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गत २ दिन से कपिल सिब्बल का बयान आते ही चीख पुकार मची है ,जैसे कुछ अनोखा काम हुआ हो.आखिर वो एक जिम्मेदार सेनानी हैं,सोनिया गाँधी के.उनके कर्तव्यों में अपने मंत्रालय को सम्भालने से पूर्व मैडम की चहुँ ओर से सुरक्षा करना आवश्यक है.केवल मैडम ही नहीं,सरदार जी,दिग्विजय सिंह,चिदम्बरम ,प्रणव मुखर्जी आदि उनके सहयोगी और मित्रों के पीछे सब हाथ धो कर पड़े हैं तो कैसे सहे बेचारे .हमारे यहाँ नमक खाकर स्वामिभक्ति निभाने का इतिहास रहा है और उनको तो महत्वपूर्ण मंत्रालय ही सोनिया जी की कृपा दृष्टि के कारण प्राप्त है तो उनपर होने वाले हर प्रहार को असफल करना उनका दायित्व है. अपनी स्वामिनी भक्ति प्रदर्शन का अवसर कैसे चूक सकते हैं भला.आईये देखते हैं कि ऐसे कदम उठाने पर विचार क्यों कर रहे हैं सिब्बल साहब.
चिंतित,भयभीत या आशंकाओं से त्रस्त सत्ताधीश सदा ही आत्मघाती कदम उठाते रहे है.वर्तमान में सरकार के प्रमुख सिपहसालार कपिल सिब्बल जी का सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर शिकंजा कसने की तैयारी इसी श्रृंखला की एक अन्य कड़ी है पौराणिक युग और .राजे महाराजाओं के काल से आजतक का इतिहास इस तथ्य का साक्षी है ,कि गद्दी डोलते देख कर एक असुरक्षा की भावना मन में घर कर जाती है और फिर ऐसे कदम उठाये जाते हैं..जो दमनात्मक नीतियों पर आधारित होते हैं देवराज इंद्र भी साम-दाम दंड भेद के माध्यम से अपने मार्ग के अवरोधों को हटा देते थे.राजाओं के पास तो ढेरों साधन थे अपनी बादशाहत बनाये रखने के..लोकतंत्र में दमन का प्रधान हथियार मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता पर आघात होता है.१९७५ में सोनिया जी की स्वर्गीय सासू माँ श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा लगाया गया आपातकाल ऐसा ही कार्य था जिसके पश्चात उनको चुनाव में मुहं की खानी पडी थी.
प्रश्न उत्पन्न होता है कि देश हित में मौलिक अधिकारों पर नियंत्रण लगाना गलत है ? मौलिक अधिकार हमें संविधान द्वारा प्रदत्त हैं,उनका उपभोग करना लोकतान्त्रिक व्यवस्था में स्वाभाविक सी प्रक्रिया है.परन्तु हमारे मौलिक अधिकार के कारण यदि देश की सुरक्षा,संप्रभुता खतरे में पड़ती हो ,,अश्लीलता दृष्टिगोचर होती हो,विद्वेष बढ़ता हो तो उनपर नियंत्रण होना कुछ अनुचित नहीं.क्योंकि देश हित से बढ़कर कुछ नहीं होता.परन्तु वर्तमान में जो शिकंजा कसने की चर्चा सिब्बल महोदय ऩे की है,उसके पीछे उपरोक्त उद्देश्य निहित नहीं है,अपितु इसका मूल कारण है,वर्तमान में कांग्रेसी मंत्रियों के विरुद्ध बढ़ता आक्रोश,अन्ना को रिकार्ड तोड़ जनसमर्थन और सोनिया जी तथा प्रधानमंत्री जी के विरुद्ध बढ़ता जनाक्रोश ,राहुल गाँधी की मूढ़तायें और नाटक .जन चेतनाका दमन. सर्वप्रथम स्वामी रामदेव के कार्यक्रम पर सरकार की लज्जास्पद कार्यवाही ,अन्ना हजारे के संदर्भ में साम-दाम दंड भेद सभी नीतियों को अपनाना ,सबपर झूठे सच्चे आरोप लगाकर जनता का मोह-भंग करने का प्रयास करना ………………….आदि सरकार की अपनी डोलती नैय्या को बचाने की कवायद ही है. .
