Menu
blogid : 2711 postid : 1369

बच्चों को मोहरा न बनाएं.

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments
                                        संयोग से गत दिनों में एक परिवार से सम्पर्क कुछ अधिक समय रहा.परिवार सुखी,समृद्ध और सुशिक्षित.पुत्र-पुत्रवधू,अग्रिम पीढी के प्यारे बच्चे.परन्तु एक घटना ऩे स्तब्ध कर दिया. छोटे बच्चे ऩे अपनी माँ से पूछा कि क्या वो अपने दादा-दादी के पास थोड़ी देर  के लिए जा सकता है,जबकि दादी- दादा  बहुत ही सज्जन थे, दिखावे के रूप में संभवतः पारस्परिक सम्बन्ध भी संतोषजनक थे  और  सब एक ही घर में रहते थे.सर्वप्रथम तो ये देखकर कुछ आश्चर्यजनक लगा कि घर में जाने के लिए अनुमति! और माँ का मना करना.मैंने सोचा संभवतः कोई विशेष कारण हो, तो पता चला कि ऐसा कुछ नहीं बस अति आधुनिकता के रंग में  रंगी उस मम्मी को ये डर रहता है कि बच्चे गंवार बन जायेंगें.घर लौटने पर भी यही उधेड़ बुन चलती रही कि क्या बच्चे की सबसे बड़ी शुभचिंतक माँ की ये सोच उचित है.? पुत्र या पुत्री  का विवाह कर सभी माता-पिता अग्रिम पीढी के साथ समय व्यतीत करने को आतुर रहते हैं,और बच्चे भी आनंदित रहते हैं उस दुनिया में.दादी दादी द्वारा सुनायी जाने वाली कहानियां  अब दुर्लभ होती जा रही हैं,जो बच्चों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं.उसके पीछे पूर्व लेखों में  अन्य पूर्ववर्णित कारणों के अतिरिक्त ये कारण और अधिक पीड़ाजनक है.
                                                                             ये कहानी कोई एक दो परिवारों की नहीं बहुत से परिवार इस दुखद त्रासदी से पीड़ित हैं,और स्वयं को बच्चों का शुभचिंतक मानने वाले माता-पिता अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने के प्रयास में यही भूल जाते हैं कि वो बच्चों का कितना अहित कर रहे हैं. ये एक ज्वलंत समस्या है,न केवल पारिवारिक दृष्टिकोण से अपितु बच्चे के भविष्य के दृष्टिकोण से भी.
                                                                            प्राय परिवारों में बच्चों के समक्ष परिवार के अन्य सदस्यों की निंदा आदि धडल्ले से की जाती  है,निंदा परिवार के सदस्यों की ही नहीं स्वयं बच्चों के माता-पिता एक दूसरे की करते हैं,एक बार एक बच्चे को अपनी माँ के लिए कुछ अपशब्द बोलते हुए देखा तो पता चला कि सुशिक्षित होने पर भी बच्चे के पिता की भाषा गालीगलौज में बात करने की थी.वही बच्चे के संस्कारों में समाहित हो गया था.साथियों के साथ अपने शिक्षकों के प्रति भी वही भाषा उसकी प्रवृत्ति बनजाती है.इन सबसे बढ़कर दुखद है बच्चों को माता-पिता द्वारा मोहरा बनाना.प्राय परिवार में बच्चों से जासूसों का काम लिया जाता है. शतरंज के मोहरों की भांति कभी बच्चे की भावनाओं के साथ माँ खेलती हैं,तो कभी पिता. .बच्चे अपने पिता की सभी बातें अपनी माँ को बताते हैं और यही स्थिति विपरीत रूप में भी रहती है,अर्थात पिता भी बच्चों को ऐसी जासूसी के लिए प्रयोग करते हैं.यदि बच्चा अनिच्छुक हो तो उसको भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया जाता है,उसको कहा जाता है कि वो अपने माँ पिता से प्यार नहीं करता या माता-पिता उसकी अभीष्ट वस्तु तभी लाकर देंगें जब वह उनके द्वारा सौंपा गया कार्य करेगा,या फिर माँ पिता उससे बोलेंगें नहीं या उसको प्यार नहीं करेंगें और कभी तो बच्चे को मारने-पीटने की भी धमकी दी जाती है., .आदि आदि…………कई बार तो बच्चों को अनुचित प्रलोभन देकर अनैतिक कार्य करवाने  तथा उनको जान से मरने तक के मामले समाचारपत्रों की सुर्खियाँ बनते हैं…संभवतः माता-पिता ये भूल जाते हैं कि बच्चों के इस भावनात्मक शोषण से वो उन बच्चों के साथ शत्रुता कर  रहे हैं, बच्चे के मन पर ऐसे संस्कारों का रोपण हो रहा है,जो बच्चों के लिए तो घातक है,भविष्य में बच्चे इस कुप्रवृत्ति का लाभ उठाकर स्वयं अनैतिक कार्यों में संलग्न हो जाते हैं.साथ ही अपने माता-पिता के प्रति उनके ह्रदय में सम्मान भी नहीं रहता.
                                          इसी संदर्भ में अभी पता चला कि कुछ लोग अपने बच्चों को नवरात्र में कन्या पूजन आदि में भेजना भी ठीक नहीं समझते.उनके विचार से ये अपमानजनक है और ऐसे कार्यक्रम में अमीर गरीब सभी प्रकार के बच्चे होते हैं.उनके साथ बच्चों का सम्पर्क उचित नहीं.मेरे विचार से यहाँ माता-पिता बच्चे को समाज से जोड़ने का नहीं तोड़ने का काम कर रहे हैं बच्चे को किसी ग्रंथि का शिकार बनाना सर्वथा अनुचित है. .
                                                                                       एक अन्य जटिल समस्या है,जो यद्यपि किसी न किसी रूप में समाज में सदा  दृष्टिगत होती  रही है,परन्तु वर्तमान में चरम पर है.माता-पिता का  अपने बच्चों को सदा शीर्ष पर देखना एक स्वप्न होता है, ,जो एक शुभ लक्षण है.बच्चे की प्रतिभा को निखारकर,अपनी सामर्थ्य के अनुसार सुविधा -साधन प्रदान कर तथा उसको प्रेरणा प्रदान करना सभी माता-पिता का दायित्व है.प्रतिभा चाहे शिक्षाजगत में हो,क्रीडा,ललित कलाओं आदि या किसी अन्य क्षेत्र में, उसको प्रोत्साहन प्रदान करना आवश्यक है,.परन्तु मेरे विचार से  अपने स्वप्नों को उनपर  थोपना न्यायोचित नहीं.एक बार एक बच्चे का केस पढ़ा था शायद” बुधिया” उस बच्चे का नाम था जिसकी प्रतिभा उसका कुशल धावक होना था परन्तु उसकी शारीरिक अक्षमता के बाद भी उसका एक प्रकार से शोषण ही होता था.दूसरे शब्दों में उसके शरीर पर अत्याचार.
टी वी के विभिन्न कार्यक्रमों में बच्चों के माता-पिता के उदगार सुनकर आश्चर्य भी होता है और दुःख भी..नृत्य के एक कार्यक्रम में एक छोटी सी बच्ची द्वारा एक अत्यंत अभद्र व अश्लील गीत पर गंदी भावभंगिमाओं के द्वारा नृत्य किया गया तो मान्यवर निर्णायक महोदय में से एक ने उस बच्ची से पुछा कि उसको किसने सिखाया, तो उसने कहा उसके पापा ने .पापा को मंच पर बुलाया गया और उनसे पूछा कि आपने यही नृत्य क्यों सिखाया इस प्रतिभाशालिनी बच्ची को तो उनका उत्तर था कि दर्शकों को पसंद आ सके .इसी प्रकार . ,जब नन्हें मुन्ने बच्चों को रिकार्ड्स में लाने  के लिए या टैलेंट प्रदर्शन कार्यक्रमों में उनको विजयश्री दिलाने के लिए उनको झौंक दिया जाता है,.स्वाभाविक रूप से विजयश्री एक बच्चे को मिलती है,और शेष को अश्रु बहाते देखा जा सकता है,मेरे कथन का अर्थ ये कदापि नहीं कि इन कार्यक्रमों में भाग लेना अनुचित है,परन्तु उनकी क्षमता , उनकी निजी प्रतिभा व रूचि होने पर .वैसे भी प्राय परिणाम वोटिंग आधारित होते हैं,जिनके कारण प्राय अपेक्षित नहीं होते और बच्चे अवसाद के शिकार हो जाते हैं,अभी पिछले दिनों कुछ केसेज ऐसे रहे ,जिनके कारण बच्चे शारीरिक व मानसिक अवसाद का शिकार बने.पढ़ाई तो उनकी बाधित हुई ही ,तनाव से भी पीड़ित  हुए.किसी कार्य में सफलता के लिए जूनून होने अच्छा है,परन्तु अपेक्षित सफलता न मिलने पर उनका शारीरिक मानसिक शोषण उनको व्यथित कर देता है.

