सर्वगुण सम्पन्न लीला पुरुषोत्तम कृष्ण भक्तों के वश में कैसे होते हैं ,इसी भाव पर एक छोटा सा पुराना भजन जो मुझको बहुत पसंद है जन्माष्टमी के पुनीत अवसर पर ,आपके समक्
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं रामा नारायणं जानकी वल्लभम
कौन कहते हैं भगवान् आते नहीं तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं रामा नारायणं जानकी वल्लभं
कौन कहते हैं भगवान् खाते नहीं,बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं रामा नारायणं जानकी वल्लभम
कौन कहते हैं भगवान् सोते नहीं माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं रामा नारायणं जानकी वल्लभम
कौन कहते हैं भगवान् नाचते नहीं गोपियों के जैसे नचाते नहीं
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं रामा नारायणं जानकी वल्लभम
———————————————————————————————- इस भजन के पश्चात एक छोटा सा उद्धरण कृष्ण जी से` सबंधित जो मुझको बहुत प्रेरणादायी लगता है ,आपके समक्ष
एक बार अर्जुन ने कृष्ण से अपने बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर को कर्ण से बड़ा दानवीर बताते हुए कुछ अभिमान पूर्वक कहा कि युधिष्ठिर से बड़ा दानवीर कर्ण नहीं है, कृष्ण ने कहा चलो देखते हैं और उनको लेकर ब्राह्मण के वेश में महाराज युधिष्ठिर के दरबार में पहुंचे तथा क्षुधातुर होने की बात कही भोजन की शर्त थी कि चन्दन की लकड़ियों पर द्विज देवता अपना भोजन स्वयं बनायेंगें .युधिष्ठिर ने उनको पूर्ण सम्मान देते हुए सेवकों से चन्दन की सूखी लकड़ियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया.सेवक आदेश का पालन नहीं कर पाय क्योंकि निरंतर होती वर्षा के कारण सूखा ईंधन नहीं मिल पाया.धर्मराज को बहुत निराशा हुई.ब्राह्मण देवताओं ने धर्मराज को धैर्य बंधाया और कहा ,कोई बात नहीं भोजन कल कर लेंगें .इसके पश्चात अर्जुन को लेकर उसी वेश में कृष्ण अंगराज कर्ण के पास पहुंचें और वही मांग प्रस्तुत की..कर्ण ने एक पल भी व्यर्थ गंवाए बिना अपना धनुष उठाकर महल के चन्दन द्वार पर चलाया ,द्वार टूट गया और अविलम्ब सूखी लकड़ियों की व्यवस्था कर दी.ब्राह्मणों ने भोजन ग्रहण किया और आशीर्वाद देते हुए वापस आये.अर्जुन को उसकी गर्वोक्ति का उत्तर कृष्ण ने प्रत्यक्षम किम प्रमाणं से ही दिया..
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