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मूल्य वृद्धि पर लगाम लग गयी है ?

chandravilla
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समाचार ज्ञात हुआ कि मात्र ९६५ रु मासिक कमाने वाला व्यक्ति निर्धन रेखा से जीवन यापन करने वालों की श्रेणी में नहीं आता ,अर्थात या तो महंगाई हमारे देश से पूर्णतया समाप्त हो गयी या सरकार आंकड़ों के जाल में उलझाकर जनता का मूर्ख बना रही है,यदि महंगाई समाप्त हुई है तो सरकार की जितनी सराहना की जाय कम है परन्तु यदि वो निर्धन जनता का मज़ाक उड़ा रही है तो?
सरकार को दोष देने, और कोसने का काम अभी तक विपक्ष का था,परन्तु लगता है,अब तो कांग्रेस में वास्तविक लोकतंत्र की शुरुआत हुई है,जो स्वयं सरकार के सिपहसालारों ऩे ही अपने साथियों के कारनामों पर स्वर बुलंद किया है,या बुलंद करने का ढोंग किया है..अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त महान अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह जो २ दशक से भी अधिक समय से देश की समस्याओं को परख रहे हैं,रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुकें,है,देश विदेश में अर्थशास्त्र विषय में अपनी विद्वता का लोहा मनवा चुकें है अनेकानेक उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं,,ये मानते हैं तथा उच्चतम न्यायालय में अपने हस्ताक्षरित शपथ पत्र में ( जो योजना आयोग द्वारा तैयार किया गया है)स्वीकार करते हैं कि यदि हमारे देश में किसी व्यक्ति की मासिक आय ९६५ रु शहरों में तथा ७८१ रु ग्राम्य क्षेत्रो में है तो वह व्यक्ति बी पी एल अर्थात गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की श्रेणी में नहीं आता.अर्थात लगभग ३२ रु तथा २६रु (लगभग) प्रतिदिन अपने ऊपर व्यय करने की क्षमता रखने वाला व्यक्ति इस श्रेणी से बाहर है.,सरकार के अनुसार अनाज पर प्रतिदिन ५.५० रु,दाल पर एक रु २ पैसे,सब्जी पर २ रु,दूध पर २ रु ३३ पैसे,स्वास्थ्य पर ४० रु और मकान के किराये पर ५० रु व्यय करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा से ऊपर है.
मैं अपने घर में काम करने वाली सेविका का उदाहरण देकर स्पष्ट करना चाहूंगी उसके परिवार में ६ सदस्य हैं,बच्चे छोटे हैं,पति किसी निजी फैक्ट्री में कभी कभी काम करता है,वो स्वयं ४-५ घरों में झाडू पोछा करती है संभवतः २५०० रु के लगभग कमा लेती है, ७०० रु में एक छोटा सा कमरा उसने किराये पर लिया है,बच्चों का पेट भी भरना है, साक्षर भी बनाना चाहती है,. दैनिक घरेलू उपयोग का सारा सामान वह भी उतनी कीमत पर खरीदती है जितना हम.तो सरकार के अनुसार वह तो निर्धनता रेखा से बहुत ऊपर है,भले ही वह अपने घर में प्रतिदिन बच्चों का पेट न भर पाती हो.उसका आज तक बी पी एल कार्ड नहीं बन सका हाँ यदि वह उसके लिए मोटी रिश्वत का प्रबंध कर ले तो उसका कार्ड बन सकता है.
कुछ समय पूर्व इस श्रेणी के लिए जो सीमा निर्धारित की गयी थी उसके अनुसार ये राशि निर्धारित हुई थी क्रमशः २० रु और १५ रु अर्थात एक ओर तो सरकार ऩे इस राशि में १२ व ११ रु का अंतर कर ये स्वीकार किया है ,कि महंगाई में वृद्धि हुई है ,स्वयं सरकार स्वीकार कर चुकी है,कि कीमतें आसमान छू रही हैं,उनपर लगाम लगाना टेढ़ी खीर है,या असंभव है,,कारण चाहे अंतर्राष्ट्रीय हों या कुछ और .सबकी वेतन वृद्धि महंगाई भत्तों में वृद्धि की जा रही है ,स्वयं सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाये जा रहे हैं .
दूसरी ओर आम व्यक्ति! जिसको सर ढकने को छत, तन ढकने को वस्त्र तथा पेट भरने के लिए अन्न चाहिए,दाल,दूध (चाहे वो चाय के लिए ही खरीदा जाय)और सब्जी उसकी आवश्यकता तो सभी को है ,बाजार में सस्ते ढाबे में रोटी २-३ रुपए की चाय ७ रु की .है और घर में भोजन पकाने की यदि बात की जाय तो उसके लिए ईंधन भी चाहिए,नमक हल्दी की भी आवश्यकता है.,चाय में चीनी चाय पत्ती भी डलती है. सब्जी, दाल दवा ,वस्त्र भी दैनिक आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं..ये मूल्य तो अनुमानतः छोटे शहरों के हैं बड़े शहरों की तो बात तो फिलहाल की ही नहीं (वैसे इस श्रेणी के लोग महानगरों में भी रहते हैं) …… .ऐसे ही यदि गाँव के भी बात की जाय तो वस्तुओं के मूल्य तो वहां भी यही हैं,अंतर रहने के स्थान का हो सकता है.

