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विद्या दान के पुनीत कार्य को बदनाम न करो

chandravilla
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भारत रत्न महान दार्शनिक,विद्ववान, शिक्षाविद,लेखक,स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन(१९६२-६७) के जन्म दिवस पर उनको शत शत नमन.साथ में उन आदर्श शिक्षकों को जो अपने शिक्षार्थियों के जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं,या कर रहे हैं.
तमिलनाडु के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेने वाले इन शिक्षाविद का जन्म ५ सितम्बर १८८८ को दक्षिण भारत में तमिलनाडु के एक सूदूर कसबे में हुआ.इनका बचपन संघर्षों ही व्यतीत हुआ.ग्रामीण विद्यालय में सामान्य विद्यार्थियों के साथ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले,राधकृष्णन ऩे अपनी सम्पूर्ण शिक्षा मेधावी छात्र के रूप में प्राप्त होने वाली छात्रवृत्ति के कारण पूर्ण की.मात्र २० वर्ष की आयु में डॉ कृष्णन का स्नातकोत्तर विद्यार्थी के रूप में शोध प्रकाशित हुआ जिसको देश-विदेश में सर्वत्र सराहना प्राप्त हुई.
दर्शन शास्त्र सदृश जटिल विषय के विद्यार्थी डॉ कृष्णन ऩे हिन्दू धर्मग्रंथों का विषद अध्ययन किया तथा पूर्व-पश्चिम पर तुलनात्मक अध्ययन करते हुए पुस्तकें प्रस्तुत की तथा विश्व को हमारे प्राचीन ग्रंथों की महानता से परिचित कराया.स्वदेश में जहाँ उन्होंने मद्रास,मैसूर ,कलकत्ता,आंध्र विश्वविध्यालय,बनारस विश्विद्यालय में विभिन्न पदों को सुशोभित किया विदेशों में ऑक्सफोर्ड ,मेनचेस्टर आदि अनेक विश्विद्यालयों में अध्यापन व शोध पत्रों को प्रस्तुत किया.,
स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भी   आपने यूनेस्को में भारत के नेतृत्व किया,भारतीय राजदूत के रूप में सोवियत यूनियन में रहे,संविधान सभा के सदस्य के रूप में उनको सम्मान प्राप्त हुआ १९५२ में डॉ राधाकृष्णन ऩे प्रथम उपराष्ट्रपति पद को अलंकृत किया और १९६२ में राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला.
राष्ट्रपति बनने पर जब उनके साथियों,शिष्यों ऩे उनका जन्मदिवस मनाने का कार्यक्रम बनाया तो उन्होंने अपना जन्मदिवस” शिक्षक दिवस” के रूप में मनाने की इच्छा प्रकट की.इस प्रकार ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.सरकार द्वारा शिक्षकों को उनके शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ठ योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है. राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति पुरस्कार तथा राज्य स्तर पर राज्यपाल पुरस्कार मिलते हैं.प्राथमिक व जूनियर विद्यालयों में शिक्षक दिवस मनाया जाने की परम्परा है.
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शिक्षक दिवस पर अपने विचार रखने से पूर्व एक बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि शिक्षक व गुरु में अंतर है.विशेष रूप से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में.
शिक्षक बच्चों के लिए एक आदर्श होते हैं ,बच्चा माता-पिता से अधिक शिक्षक की बात को महत्त्व देता है,ऐसे में शिक्षक का आचार-व्यवहार ,चरित्र बच्चे के मन पर अमिट छाप छोड़ते हैं,अतः शिक्षक की भूमिका बच्चे के चरित्र निर्माण में सभी स्तरों पर प्रमुख है और विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर.
प्राथमिक शिक्षा वह सोपान है जिस पर पग रखकर बालक अपनी मंजिल पर पहुँचने का श्रीगणेश करता है.अतः यही वो स्तर होना चाहिए जहाँ बालक के भावी जीवन की नींव सुदृढ़ हो सके,बालक वह सब सीख सके जिसके माध्यम से वह साक्षर तो बने, ही एक इंसान भी बन सके.माता-पिता यदि सम्पन्न नहीं हैं,तो वो अपने बालक को उन विद्यालयों में भेजने को विवश हैं,जिनके लिए सरकार की नीतियां कागजी बनती हैं,सर्वप्रथम तो वहां शिक्षकों की नियुक्ति कागजों पर होती है,विद्यालयों के लिए भवन या तो हैं नहीं और यदि हैं तो जीर्ण-शीर्ण .शिक्षक आजीविका का स्थाई साधन होने के कारण नौकरी तो करते हैं,परन्तु उच्चाधिकारियों तक अपना लिंक रख कर वहां जाते नहीं,या कभी माह में दो तीन उपस्थिति लगा देते हैं.(ये तथ्य रखना कोई पूर्वाग्रह नहीं वास्तविकता पर आधारित है,उत्तर प्रदेश में बी.टी.सी.का प्रशिक्षण प्राप्त कर स्थायी नौकरी की व्यवस्था इसीलिये की गयी है ,जिससे बेरोजगारी कम हो और ग्रामीण अंचलों में शिक्षक पहुँच सकें.परन्तु अधिकांश शिक्षक नौकरी प्राप्त कर वहां जा कर झांकना अपना अपमान समझते हैं.)क्या इसी बूते पर हम अपने भारतीय कर्णधारों को तैयार कर सकते हैं.कागजों पर उनको पुष्टाहार विद्यालयों की व्यवस्था है,परन्तु व्यवहार में क्या होता है सब जानते हैं.भ्रष्टाचार के चलते दूषित खाने से बीमार पड़ते बच्चे आदि अनेकों समस्याएँ………. ये तो रही ग्राम्य क्षेत्रों की बात.जिसकी स्थिति अतीव गंभीर है.
