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सब कुछ बाकी है.(अभी जश्न कैसे मनाया जाय)

chandravilla
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आप सब को बधाई ,१२ दिन तक अनशन पर रहकर माननीय अन्ना हजारे ने आज अपना अनशन समाप्त किया.आप सभी की भांति मैं भी हर्षित प्रफुल्लित हूँ शायद भ्रष्टाचार के दानव से देश को मुक्ति मिलेगी.परन्तु २७ अगस्त के घटनाक्रम के बाद मन में कुछ प्रश्न है,दुविधा है.शायद उससे बाहर आने का कोई उपाय या विकल्प आपके पास हो.

एक शराबी पति की हरकतों से परेशान पत्नी जब अपने क्रोध का प्रदर्शन करती है तो पति कसम खाता ,है कि वो भविष्य में शराब नहीं छूएगा,परन्तु मंद स्वर में कहता है,सशर्त .पत्नी को बड़ी राहत मिलती है कि पति सुधरना चाह रहा है,अतः वह प्रसन्न हो  जाती है,पति से तो प्रेम पूर्वक बोलती ही है,भगवान का प्रसाद चढाने  का भी निश्चय करती है.पति दो चार दिन तो  किसी काम के बहाने घर से बाहर रहता है.५ वे दिन पुनः घर में आने पर उसको पुराने रंग में देख कर पत्नी खबर लेती है,तो उत्तर वही पार्टी थी मजबूरी में लेनी पडी.यही दिनचर्या उसकी यथापूर्व रहती है.
१६ अगस्त २०११ को अनशन पर बैठे अन्ना ऩे आज २८अगस्त  को अपना अनशन समाप्त किया.इतनी दृढ़ता,अनुशासन,कर्मठता,रणनीति शायद वर्तमान में विश्व के लिए भी अभूतपूर्व थी.७४ वर्षीय एक वृद्ध १२ दिन तक भूखा,मात्र जल और शहद पर और उस पर भी जोश. और वही हुंकार.
! २७ अगस्त का दिन भारतीय राजनीति के इतिहास में बहुत ऊहापोह  का दिन था.एक और अन्ना का  गिरता स्वास्थ्य,अन्ना के साथ जन सैलाब का समर्थन बच्चा बच्चा (चाहे वह जनलोकपाल  का अर्थ भी न जानता हो,अन्ना का नाम भी न सुना हो) हाथ में तिरंगे लिए अन्ना तुम संघर्ष करो……,मैं भी अन्ना,एक दो तीन चार ,बंद करो ये भ्रष्टाचार आदि नारे लगते हुए गली गली में घूम रहा  था.. ,देश-विदेश तक अन्ना के अनशन की धूम ,संसद के  सत्र का सीधा प्रसारण,संसद के दोनों सदनों में लोकपाल पर चर्चा ,सबकी घटनाक्रम पर टिकी दृष्टि. अतः विधेयक पर  सहमति तो दोनों सदनों में बननी अनिवार्य हो गयी थी.अन्ना की टीम व आन्दोलन की रन नीति के अनुसार बच्चा बच्चा परिचित था कि आज संसद में बहस होनी है,और राजनैतिक दलों पर दारोमदार है.अतः इच्छित फल की प्राप्ति तो होनी थी.
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परन्तु परन्तु परन्तु
लोकपाल बिल संसद में प्रथम बार प्रस्तुत नहीं हुआ.१९६८ से लंबित ये विधेयक लगभग १० बार प्रस्तुत हो चुका है.परन्तु संसद ऩे इसको आगे नहीं बढ़ने दिया.आखिर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी स्वयं क्यों मारी जाती.मोरारजी देसाई  के समय लोकसभा से पारित   हुआ ये बिल,राज्य सभा में आगे नहीं बढ़ पाया.इसके पश्चात भी १९७१,७७,८५,८९,९८,२००१,२००५,२००८ में प्रस्तुत होंरे पर अटका ही रहा.इस बार भी अप्रैल में अन्ना हजारे के द्वारा प्रारम्भ आन्दोलन के कारण सरकार ऩे  अन्ना द्वारा प्रस्तावित विधेयक को परिवर्तित स्वरूप में लोकसभा में प्रस्तुत तो किया परन्तु सहमति न बनने से संसद  की स्थाई समिति के पास भेज दिया विचारार्थ.