क्या इतना अर्जन करने वाले लोगों को प्रभु ऩे सभी रोगों से मुक्ति प्रदान कर रखी है?,क्या शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार उनके बच्चों को नहीं है?
इन आंकड़ों में उलझाकर किसका मूर्ख बनाना चाहती है सरकार ?,मूर्खता तो स्वयं अपनी प्रदर्शित की है यह आंकडें प्रदर्शित कर. क्या सरकार यह दिखाना चाह रही है कि हमारे यहाँ सब कुछ बहुत सस्ता है,भंडार भरे हैं,इतनी धनराशी अर्जित करने वाले सभी लोगों को सरकार ने रहने,ईंधन,चिकित्सा,शिक्षा की सुविधाएँ सबको निशुल्क प्रदान की हुई हैं.कहाँ गयी हमारे प्रधानमन्त्री जी की विद्वता,उनका जमीन से जुड़े होने का दावा करना ,तथा सहृदयता और व्यवहारिकता
वास्तविकता तो ये है कि” जाके पैर न फटी बिबाई वो क्या जाने पीर पराई” निरंतर वातानुकूलित कार्यालयों में काम करने वाले, वातानुकूलित पंचसितारा होटल सदृश सुविधायुक्त ,आवासों में रहने वाले तथा ऐसी ही गाड़ियों में यात्रा करने वाले लोग कैसी जान सकते हैं कि आदमी को गुजारे के लिए क्या चाहिए ,कैसे पेट भरे,तन ढके,या रात गुजारे.और वैसे भी उनको तो सम्पूर्ण देश में सबसे सस्ता पूर्णतया साफ़ सुथरा शाकाहारी भोजन मात्र १२.३० में मिलता है,चाय १ रु में मिलती है,और दाल डेढ़ रु में और मांसाहारी भोजन २२ रु में प्राप्त होता है .चिकित्सा सुविधाएँ सर्वसुविधासम्पन्न अस्पतालों में निशुल्क मिलती हैं .और वैसे तो उनको अपने इलाज के लिए यहाँ की सुविधाओं पर विश्वास नहीं है,अतः विदेश जाकर इलाज कराते हैं
कैसे
हृदयहीन लोगों के हाथ में है,हमारे देश की बागडोर जिनके लिए “आप भरा तो जग भरा” कोई भूखे पेट सो रहा है,कोई खुले आसमान के नीचे रात गुजारता है,फटे चीथड़े लपेट कर अपनी लाज बचा रहा है,कूड़ा बीन कर अपनी जिन्दगी गुजार देता है उनकी आत्मा उनको कभी कचोटती नहीं कैसे कचोटेगी आत्मा तो बिक चुकी है, भ्रष्टाचार की मंडी में.
आखिर किसने अधिकार दिया है इनको अभावग्रस्त जनता की हंसी उड़ाने का ?संभवतः ये भूल रहे हैं कि भूखे (निर्बल ) सताने का परिणाम बहुत घातक होता है.और ये परिणाम इनको भुगतना ही होगा.

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