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” सम्मान के लिए मौत” अथवा प्राणदंड अर्थात यदि अपने सम्मान पर किसी के कारण कोई आंच आती है,तो उत्तरदायी को मृत्युदंड देने का अधिकार उस परिवार या सम्बन्धित समाज को है.कितना आश्चर्यजनक सा लगता है,सुनने ,देखने में या पढने में कि परिवार के लोग अपने से रक्त सम्बन्धों से जुडी.प्यार से पालित पोषित पुत्री का इसलिए प्राणांत कर दें कि उसने विधर्मी,सगोत्री या दूसरी जाति के पुरुष से प्रेम करने के कारण विवाह कर लिया है,या करने का निर्णय लिया है.प्राय ये हत्याएं प्रेम सम्बन्धों के कारण होती हैं.
ये हत्याएं केवल भारत में होती हैं ऐसा नहीं है,उद्गम तो इनका अरब देशों से माना जाता है,क्योंकि पर्दे में रहने वाली तथा असंख्य प्रतिबंधों के रहते हुए जब भी कोई महिला इन बदिशों से स्वयं की रक्षा हेतु कहीं भी प्रेम कर बैठती रुढियों की बेड़ियों में जकड़ा परम्परावादी पुरुष समाज अपने सम्मान पर आंच आने के नाम पर उस महिला और उसके साथी को जघन्य दंड सार्वजनिक रूप से देकर अपने अहम् की तुष्ठी कर लेता.समाज के लिए विद्रूप कहा जाय कि पुरुष स्वयं तो चार पत्नी रखने का अधिकारी था और बिना कोई कारण बताये बस तलाक तलाक कह कर मुक्त .पुरुष के इस कृत्य से परिवार के सम्मान को ठेस नहीं पहुँचती थी क्यों कि समाज के नियमों का निर्माण पुरुषों के ही हित में रहा है.परन्तु स्त्री का स्वयं किया गया प्रेम या विवाह गुनाह था.प्रेम का अधिकार केवल पुरुष को था स्त्री को नहीं. इन सब व्यवस्थाओं की आलोचना करने वाला सभ्य समाज में धीरे धीरे इस सम्मान मृत्यु का प्रचलन बढ़ता गया और आज सम्पूर्ण विश्व में ऐसी घटनाओं की संख्या ५००० से अधिक प्रतिवर्ष रहती है.और ये हत्याएं प्राय विश्व के सभी देशों में हैं.पाश्चात्य देशों में घटित होने वाली ऐसी सम्मान हत्याएं प्राय वहीँ बसे मुस्लिम परिवारों में अधिक देखने को मिलती हैं. कबीलाई समाजों में भी ऐसी व्यवस्थाएं रही हैं.
यदि हम अपने देश की बात करें तो हमारे यहाँ जौहर जैसी प्रथाएं विद्यमान थी राजपूत परिवारों में मुख्तया जब आक्रमणकारियों से युद्ध करते हुए राजे महाराजे शहीद हो जाते थे,तो मुस्लिम आक्रमणकारियों के अत्याचारों से बचने के लिए राजपूत नारियां जौहर कर लेती थी,सती प्रथा,जौहर आदि का रूप सर्वथा भिन्न था इसके अतिरिक्त भी परम्परावादी परिवारों में यदा-कदा ये घटनाएँ होती थीं.जो सामान्य नहीं थीं.,स्वामी विवेकानन्द ,राजाराममोहन राय,स्वामी दयानन्द आदि महान समाज सुधारकों के प्रयासों ऩे सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगी. .परन्तु वर्तमान में उत्तरप्रदेश,बिहार,राजस्थान,उत्तराखंड ,हरियाणा और दिल्ली में ये घटनाएँ सामान्य होती जा रही है,जिनको समाज के कलंक का नाम दिया जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा
. सम्मान के महत्व को नकारा नहीं जा सकता,चाहे वह व्यक्ति को हो ,धर्म का जाति का किसी अन्य संस्था या फिर राष्ट्र का. सम्मान निस्संदेह महत्वपूर्ण है.परन्तु यदि माता-पिता की इच्छा या परिवार के विपरीत जाकर कोई प्रेमी युगल विवाह रचाता है तो उसके लिए इतनी बड़ी सजा? प्रेम के बदले में सबके सामने नृशंस बनकर हत्या करना या करवा देना.?हम आदिम युग में जी रहे हैं,या तथाकथित सभ्य समाज में?सम्मान किसका क्या परिवार की इच्छा के विपरीत जाना ही एक स्वरूप है गुनाह का लडकी के कृत्यों से ही परिवार के सम्मान को ठेस पहुँचती है,लड़कों के घृणित कृत्यों से परिवार का मान सम्मान बढ़ता है?