सरकार में विद्यमान शीर्ष नेतागण ,अधिकारी वर्ग और साईबर क़ानून विशेषज्ञ सभी संशोधित भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून २००८ से अनभिज्ञ तो हो नहीं सकते जिसके अनुसार ऐसी साईट्स पर प्रकाशित किसी भी आपत्तिजनक सामग्री को दंडनीय श्रेणी में ६६ (ए) के अनुसार सम्मिलित किया गया है.इसी प्रकार इसी क़ानून की धारा ६७(ए) के अनुसार अश्लील सामग्री पर भी नियंत्रण है और भारी आर्थिक दंड और सजा का प्रावधान है ,इसी प्रकार अभी अप्रैल २०११ में इसी क़ानून में संशोधन के पश्चात ऐसी किसी भी अवांछित सामग्री को ३६ घंटों में हटाने की व्यवस्था है.
इंटरनेट के आगमन से विश्व का दायरा बहुत संकुचित हो गया है.साईट्स पर प्रतिबन्ध लगाने से होगा क्या ,कहाँ कहाँ तक प्रतिबन्ध लगाएगी सरकार .आज इतने साधन उपलब्ध हैं,जिनपर पूर्ण नियंत्रण लगाना किसी भी स्थिति में संभव नहीं.सरकार ऩे मोबाइल सन्देश की संख्या को सीमित किया तो क्या कुछ सुधार हो गया.पाकिस्तान ऩे प्रतिबंधित किया परन्तु प्रतिबन्ध हटा पड़ा.अन्य कुछ देशों में ये कदम वापस लेने को बाध्य रही वहां की सरकारें,रही चीन की बात यदि हमारी सरकार चीन के नक़्शे-कदम पर चलने का विचार कर रही है तो इससे बड़ी भूल और कोई नहीं.है,शायद सरकार बेहतर जानती है कि हमारी व चीन की व्यवस्था में जमीन-आसमान का अंतर है,वही अंतर जो हमारी सरकार स्वयं के हर मामले में चीन से पिछड़ने के लिए बताती है.
सरकार की जल्दबाजी उसको सदा ही मुहम्मद तुगलक की भांति पहले घोषणा और फिर रोल बैक के लिए मजबूर करती रही है,और अब फिर उसी दिशा में सरकार अग्रसर है .धार्मिक विद्वेष को भड़काने से सम्बन्धित सामग्री या अश्लील सामग्री पर नियंत्रण का भी जहाँ तक प्रश्न है जब खुले आम भड़काऊ सामग्री से भरपूर पेम्पलेट बांटे जाते हैं,फतवे जारी किये जाते हैं,समाचारपत्रों में तथा इंटरनेट के अन्य साधनों से ये क्रिया कलाप होते हैं तब सरकार की चिंता कहाँ लुप्त हो जाती है एक से एक अश्लील फिल्में ,विभिन्न चैनल्स द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले कार्यक्रम,फूहड़ धारावाहिक एवं लाईव शोज दिखाए जाते हैं,………………..उन पर तो विचार करने की सरकार के पास फुर्सत नहीं है,न ही आवश्यकता है जब अलगाववादी नेता देश तोड़ने जैसी गतिविधियों से सम्बद्ध बयान देते हैं,जहर उगलते हैं ,तो सरकार को प्रतिबंध लगाना क्यों याद नहीं आता
.यदि सरकारके कुछ सकारात्मक कार्यक्रम हो तो आम आदमी तक उनको पहुँचाया जा सकता है,आम आदमी को जोड़ने वाली इन साईट्स के माध्यम से. साथ ही जो भी अनुचित अवैध कार्यक्रम या अश्लील सामग्री इन साईट्स के माध्यम से परोसी जा रही हैं तो अपने पूर्व कानूनों को ही सक्षम बनाकर इनको रोका जा सकता है…
सरकार की चिंता का निवारण साईट्स पर नियंत्रण लगा कर या प्रतिबंध लगाकर नहीं अपितु देश के हितार्थ या आमजनता के कल्याणार्थ कार्य करने से संभव है.महंगाई दूर कर,बेरोजगारी पर नियंत्रण कर आम जनता के दुःख-दर्द को समझकर . साईट्स पर प्रतिबंध लगाने जैसी सोच एक दमनात्मक कार्यवाही है जिसका चहुँ ओर हो रहा विरोध सरकार के प्रति असंतोष ही उत्पन्न करेगा और विरोध के जिन स्वरों को सरकार प्रतिबंधित करना चाहती है वही स्वर भिन्न रूपों में प्रस्फुटित हो कर स्वयं सरकार को ले डूबेंगें सरकार के थिंक टैंक को अपनी चिंता इनपर सकारात्मक नियंत्रण लगा कर करनी चाहिए न कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचल कर .
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