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एक ऐसी बेटी की गाथा जिसने एक संभ्रांत परिवार से सम्बद्ध होने पर भी एक दलित युवक से विवाह किया और परिणाम ………..सबने उसको अकेला छोड़ दिया.आज अपने जन्म दिन पर सबकुछ होते भी अपनी माँ को याद करते हुए उसका एक पत्र अपनी माँ के नाम
‘ याद तो किया न होगा माँ मुझको मेरे जन्म दिन पर और ,मेरे जन्म से लेकर मेरे आज तक के जीवन की खट्टी-मीठी.कसैली यादों ऩे तुम्हारे विचारों के द्वार पर दस्तक तो दी होगी न.
मैं जानती हूँ मुझको मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिलेगा ,क्योंकि आपकी,पापा व अन्य सभी परिवारजनों की दृष्टि में मैंने बहुत बड़ा गुनाह किया है.मैं अपनी सफाई में तो कुछ नहीं कह रही हूँ. क्योंकि मैंने जो कुछ भी किया है,वो मेरे लिए अपरिहार्य बन गया था ,कोई चारा मेरे पास नहीं था .आप सबने मेरे लिए बहुत सारे स्वप्न संजोये थे,घर में सबका असीम प्यार मुझपर मेरे जन्म के समय से लुटाया गया था,मेरी सारी इच्छाएं आप लोगों ऩे पूर्ण की थी परन्तु उसके बाद भी ……………..
आज आपको मैं अपनी कहानी सुना रही हूँ कि ये कदम उठाने को क्यों बाध्य होना पड़ा.विक्रांत मुझसे बहुत प्रेम तो बहुत करते है ये मैं जानती थी ,परन्तु अपने -सौन्दर्य के दर्प में मैंने कभी उसको प्रेम या सम्मान नहीं दिया इसके सर्वथा विपरीत मैं कभी भी अपनी मित्रमंडली के साथ उसकी हंसी उड़ाने से नहीं चूकती थी..मैं तो इसी कल्पना में मन्त्र-मुग्ध रहती थी कि विक्रांत सुन्दर नहीं है,धनवान नहीं है और मैं ऊंचे परिवार से हूँ जिसका सर्वत्र सम्मान है,,और मेरे आगे-पीछे घूमने वाले ,मेरे नाज नखरे उठाने वाले रईस जादे राजकुमारों की कोई कमी नहीं है,मुझको.होस्टल से गायब रहकर पार्टीज एन्जॉय करना बहुत अच्छा लगता था,डांस ,महंगे होटलों में जाना,आधुनिक परिधान पहिनना मुझको अपने सौन्दर्य पर इतराने का अवसर प्रदान करते थे.परन्तु इसी चकाचौंध में मै ऐसी खो गयी कि मेरा करियर भी बिगड़ने लगा और पिछड़ गयी.एक दिन मेरी एक सहेली जिसको मैं अपनी बेस्ट फ्रेंड मानती थी ऩे मुझको ऐसे जाल में फंसा दिया ,जिसका आप अनुमान नहीं लगा सकती और बस संक्षेप में मै इतना ही कह सकती हूँ कि मैंने सबकुछ गँवा दिया,जिस सौन्दर्य पर मुझको और मेरे परिवार को नाज़ था वो कलंकित हो गया था,मैं ऐसे दोराहे पर खडी थी जहाँ अन्धकार ही अंधकार था.पापा और भैय्या के गुस्से को मैं जानती थी और आपकी मजबूरी भी.मुझको पापा के शब्द याद थे कि” पढने तो तुम जा रही हूँ पर यदि कुछ भी गलत हुआ तो घर में कदम मत रखना वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा और मैं भूल जाऊंगा कि तुम मेरी बेटी हो” और जब वो गलत हो गया था तो मैं घर कैसे लौट सकती थी.आपने मुझको पढने के लिए होस्टल भेजने में सारे विरोध को झेलते हुए मेरा साथ दिया था,मैं आपके विश्वास की रक्षा न कर सकी और मैं ये जानते हुए भी कि मेरे प्रति सबका आक्रोश ,क्रोध आपको ही झेलना पड़ेगा गलती पर गलती करती रही.
परन्तु ऐसे ही समय में विक्रांत आगे आये माँ,और उन्होंने मुझको सहारा दिया ,मुझको अपनाया,मेरे सबकुछ खोने पर समाज में कलंकित होने पर भी . अपनी छोटी सी नौकरी में मेरी पढ़ाई का खर्चा उठाया अब जब मैं आत्मनिर्भर हो गयी तो मैं उसको कैसे छोड़ देती माँ! महानता तो विक्रांत की थी ,मेरे पास तो विकल्प ही नहीं था कोई अन्य ,माँ भले ही वो अमीर नहीं थे,सुन्दर नहीं थे और छोटी जाति के थे परन्तु उनका मेरे प्रति प्रेम सच्चा था. चलो माँ छोडो आज मेरी अच्छी नौकरी है,विक्रांत भी जीवन में आगे बढ़ गये हैं,हमारा बेटा लक्ष्य भी स्कूल जाता है.मेरा जन्म दिन विक्रांत हमेशा धूमधाम से मनाते हैं ,बहुत लोग बधाई देते हैं,उपहार भी परन्तु सबकुछ होते हुए भी मैं आपको हरपल याद करती हूँ .मैं जानती हूँ आप भी मुझको याद करके भगवान के आगे हाथ बांधकर मेरी कुशलता व सुख की कामना करती होंगी.शायद कभी मेरी पसंद के व्यंजन भी बनाती हों परन्तु याद तो आप करती ही हैं.ईश्वर ऩे चाहा तो आपके कभी दर्शन भी कर सकूंगी और इस जन्म में न सही अगले जन्म में भी आप की ही बेटी बनूंगी,अच्छा माँ आपके आशीर्वाद और प्यार का अहसास करते हुए विदा लेती हूँ
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