. प्राय फ़िल्मी कथानकों में देखने को मिलता था कि पारस्परिक विद्वेष या किसी अन्य पारिवारिक विवादों,राजघरानों या कुलीन परिवारों के पारस्परिक झगड़ों में इन प्रेम सम्बन्धों को मान्यता नहीं मिलती थी और हत्याओं का क्रम चलता रहता था जो खूनी रंजिश में बदल जाती थी और कई पीढी तक चलती थी.आज ये सम्मान हत्याएं व्यवहारिक रूप से सामान्य परिवारों में व्यवहार में आ रही हैं.मेरे विचार से इनका मुख्य कारण है,जाति,धर्म,सवर्ण -हरिजन,निर्धन-धनवान या फिर फतवे या फरमान .और इनसब से बढ़कर शिक्षा की कमी.
सगोत्र विवाहों ,अंतरजातीय विवाहों पर नित्य ही ऐसे फरमान या सामजिक आदेश अपनी संप्रभुता बनाये रखने के लिए कुछ समाजों या खापों आदि के द्वारा जारी किये जाते हैं.इनके न मानने पर जिन्दा जलाने,पेड़ पर लटकर या किसी अन्य रूप में सार्वजनिक रूप से फांसी देकर ये प्रदर्शित किया जाता है कि इस राह पर चलने वालों का अंत ऐसा या इससे भी भयंकर होगा.हमारे देश में ऐसे कृत्यों को सम्पादित करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है अवश्य परन्तु जिन प्रभावशाली लोगों द्वारा ये दंड निर्धारित किये जाते हैं या फिर जो इनके लिए उत्तरदायी हैं उनके समक्ष मुख खोलने का साहस कोई नहीं कर पाता और वो अपनी मूंछों पर ताव देते हुए पुनः मैदान में आ खड़े होते है और उनपर कोई नियंत्रण नहीं लग पाता. इस प्रकार के जातीय स्वरूप वाले समाज के उत्थान में अपनी भूमिका का निर्वाह भली भांति कर सकते हैं यदि .इन समूहों द्वारा दहेज़ लेने,के खिलाफ कठोरतम दंड दिया जाय, ,कन्या भ्रूण हत्याओं पर रोक लगाने का अभियान ल चलाया जाय, ,नारी शिक्षा को लागू किया जाय,.बलात्कारियों को मृत्यु दंड देने की संस्तुति की जाय. .समाज में सकारात्मक करने के लिए बहुत से कार्य हैं,जिनके करने पर इनका महत्व बढेगा परन्तु ऐसे नादिरशाही फरमान लागू करके नहीं.
वर्तमान समय में जब लिंगानुपात घट रहा है,विवाह के लिए लड़कियां खोजना कठिन हो रहा है,ऐसे ऐसे फरमानों का प्रभाव क्या होगा?निश्चित रूप से अनैतिकता कम नहीं होगी,बढ़ेगी और नए नए रूपों में सामने आएगी .कुछ स्वरूप तो आज दृष्टव्य भी है,वेश्यावृत्ति,बार बालाएं,काल गर्ल्स ,समलैंगिकता आदि आदि………………क्या हम पूर्वकाल की भांति बहुपत्नी प्रथा वाले युग में लौटना चाह रहे हैं? हाँ अनैतिक सम्बन्धों को समर्थन देने के पक्ष में मैं नहीं क्योंकि आज ऐसे भी केसेज सामने आते हैं जहाँ विवाहित स्त्री-पुरुष अपने अपने परिवारों को धोखा देकर विवाह रचा लेते हैं तथा सामजिक ढाँचे को विकृत बनाते हैं.उनपर नियंत्रण होना चाहिए जिससे परिवार की समाज की गरिमा व्यवस्था पर आंच न आये परन्तु उनको फांसी देकर या जिन्दा जलाकर उनके जीवन का अंत करना तो आमानुषिक या पाशविक कृत्य ही कहा जा सकता है. ” \
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