यदि परिवार में कोई समस्या ऐसी है भी जो आपको पूर्व पीढी की पसंद नहीं तो बच्चे को सकारात्मक रूप से समझाया जा सकता है,तथा बड़े लोगों से भी अनुरोध किया जा सकता है इसी प्रकार पति पत्नी द्वारा पारस्परिक अविश्वास या विवाद की स्थिति में बच्चे का भावनात्मक शोषण उसको अपराधी बना सकता है..उनका आत्मविश्वास समाप्त करता है,और अपने पालकों के प्रति सम्मान की कमी या वितृष्णा उत्पन्न करता है.और बर्बाद करता है उनका भविष्य. strong>

                                                        प्राय देखा जाता है,कि माता-पिता अपने पूर्वसंचित अरमानों को अपने बच्चों के माध्यम से पूर्ण करना चाहते हैं,जो उस  सीमा तक ही उचित है,जब तक बच्चे पर बोझ के रूप में नहीं है,अतः अपनी संतान को प्रेरित करिए,यथासंभव साधन प्रदान करिए परन्तु अपनी अतृप्त आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उनको मोहरे के रूप में प्रयोग करते हुए उनके भविष्य के साथ मत खेलिए ,उनकी स्वाभाविक प्रतिभा को विकसित होने दीजिये.माता-पिता से बड़ा हितैषी बच्चे का कोई नहीं हो सकता ,परन्तु अपने अरमानों की पूर्ती के लिए उनका भविष्य दांव पर मत लगाईये.
                                                
 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to bharodiyaCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh