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व्यस्तम स्थान ,अपने कार्यों में व्यस्त लोग ,कोई कार्यालय जा रहा है,कोई परिवार के साथ मौज -मस्ती के लिए,घर से बाहर जा रहा है किसी के अतिथि उसके साथ है और न जाने कितने दैनिक कार्यों को पूर्ण करने निकला है,अचानक ही एक बम विस्फोट और सब वहीँ मौत के आगोश में चले जाते हैं,चहुँ ओर चीख-पुकार मच जाती है,अम्बुलेंस,पुलिस की गाड़ियाँ ,अधिकारी ,मीडिया और कोई भुला भटका नेता.ये दृश्य कोई केवल एक दिन का नहीं आम हो चुका है.
ठीक इसी प्रकार रेलगाड़ी की पटरियां उड़ाकर दुर्घटना,ट्रेन में विस्फोट,चलती ट्रेन में लूट,बलात्कार,क़त्ल ट्रेन से धक्का देना,कई गुंडों द्वारा लडकी या महिला का अपहरण,सामूहिक दुष्कृत्य और फिर उनकी जीवन लीला समाप्त कर देना,गाँव में एक पंक्ति में खड़ा कर असहाय लोगों को गोलियों से भून देना,बस्ती जला देना,बच्चों का अपहरण,दुष्कर्म और फिर मार कर उनको दफ़न कर देना,छोटी छोटी बातों पर आक्रोश में आकर छुरा भौंक देना,गोली मार देना,बैट ,बेल्ट या पत्थरों से पीट पीट कर मार डालना ,गृहस्वामी को लूट कर उसकी सपरिवार हत्या,पिता का पुत्र द्वारा,भाई का भाई या किसी अन्य सम्बन्धी द्वारा प्राणांत कर देना आदि आदि…………….
उपरोक्त सभी घटनाएँ किसी न किसी रूप में मीडिया के माध्यम से या कई बार प्रत्यक्ष दर्शी के रूप में हमारे समक्ष प्रतिदिन आती रहती हैं.और हम बस अफ़सोस प्रकट कर रह जाते हैं,और अपराधी मज़े से कहीं अपने साथियों के साथ हमारी असहाय स्थिति की खिल्ली उड़ा रहा होता है,या फिर अपने आकाओं को( जिनके आदेशों पर इन घटनाओं को अंजाम दिया) सूचना दे रहा होता है. नेता लोग जांच की बात कह कर अपने काम में लग जाते हैं.सर्वप्रथम तो कोई पकड़ा नहीं जाता ,यदि पकड़ में आगया तो उस पर मुकदमा चलने में वर्षों लग जाते हैं,कोई कठोर सजा मिल नहीं पाती ,कभी सबूत नहीं,कभी हमारी एजेंसियों की अक्षमताओं या लापरवाही के कारण वो साफ़ साफ़ छूट जाते हैं,और कभी बहुत दवाब होने के कारण सजा मिली भी तो……………..और इसका दर्द वही जानता है,जिसने अपने किसी या कुछ प्रियजनों को गंवाया है
जय जयकार बोलिए उन कृपालु,दयालु,,दयानिधान,,करुनानिधान महानुभावों की जो,राष्ट्र ,समाज , विश्व और मानवता के शत्रु , मजहबी जूनून में सम्पूर्ण देश के विनाश का संकल्प लेने वाले आतंकियों को प्राणदंड दिए जाने का विरोध करते हैं.जघन्य अपराध जिसमें कत्ल,सामूहिक कत्ल,डकैती और नरसंहार , honour killing (जिसमें अपनी आनबान के लिए किसी को भी मृत्यु के घाट उतार दिया जाता है).,झूठे मुटभेड में अधिकारियों द्वारा किसी को भी मार देना इसी श्रेणी में आता है.बलात्कार जैसा घिनौना अपराध, सशस्त्र सैनिक विद्रोह जिसमें नरसंहार हुआ हो,मादक द्रव्यों की बहुत बड़ी मात्र में तस्करी तथा आतंकवादी गतिविधियाँ जिनमें निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया हो..निठारी काण्ड के दोषी नरपशु …………………………….आदि आदि पर ही मृत्युदंड दिए जाने की व्यवस्था है. इनसब पर भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश हैं,कि rarest of rare केसेज में ही मृत्युदंड दिया जा सकता है.
