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आजकल विवाह समारोह का सीजन है अतः विवाह संस्कारों में सम्मिलित होने तथा मनोरंजक अद्भुत कार्यक्रम देखने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है.शेष कार्यक्रमों के साथ एक अजीब सा चलन देखा दामादों के नखरे और तथाकथित ब्लैकमेलिंग. एक परिवार जहाँ पुत्र बेटे के विवाह को लेकर बहुत उत्साह था एक अवसर पर पहुँचने पर सबके मुख लटके दिखाई दिए,पूछने पर उन्होंने तो कुछ नहीं बताया परन्तु मुझसे पूर्व उपस्थित लोगों ने बताया कि इनके एकलौते दामाद ने कुछ विवाद उत्पन्न कर दिया जिसके कारण सारे वातावरण में खुशी प्रभावित हुई है.
. विवाह संस्कार,परिवार में संतान के आगमन या अन्य कोई भी शुभ कार्य, सभी से सम्बन्धित विविध रस्मों में पुत्री दामाद का बहुत अधिक महत्त्व है.जिन परिवारों में कन्याओं की कमी है,वहां रिश्ते में बेटी को महत्व प्रदान किया जाता है.हमारी संस्कृति में पुत्री की महत्ता समझी गयी, संभवतः ऐसी व्यवस्था इसीलिए बनाई गयी.कि परिवार में बेटी का भी महत्पूर्ण स्थान बना रहे. परन्तु दुर्भाग्यवश कुछ परिस्थितियों वश लडकी के जन्म को अभिशाप माना जाने लगा.इस विषय पर पूर्व में लिख चुकी हूँ परन्तु आज जिस विषय पर कुछ विचार व्यक्त करने का मन है वह है दामाद. इस रिश्ते में बंधने का सौभाग्य तो ( कुछ विशिष्ठ व्यक्तित्वों को छोड़ कर सभी को प्राप्त होता है)
भारतीय संस्कृति में बेटी के माता-पिता का एक स्वप्न ,अरमान, दायित्व होता है,बेटी का विवाह अर्थात किसी भी सुपात्र के हाथ में उसको सौपना.कन्या दान की रस्म के साथ बेटी का पाणिग्रहण कराया जाता है और यह कार्य शास्त्रोक्त विधी में इतना पुनीत माना गया है कि पुत्री का विवाह सम्पन्न करने पर , लोकभाषा में कहा जाता है कि ‘गंगा नहा लिए’ अतः पुत्री के जन्म के साथ ही माता-पिता व बुजुर्ग परिवारजन इस महान कार्य के लिए स्वप्न देखना प्रारम्भ कर देते हैं..कन्या या पुत्री के पति को दामाद कहा जाता है.यद्यपि दामाद हिंदी शब्द न हो कर फारसी शब्द है परन्तु आम भाषा में पुत्री के पति के लिए प्रचलित शब्द है. जंवाई,जामाता , पाहुना,कँवर सां ,जिजमान या यजमान आदि अन्य शब्द भी विभिन्न अंचलों में प्रयोग किये जाते हैं..जामाता शब्द संस्कृत के जामातृ शब्द का ही स्वरूप माना जाता है. जामातृ.का अर्थ है पुत्री का पति . पुत्री का पति और उनके माता पिता जिनको समधी व समधिन कहा जाता है,बहुत ही सम्माननीय माने जाते हैं परिवार में.
दामाद को पाहुना अर्थात अतिथि माना जाता है ‘अतिथि देवो भव’ के अनुसार परिवार में उसकी उपस्थिति पर विशिष्ठ तैयारियां की जाती हैं.,और इसी परम्परा में उसका परिवार में विशेष सम्मान व सत्कार होता है और प्राय सभी शुभ रस्मों में भी उसकी उपस्थिति आवश्यक मानी जाती रही है परन्तु घर जंवाई के चलन को बहुत अच्छा नहीं माना जाता (विशेष रूप से पितृ सत्तात्मक परिवारों में)
..बहुत से अन्य परिवारों में भी विशिष्ठ अवसरों पर पर दामादों के नखरे देख कर बहुत ही दुःख हुआ जब उन्होंने शुभ अवसरों पर रंग में भंग करने की कोशिश की.पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े गये ‘अमुक समय आपने ये नहीं किया’,’ऐसा होना चाहिए था या ऐसा क्यों हुआ’ या फिर लेनदेन आदि मसलों को लेकर(कुछ लोग तो दहेज जैसी मांग करने से भी नहीं चूकते.).बहुत बार विषय उठाया जाता है, आपने ढंग से पूछा नहीं आदि आदि……………स्थिति इतनी विकट होजाती है कि सभी लोग अपने काम-धाम छोड़ कर दामाद को मनाने में लग जाते हैं..सबको कार्यक्रम में विघ्न का भय होता है फिर उनकी खुशामद आदि कर मनाया जाता है कई बार तो अवांछित मांगें भी पूर्ण की जाती हैं. एक अवसर तो यहाँ तक देखा गया कि दामाद ऩे अपनी ससुराल से सम्बन्ध समाप्त कर लिए क्योंकि अपने साले अर्थात पत्नी के भाई की शादी में उसको विशिष्ठ मूल्यवान उपहार नहीं मिले.घटिया सोच के अतिरिक्त इसको क्या कहा जा सकता है.
ये कोई आश्चर्यजनक तथ्य नहीं ऐसा प्राय होता है और स्थिति और भी दुखद लगती है जब अपनी बेटी दो पाटों के बीच फंसी दिखती है,किसका साथ दे आखिर पति से उसका घर संसार है,और माता-पिता का कोई दोष नहीं.
मेरे विचार से इस सके मूल में एक ही तथ्य निहित है,जब कोई विशेषाधिकार मिलता है,तो उसको अनिवार्य मान लिया जाता है,सदा के लिए और कुबुद्धि सम्पन्न लोग उसी आधार पर इमोशनल ब्लैकमेलिंग करते हैं.प्राय वसूली का भी धंधा होता है ऐसे लोगों के लिए.
कितना दुखद है ऐसे कृत्य और ऐसी विचारधारा.एक ओर कहा जाता है,दामाद को पुत्रवत माना जाना चाहिए. प्राय कुछ परिवारों में ऐसा दिखने भी लगा है,परन्तु क्या दामाद का यह दायित्व नहीं कि वह भी यथासंभव पुत्रवत अपने दायित्वों को समझे और विशिष्ठ अवसरों पर अपना सहयोग प्रदान करे.
अपवाद सर्वत्र हैं ऐसा नहीं कि सभी दामाद ऐसी कुत्सित बुद्धि सम्पन्न हैं,इसके सर्वथा विपरीत उदाहरण भी देखने को मिलते हैं,जहाँ दामाद पुत्रवत दायित्व का निर्वाह करते हैं,ऐसे लोग निश्चय ही सम्मान के पात्र हैं परन्तु उपरोक्त वर्णित श्रेणी के लोग भर्त्सना के पात्र हैं और उनकी जितनी निंदा की जाय कम है.ऐसे लोगों को ऐसा अवश्य सोचना चाहिए कि उनका भी कोई दामाद यदि ऐसा करे तो उनको कैसा अनुभव हो.अपना सम्मान बनाये रखना अपने हाथ में है अतः ऐसी दुखद परिस्थिति किसी के लिए उत्पन्न नहीं की जानी चाहिए.
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