बच्चे मन के सच्चे (बाल दिवस पर विशेष ) जागरण जंक्शन फोरम
बाल दिवस पर बच्चों कि निष्पाप व निर्मल भावनाओं के लिए सप्रेम नमन. ” ” बच्चे मन के सच्चे ” किसी पुरानी फिल्म के गीत की ये पंक्तियाँ बहुत सीमा तक आज भी ये सन्देश देती हैं कि कुछ मामलों में तो बच्चों को ही गुरु मान लिया जाए तो श्रेष्ठ होगा.शिशु को ईश्वर का अनमोल वरदान,अनुपम कृति कहा गया है.बच्चा निष्पाप होता है हमारे दिए संस्कारों तथा प्रदान किये गए परिवेश के बीच वह बड़ा होता है.शिशु की निर्मल मुस्कान सारे परिवार को प्रसन्न रखती है.सही अर्थों में देखा जाए तो बच्चे को हम नहीं खिलाते अपितु बच्चा हमें खिलाता है.दादा-दादी,नाना-नानी माँ-पापा तथा अन्य सभी लोग अपने बचपन में लौट बच्चे के साथ तोतली भाषा में बात करते है,घोडा बन पीठ पर चढाते हैं,उलटी सीधी हरकतें कर,मजेदार चेहरे बना बच्चे को हंसाते है और उसकी हंसी में अपनी थकान,तनाव सब भूला देते हैं.बच्चा यदि किसी कारणवश हँसता नहीं तो पूरे परिवार के चेहरे पर उदासी छा जाती है.जो अपने अरमान दादा-दादी अपने बच्चों के बाल्यकाल में पूरे नहीं कर पाए थे इस समय पूरे किये जाते हैं.ये तो बात उन परिवारों की है जहाँ बच्चों के साथ माता-पिता के अतिरिक्त बड़े लोग भी है.जिन परिवारों के बच्चे दूर भी हैं वो` भी कभी वेबकैम के माध्यम से और कभी फ़ोन के माध्यम से उनकी मुस्कान देखने तथा हूँ हाँ सुनने के लिए उत्कंठित रहते हैं.है न बच्चा परिवार को बांधे रखने वाली प्यारी कड़ी.
अब १-२ उदाहरण बच्चे के भोलेपन तथा निर्मलता के बताती हूँ.मेरे बच्चे हिंदी माध्यम से ही पढ़े हैं,बच्चे जब छोटे थे स्कूल में उनको शिक्षा दी जाती थी ,बड़ों को प्रणाम करना चाहिए,चरणस्पर्श करना चाहिए.बेटे को लेने रिक्शा आती थी. बच्चों को मिली शिक्षा के अनुसार विद्यालय जाते समय बच्चे चरण स्पर्श कर ही जाते थे परिवार में सबके.रिक्शा में बैठने से पूर्व छोटा बेटा रिक्शा वाहक के भी चरण छूता था क्योंकि वो बड़ी उम्र के थे.और रिक्शा वाले भैया तो उसको गोद में उठाकर आशीर्वादों की झड़ी लगा देते थे.बाकी बच्चे जो थोड़े बड़े थे हंसी उड़ाते थे पर लम्बे समय तक उसका ये क्रम जारी रहा ,मैंने उसको कभी नहीं रोका परन्तु शायद थोडा बड़ा होने पर उसने भी नमस्ते से काम चलाना शुरू कर दिया.थोडा सा जो परिवर्तन आया बच्चे में वो परिवेश का प्रभाव था,परन्तु मुझको गर्व .है कि आज भी मेरे बच्चे सभी बड़ों से सम्मान पूर्वक ही बात करते हैं,चाहे वो सफाई कर्मचारी हो या ऑटो चालक.(आज शायद उन्ही आशीर्वाद के परिणामस्वरूप जीवन में सफल हैं बच्चे)
एक छोटा सा उदाहरण और जो हमें सिखाता है,रिक्शा में बच्चे के साथ जा रही थी.रिक्शे वाले से पैसे पूछे तो उसने बोला (शायद ) १० रु. मैंने भाव करने के हिसाब से कहा भैया आते समय तो हम ८ रु ही आये थे बच्चा बोला नहीं मम्मी हम तो १० में ही आये थे.शर्मिंदा हो कर मैं बिना कुछ बोले रिक्शे मैं बैठ गयी,परन्तु निश्चय किया जब हम बच्चों को सच बोलने या ईमानदारी की शिक्षा देते हैं तो स्वयं उसका पालन अनिवार्य रूप से करना होगा.अप्रत्यक्ष रूप से दोनों ही बार उसने ही शिक्षा दी मुझको.ऐसे बहुत अवसर हम सबके जीवन में आते हैं जो बताते हैं कि हम से श्रेष्ठ तो बच्चे हैं.
हाँ इतना अवश्य है कि यही बच्चे बड़े हो कर संसार के छल-प्रपंच सीख जाते हैं और वही सब करने लगते हैं.परन्तु उसके लिए दोषी हम और हमारा परिवेश है.गाने कि पंक्तियाँ तो पूर्णतया सही चित्रण करती हैं;
‘ खुद रूठे ,खुद मन जाएँ
फिर हमजोली बन जाएँ
झगडा जिनके साथ करें
अगले ही पल फिर बात करें.