२७ अगस्त को  जन लोकपाल बिल पर हुई चर्चा में कोई स्पष्ट सहमति दलों ऩे नहीं दी जन लोकपाल बिल पर सर्वाधिक समर्थन में खडी .भारतीय जनता पार्टी ऩे प्रधानमंत्री को दायरे में लेने पर सशर्त शब्द जोड़ दिया,न्यायधीशों पर नहीं कहा,सांसदों पर नकारात्मक ही रुख रखा परन्तु सिटी जन चार्टर ,दंड देने का हक़,नीचे के पायदान के कर्मियों ,लोकायुक्त,तथा सी बी आई पर स्पष्ट सहमति दी.
राजद सुप्रीमो लालू तो ये मानने को तैयार नहीं थे कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है,उनके अनुसार जितना भ्रष्टाचार बताया जा रहा है उतना नहीं है(वो तो सारा चारा हज़म कर चुके हैं),बसपा ऩे कोई भी शर्त स्वीकार नहीं की,माकपा,द्रुमुक के उत्तर टालने वाले,सपा का अस्पष्ट रुख ,शरद यादव द्वारा बेतुकी दरार डालने वाली  शर्त कि पिछड़े वर्ग,अनुसूचित जातियों की भागीदारी हो (कोई उनसे पूछे भ्रष्टाचार से प्रभावित सभी वर्ग हैं,इसमें जाति धर्म कहाँ से बीच में आ गया.)
कांग्रेस ऩे प्रधानमंत्री को सम्मिलित करने की` शर्त को  विचाराधीन रखा,सिटीजन चार्टर को सशर्त ,दंड देने का हक़ विचारार्थ ,राज्यों में लोकायुक्त विचारार्थ,निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मी सशर्त,सी बी आई विचारार्थ,न्यायाधीश नहीं,सांसद नहीं. अर्थात एक भी शर्त कांग्रेस ने स्पष्ट सहमति नहीं दी.
(उपरोक्त आंकडें या विवरण  समाचारपत्र तथा समाचार चैनल्स की सूचनाओं पर आधारित)
विपक्ष की नेता  सुषमा स्वराज ऩे सबसे आग्रह अवश्य किया है,कि जनलोकपाल  बिल को मज़बूत रूप में पारित किया जाय जिससे भावी पीढियां भ्रष्टाचार मुक्त रहें.और अधिकांश प्रावधानों को बिना शर्त स्वीकार भी किया है, परन्तु जब इस बिल पर सत्ताधारी दल या उनके सहयोगियों ऩे स्पष्ट सहमति नहीं दी तो एक सशक्त लोकपाल बिल कैसे पारित हो सकता है.आखिर पारित तो सांसदों को करना है,और उनकी स्पष्ट स्वीकृती या सहमति प्रमुख मुद्दों पर नहीं है तो फिर ……………????????????????????
यद्यपि संसद में सरकार की सहमति के सारे बिल तो आनन् फानन में बनते या पारित होते ही हैं, जैसे की साम्प्रदायिक हिंसा बिल ,तैयार किया गया.इसके अतिरिक्त सांसदों के भत्ते,वेतन या उनके क्षेत्र में व्यय की जाने वाली राशि के बिल,आदि आदि…. तो फिर इस बिल को स्वीकार करने में आपत्ति क्यों? यदि कुछ व्यवहारिक कठिनाई है भी तो संघर्ष रत अन्ना टीम तथा सभी के सहयोग से विचार विमर्श कर खरी  नियत के साथ  कुछ छोटे परिवर्तनों पर सहमति बना कर पारित अविलम्ब होना चाहिए.               .

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