मृत्युदंड के संदर्भ में यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाय तो राजा महाराजाओं के समय से ये विद्यमान रहा है,दुराचारी,क्रूर ,अत्याचारी राजाओं ऩे इसका दुरूपयोग भी किया .ब्रिटिश काल में भी मृत्युदंड भारत में रहा है,संविधान निर्माण की प्रक्रिया में अधिकांश लोग इस समर्थन में थे,अतः संविधान में इसकी व्यवस्था की गयी. हमारे यहाँ सर्वोच्च न्यायालय से भी मृत्युदंड दिए जाने पर भी राष्ट्रपति के पास क्षमादान का प्रावधान है,अतः बहुत ही कठिन परिस्थितियों में मृत्युदंड दिया जाता है. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार १९७५ से १९९५ तक जहाँ ४० लोगों को मृत्युदंड दिया गया ,१९९५ में ऑटो शंकर नामक अपराधी को फांसी हुई.तदोपरांत धनंजय चक्रवर्ती जैसे खूंखार दरिन्दे को २००४ में फांसी की सजा मिली.
वर्तमान में हमारी संसद पर आतंकी हमले के अपराधी अफज़ल गुरु को फांसी २००६ में दी गयी थी परन्तु आज २०११ तक भी वो जीवित रहता हुआ सरकारी मेहमान है.ऐसी २० से भी अधिक दया याचिकाएं राष्ट्रपति के पास विचाराधीन हैं.कसाब शाही सेवा सत्कार करा रहा है.
———————————————————————————————– अपराध के पश्चात दंड तो प्रकृति का विधान है,अपराध की प्रकृति के अनुसार दंड सबको मिलता है.हमारे शास्त्रों के अनुसार भी अपने कर्मों का फल व्यक्ति भुगतता है.प्रकृति भी मानव द्वारा स्वयं के अनावश्यक दोहन,छेड़ -छाड़ पर दण्डित करती है,जिसका परिणाम भूकम्प,विनाशकारी तूफ़ान,बाढ़,सुनामी ,ज्वालामुखी -विस्फोट ,चक्रवात आदि के रूप में समक्ष आता है,और प्रचंड विनाशलीला मचती है.
परिवार में भी दंड मिलता है,समाज में भी समाज से बहिष्कार आदि विभिन्न रूपों में दंड मिलता है.इसी प्रकार क़ानून हाथ में लेने पर या विभिन्न अपराधों पर जिस देश का मनुष्य अपराधी है,क़ानून के अनुरूप दंड मिलता है .(अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं के अनुसार प्रत्यर्पण संधि परस्पर होने पर एक दुसरे देश को अपराधी को सौंपा जा सकता है.)
उपरोक्त श्रेणी के आसुरी प्रवृत्ति सम्पन्न लोगों के लिए मृत्युदंड समाप्त करने की मांग करने वाले इन तथाकथित मानवाधिकार वादियों की बुद्धि पर तरस आता है,शायद इनको ज्ञात होगा कि स्वयं को मानवाधिकारों का पुरोधा मानने वाला अमेरिका भी आज तक मृत्युदंड का प्रावधान समाप्त नहीं कर सका है.
दया ,क्षमा,अहिंसा आदि मानव के नैसर्गिक गुण हैं परन्तु “अति’ सर्वत्र वर्जेयत” क्षमा का अधिकारी वही हो सकता है जिसके ह्रदय में ऐसी भावनाएं स्वयं हों.जो रक्तपात,निर्दोषों की जान लेने के अतिरिक्त और कुछ जानता ही नहीं उसके साथ नरमी तो उसके अन्दर के शैतान को और जागृत करना है. प्राय कहा जाता है कि प्राणदंड देने से वो लोग लौट कर नहीं आ सकते जो उनकी दरिंदगी का शिकार हुए हों,परन्तुअपराधी ! वो तो कठोर सजा न मिलने से वो पुनः पुनः इन्ही कार्यों की ओर उन्मुख होंगें.
ह्रदय परिवर्तन की आशा में ऐसे कृत्यों को बढ़ावा देना मेरे विचार से उनकी कुटिलता को पोषित करना है न कि उनको सुधारना.
प्राणदंड से भी अधिक कोई शारीरिक,मानसिक ,भौतिक उत्पीडन वाला दंड होता हो तो उनको वही दिया जाना चाहिए.
” खीर का सर काटी के मलिए लौण लगाय,
रहिमन कडुए मुखन को यही सजाय”
यहाँ तो मुख नहीं नख से शिख तक कडवाहट ही है तो फिर कैसी क्षमा? उनके लिए क्षमा याचना करने वाले भी मेरी दृष्टि में मानवता के अपराधी हैं.
अंत में इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि हमारे देश में तो प्राणदंड की सज़ा मिलना ही कठिन है और फिर इतनी लम्बी प्रक्रिया है कि त्रुटि की संभावना नहीं रह जाती,अतः ऐसे मानवता के शत्रुओं के लिए क्षमा की अपील न करें.चाहे वो राजीव गाँधी के हत्यारे हों,वीरप्पन के साथी हों,अफज़ल गुरु हो या फिर कसाब और उस जैसे दरिन्दे. और सम्पूर्ण प्रक्रिया पूर्ण हो जाने पर उनको दंड शीघ्र मिलना चाहिए..
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