इनको किसी से बैर नहीं
इनके लिए कोई गैर नहीं”
और हम……………………………………
और हम न जाने कब कब के कलुष की अपने मन में ग्रंथियां बना लेते हैं. कहा जाता है कि आज बच्चों में संस्कारों का लोप हो रहा है,सत्य रूप में देखा जाय तो संस्कारों की घुट्टी बच्चों को पिलाने में हम पिछड़ापन मानने लगे हैं,पाश्चात्य शैली का अन्धानुकरण करना अब हमें भाता है. .आज नयी पौध को तैयार करने में मातापिता भी बच्चों को “हाई ब्रीड” बनाना चाहते है.पाश्चात्य संस्कारों से लैस बच्चा ,अंग्रेजी में गिटिर पिटिर करता हो ,चाइनीज,खाने ,मैक्डोनलस ,अंकल चिप्स ,पिज्जा हट व पास्ता ,चोकलेट का दीवाना हो,हाय मॉम ,हाय डैड से माता-पिता से जुड़ा हो,मिस वर्ड नामी गिरामी मॉडल या फिर फिल्म तारिका लड़की हो,बेटा शाहरुख खान,आमिर या सलमान खान हो,पाश्चात्य संगीत की धुन पे नृत्य करता हो और पॉप संगीत सुनता हो ,गुनगुनाता हो बस तथाकथित स्मार्ट हो. . यही स्वप्न है आज बच्चों के लिए उनके आधुनिकतम माता-पिता के.
एक परिवार में जाने का अवसर प्राप्त हुआ छोटा बच्चा प्रात पिता के सूर्य को जल देने पर उनकी नक़ल करने का प्रयास कर रहा था,टूटे फूटे शब्दों में उसने गायत्री मंत्र का उच्चारण भी किया.बहुत अच्छा लगा परन्तु आज प्राय परिवार ,धर्म ,राष्ट्र के विषय में बच्चों को कुछ भी सिखाना पिछडेपन का प्रतीक बन रहा है.संभवतः हम यह भूल रहे हैं कि मानव धनार्जन करने वाली एक कलपुर्जों वाली मशीन नहीं एक जीवित कृति है,परमात्मा की.और उसको सुसंस्कार प्रदान कर सुसंस्कृत बनाने का दायित्व हमारा है.हमारी भारत भूमि जो बीर बालकों की जननी है, जहाँ भगत सिंह ,राजगुरु ,विस्मिल,आज़ाद,चाफेकर बन्धु ,……………….. जैसे अनंगिनत रत्नों ने जन्म लिया है ऐसे ही बालकों को स्मरण करते हुए मैं एक वीर बालक वीर हकीकत राय के जीवन का प्रसंग साझा कर रही हूँ
पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 मे जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। यह बालक 4-5 वर्ष की आयु मे ही इतिहास तथा संस्कृत आदि विषय का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था। 10 वर्ष की आयु मे फारसी पढ़ने के लिये मौलबी के पास उसको भेजा गया , वहॉं के मुसलमान छात्र हिन्दू बालको तथा हिन्दू देवी देवताओं को अपशब्द कहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। एक दिन मौलवी की अनुपस्तिथी मे मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को खूब मारा पीटा। बाद मे मौलवी के आने पर उन्होने हकीकत की शिकायत अपना बदला लेने के लिए मौलवी साहब से कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह बाद सुन कर मौलवी साहब का पारा चढ़ गया और हकीकत राय को शहर के काजी के सामने प्रस्तुत किया। बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और निर्णय सुनाया कि मुस्लिम क़ानून के अनुसार इस अपराध के लिए लिये सजा-ए-मौत है या फिर बालक मुसलमान बन जाये।
बालक के माता पिता व सगे सम्बन्धियों के यह समझाने के बाद भी कि बेटे की जान अधिक मूल्यवान है अतः वो मुस्लिम धर्म अपना ले किन्तु वह बालक आने निश्चय पर अडि़ग रहा और बंसत पंचमी को जल्लादों ने, एक गाली के कारण उसे फॉंसी दे दी, वह गाली जो मुस्लिम छात्रो ने खुद ही बीबी फातिमा को दिया था न कि वीर हकीकत राय ने। इस प्राकर एक नन्हा बालक अपने धर्म और देश के लिये शहीद हो गया।
मेरे कहने का तात्पर्य है कि बच्चे को निज संस्कृति,निज धर्म और निज राष्ट्र के विषय में ज्ञान प्रदान करना भी उसको एक सफल व समर्थ व्यक्ति बनाने के साथ हमारा दायित्व है.अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए संस्कार अवश्य प्रदान किये जाने चाहियें.स्वयं हमें अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा
(ये आलेख मंच से जुड़ने के प्रारम्भिक दिनों में पोस्ट किया था परन्तु पर्याप्त संशोधन के साथ पुनः प्रकाशित कर रही हूँ)
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