शिक्षा की स्थिति में पतन का एक अन्य कारण सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों को अन्य कार्यों जन गणना ,पोलिओ दवा पिलवाना,वोटिंग लिस्ट बनवाना,चुनाव के समय ड्यूटी पर भेज देनाआदि सरकारी कार्यों में लगाना , अर्थात महीनों शैक्षिक कार्य को अवरुद्ध कर देना.एक ओर देश में बेरोजगारी है,देश में नवीन रोजगारों के काम पर नियुक्तियां न कर शिक्षकों को काम पर लगाना और पढाई को सर्वाधिक उपेक्षित मानना ही इस तथ्य का प्रमाण है,कि सरकार की कितनी`रूचि है,शिक्षा की स्थिति सुधारने में.
उस पर सरकार का आदेश किसी को अनुतीर्ण नहीं करना है के कारण योग्य अयोग्य बच्चे बिना किसी योग्यता के अग्रिम कक्षा में पहुँच जाते हैं और उनकी नींव ही कमजोर रह जाती है.
शहर में रहने वाले उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों में बच्चों को आजकल पूर्व प्राथमिक व प्राथमिक स्तर पर महंगें विशिष्ठ स्कूलों में पढाना एक ऐसा फैशन बन गया है,जहाँ बच्चा हाई सोसायटी के ताम झाम, तो सीखता है,परन्तु संस्कारों से ही वंछित हो जाता है.एक परिवार में मैं भी उपस्थित थी,जब माँ के जोर से हंसने पर बच्चे ऩे माँ को कहा “यू डोंट हेव मैनर्स “,साथ में भोजन करते हुए कोई विदेशी भोजन करने पर मातापिता के दूसरे ढंग से खाने पर उनका मज़ाक बनाना ,उनको पिछड़ा समझना.आदि आदि.
सामान्य विद्यालयों में पढने वाले बच्चों के लिए जो शिक्षक या शिक्षिकाएं नियुक्त की जाती है,उन का वेतन इतना कम होता है कि संभवतः दिहाड़ी पर काम करने वाले श्रमिक से भी कम ,अतः स्वाभाविक रूप से ,उनका ध्यानं ट्यूशन पर अधिक होता है.
ऐसे में भावी जीवन की नींव प्राथमिक स्तर की शिक्षा व्यवस्था में सुधार परमावश्यक है.
माध्यमिक स्तर के विद्यालयों में निरंतर परिवर्तित नीतियों के कारण बच्चे इतने भ्रमित हैं कि उनका ध्यान पढाई में केन्द्रित नहीं हो पाता.स्कूल,ट्यूशन,आदि में ही सारा समय ब्यतीत हो जाता है.
सरकारी पुरस्कारों की जहाँ तक बात है,ऐसे ऐसे भ्रष्ट शिक्षकों ,शिक्षा को सौदा मानने वालों को भी यह सम्मान मिल जाता है,जिनको शिक्षक कहना भी शायद हमारा दुर्भाग्य होगा.
(आलेख लम्बा हो जाने के कारण माध्यमिक समस्याओं पर फिर कभी लिखने का प्रयास करूंगी)
संक्षेप में इतना ही कहना चाहती हूँ कि आज शिक्षक अपना सम्मान खो रहे हैं, प्राथमिक माध्यमिक या उच्च कक्षाओं में शिक्षकों का सिगरेट,शराब पीना,उपहार आदि की मांग करना,अश्लील मज़ाक करना,धन लेकर पास करना,नक़ल करवाना,प्रश्नपत्र आऊट करना,उत्तरपुस्तिकाओं को जांचने में लापरवाही व रिश्वत आदि,अपनी छात्राओं व् छात्रों के साथ दुर्व्यवहार ,यौन शोषण आदि दुष्कृत्यों के चलते विद्यार्थियों का भविष्य स्वर्णिम होने की कल्पना मात्र स्वप्न ही हो सकता है. .(अपवाद सर्वत्र हैं अतः उनकी गणना नहीं की जाय)

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