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सबसे पहले हम भारतीय हैं,(मराठी बनाम उत्तर भारतीय – राजनीतिक दुराग्रह या हक की लड़ाई)जागरण जंक्शन फोरम

chandravilla
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गुरु पूरब अर्थात गुरु पर्व पर सभी को बधाई.परस्पर प्रेम,सहयोग सद्भावना का उपदेश देने वाले समाज को हानि पहुँचाने वाली रुढियों का विरोध करने वालके सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के जन्मदिवस पर आनन्दोत्सव है.सिख लोग इस पर्व को दीपावली के रूप में मनाते हैं.जिन महात्माओं ने हमें पारस्परिक भाई चारे का उपदेश दिया,बिना किसी भेदभाव के सबका प्रेम व सम्मान करने की शिक्षा दी उनको हमारा शत शत नमन.
ऐसे विलक्षण संस्कारों वाले इस देश में जब कुछ स्वार्थी लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए देशवासियों में विद्वेष की अग्नि भड़काते हैं.तो बहुत ही दुखद है, जम्मू कश्मीर ,मुम्बई हो,पूर्वोत्तर राज्य हों या कोई भी प्रांत इन अलगाववाद के स्वरों का विरोध ,दमन होना ही चाहिए परन्तु…………….?
व्यक्ति,समूह ,समाज या राष्ट्र संभवतः कोई भी इकाई पूर्णतया आत्मनिर्भर होने का दावा नहीं कर सकती.सबके हित परस्पर सहयोग से ही पूर्ण होते हैं.परिवार भी इसी सिद्धांत पर आधारित होता है,जहाँ एक छोटे बच्चे के लिए भी स्थान है तो बुजुर्ग पीढ़ी की भी अपनी भूमिका होती है.यदि हम किसी मोहल्ले ,गली,सोसाईटी आदि में भी रहते हैं,तो भले ही कितने ही अंतर्मुखी हों परन्तु किसी न किसी रूप में परनिर्भरता रहती है.बहुत से अभिमानी लोग सर्वत्र विद्यमान रहते हैं,परन्तु कहीं न कहीं सर्व साधन सम्पन्न होते हुए भी यहाँ उनको भी सहयोग लेना ही पड़ता है.
हमारा संविधान संघवाद के सिद्धांत पर आधारित तो अवश्य है,परन्तु अमेरिकी पद्धति वाला संघवाद हमारे यहाँ नहीं है.एक मूल अंतर हमारे व अमेरिका के संविधान में यही है,कि अमेरिका में दोहरी नागरिकता का सिद्धांत है,सभी नागरिक अपने राज्य के और संघ के नागरिक हैं,इसके सर्वथा विपरीत हर भारतवासी केवल भारत का नागरिक है.संविधान के अनुसार अपने मूलभूत अधिकारों का उपयोग करते हुए भारतीय नागरिक कहीं भी आने जाने ,व्यवसाय करने ,नौकरी करने के लिए स्वतंत्र है,हाँ सभी राज्यों की जो भी व्यवस्थाएं हैं उनको मानना आवश्यक है.(ऐसी व्यवस्था का कारण यही है कि शक्तियों का विभाजन होने के कारण राज्यों के अपने क़ानून में थोड़ी बहुत भिन्नता हो सकती है.)
अंतर निर्भरता के इस युग में हम जहाँ भी निवास करते हों अन्य प्रान्तों के वासियों के साथ हम जुड़े होते हैं,जहाँ निर्धनता अधिक है,वहाँ के लोग मजदूरी के कार्य हेतु अन्य राज्यों में जाते हैं,जहाँ वह जीवन यापन हेतु परिश्रम करते हैं.सम्पन्नजन व्यवसाय आदि के संदर्भ में अन्य राज्यों में जाते हैं,या रहते हैं ,इसी प्रकार नौकरी आदि के लिए भी अन्यत्र जाना बाध्यता है.महानगरों में ये स्थिति बहुत अधिक रहती है क्योंकि कार्य व्यवसाय के अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं. बड़ी कम्पनीज,उद्योग धंधे ,व्यापार आदि महानगरों में अधिक अवसर प्रदान करते हैं.
हमारे सभी महानगर एक सागर की भांति सभी राज्यों के निवासियों को अपने में समाये रहते हैं.ऐसा ही हमारे महानगर मुम्बई में है आम .जनता के लिए तो शायद ये अंतर करना भी इतना सरल नहीं कि अमुक व्यक्ति कहाँ का निवासी है. परन्तु स्वार्थी नेतागण नित नए नारे देकर बांटो और राज करो की नीति के आधार पर “केवल मराठी मानुष ” या “मुम्बई केवल मराठियों के लिए ” आदि नारों के साथ परस्पर विद्वेष भडकते हैं,जिसका शिकार कभी ऑटो चालक बनते हैं,तो कभी वडा पाव बेचने वाले.या किसी और श्रेणी के लोग.भले ही ये “हल्ला बोल ” एक श्रेणी के लोगों के लिए होता है,परन्तु प्रभावित सभी होते हैं,यहाँ तक भीड़ की दंगई राजनीति का शिकार सभी उत्तर भारतीयों को बनना पड़ता है ,और देश के अन्य भागों में बसे उनके परिवारजन आतंकित रहते हैं.
प्रश्न उत्पन्न होता है कि यदि अन्य राज्य भी प्रत्युत्तर में ऐसा ही करने लगे तो देश में गृह युद्ध छिड़ने में क्या कसर बचेगी ऐसा नहीं कि ये आवाज़ केवल शिव सेना या मनसे ही बुलंद करती है,अन्य नेतागण भी चाहे उनका संबंध कांग्रेस से हो (संजय निरुपम या चव्हान……)या किसी भी दल से इसका लाभ उठाने और इसको समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ते
मुम्बई हो या जम्मू,आसाम,नागालैंड हो या अन्य कोई भी राज्य ऐसी आवाज़ जहाँ से भी उठे उसका विरोध होना आवश्यक है,मेरे विचार से ये अलगाववाद को प्रोत्साहन देना है,देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है.इन सबके लिए कठोरतम दंड का प्रावधान होना चाहिए.परन्तु मेरा स्पष्ट शब्दों में ये मानना है कि ऐसी गतिविधियों या कृत्यों के लिए सम्पूर्ण देश में दंड नियम एक ही होना चाहिए.अलगाववाद ,देश की संप्रभुता व अखंडता को प्रभावित करने वाली हर आवाज़ का दमन तो जरूरी है परन्तु निष्पक्ष रूप से ये आवाजें जहाँ भी बुलंद होती है,किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया ही होती है.और इनका दमन तभी न्यायोचित या संभव है.एक और तो हम पाकिस्तान समर्थक नेताओं को क्षमा दान ,की अपील करते हैं वोट राजनीति के लिए उनकी सजा को टालते टालते वर्षों बीत जाते हैं आंतरिक रूप से व्यक्तिगत हितों के लिए विदेशियों को देश में बस कर देश विरोधी गतिविधियों में संलग्न होने पर भी उनको देश से बहिष्कृत नहीं कर पाते और दूसरी ओर ऐसी आवाजों का विरोध करना चाहें तो कैसे रोक लग सकती है सभी वोट राजनीति के फेर में उलझे हैं देश के हित की चिंता किसी को नहीं.
मुम्बई में बसे उत्तर भारतीयों के साथ अनुचित व्यवहार होने पर यदि हम आलोचना करते हैं,तो ये स्वर काश्मीरी पंडितों की व्यथा के संदर्भ में मौन क्यों धारण करते हैं,क्या वो हमारे बंधु या भारतीय नागरिक नहीं.उनके विस्थापित होने पर हो हल्ला क्यों नहीं.ये सब वोट राजनीति के अतिरिक्त कुछ नहीं जिसका मैं समर्थन कदापि नहीं करती परन्तु इतना अवश्य कहना चाहूंगी नियम सभी के लिए एक होने चाहिए .हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं और संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों से वछित नहीं किया जा सकता .

आज इस पावन पर्व पर क्यों न हम ये दृढ संकल्प लें कि भ्रष्ट स्वार्थी राजनीति का शिकार न बनकर स्वदेश की चिंता करें और एक रहकर वाह्य शत्रुओं को मुहंतोड़ जवाब दें.

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