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शादी कर दो सुधर जाएगा

chandravilla
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बहुत सुखद लगा ये जानकर कि सोनल को अच्छी नौकरी मिल गयी है.अपनी बेटी के आत्मनिर्भर होने पर जैसी ख़ुशी होती है,ऐसे ही मुझको सोनल के आत्मनिर्भर होने का समाचार जान कर हो रही थी.सोनल का मुझसे सम्बन्ध अधिक पुराना नहीं था ,परन्तु जुड़ाव के लिए कुछ पल भी बहुत हो सकते हैं और कई बार चिरकाल से चले आ रहे सम्बन्ध भी प्रगाढ़ नहीं हो पाते.
सोनल की शादी से आज तक का सम्पूर्ण परिदृश्य मेरे मस्तिष्क में था.हमारे एक घनिष्ठ परिचित मनमोहन जी ,जिनकी तीन सुन्दर ,सुशील और गुणवान बेटियां हैं ,पुत्र की चाह में परेशान रहते थे, मनमोहन जी.पुत्र रत्न की प्राप्ति तो उनको हो गयी.परिवार में भव्य उत्सव के साथ पुत्र का स्वागत हुआ.मात-पिता के साथ साथ बहिनों के भी लाडले विक्रांत की प्राय सभी मांगें उसके व्यक्त करने से पूर्व ही पूर्ण की जाती.अच्छे स्कूल में शिक्षा प्राप्त करते हुए कक्षा ८ तक तो उसका अध्ययन अच्छा रहा,परन्तु धीरे धीरे कक्षा में पिछड़ने लगा .ईश्वर ने मेधा तो उत्तम प्रदान की थी उसको परन्तु अधिक लाड के कारण उस मेधा का सदुपयोग कम और दुरूपयोग अधिक होने लगा.किसी प्रकार कक्षा १०.१२ और स्नातक परीक्षा का तो एक साधारण विद्यार्थी के रूप में बेडा पार हो गया.परन्तु जब करियर बनने का समय आया तो निराशा ही हाथ लगी
.पिता प्रारम्भ से ही सद्विचारों से युक्त परिश्रमी सज्जन रहे हैं,उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई के धन से बेटे को उसकी रूचि के अनुसार व्यापार आदि में प्रवृत्त करने का भी प्रयास किया..कुसंगति और लाड का मारा विक्रांत दुर्व्यसनों का आदि हो गया..बहिनें तो विवाह के पश्चात अपनी गृहस्थी में रम गईं , .माँ भी पता नहीं इस बीच अवसाद की शिकार हो गईं ,संभवतः उनको अपने पुत्र से आशाएं बहुत थी.
धृतराष्ट्र की भांति पुत्रमोह में उलझे पिताको अब भी आशा थी विक्रांत से,जबकि वह उनकी कमाई को लुटा रहा था. साम और दाम का आश्रय लेकर पुत्र को राह पर लाने के उनके सारे प्रयत्न निष्फल रहे.यहाँ तक कि उनकी बेटियां भी उनसे नाराज रहने लगी ,परन्तु आशावादी मनमोहन जी अभी भी आशा का दामन थामे पुत्र को राह पर लाने के प्रयास में जुटे रहे कर्जदार भी हो गए .विक्रांत ने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार भी करना प्रारम्भ कर दिया था ,परन्तु मनमोहन जी उसकी गलतियों पर पर्दा डालते रहे.विक्रांत कीआयु बढ़ती जा रही थी परन्तु उसको सद्बुद्धि नहीं आयी.
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इस वास्तविक घटना का अग्रिम भाग अधिक शिक्षाप्रद,और दुखद है.परिवार के प्रति समर्पित मनमोहन जी ने बड़ा ही दुखद निर्णय लिया,जिससे मुझको सर्वाधिक कष्ट हुआ और वो थी कि बेटे का विवाह कर दो तो शायद वो सुधर जाए. और इस प्रकार लड़की की तलाश शुरू हुई.स्वयं में कोई गुण न होते हुए भी विक्रांत ने इच्छा प्रकट की कि लड़की सुन्दर ,सुशिक्षित (प्रोफैशनल) और सुशील हो.मैं उसकी शादी के पक्ष में बिलकुल नहीं थी क्योंकि मेरा विचार यही रहा है कि जब तक लड़का आत्मनिर्भर न हो उसका विवाह नहीं करना चाहिए.और विक्रांत में तो उत्तरदायित्व की भावना भी नहीं थी और साथ ही शराब, सिगरेट और कुसंगति .पुत्र प्रेमी मनमोहन जी मेरी ये बात भला कैसे मान लेते.
मैं मन ही मन सोच रही थी कि विक्रांत की आकांक्षाएं पूर्ण नहीं होंगी और कम से कम किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं होगा.परन्तु मेरी सम्पूर्ण कल्पनाओं को बहुत बड़ा झटका लगा जब उसकी आकांक्षाओं के अनुरूप लड़की सोनल का रिश्ता आया और तय भी हो गया.विवाह भी सम्पन्न हो गया और माता-पिता अपने पुत्र के सुधरने की प्रतीक्षा करते रहे परन्तु सुधरने के लिए जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता थी वो विक्रांत में थी नहीं और रही सही कसर एकलौते पुत्रमोह से ग्रस्त माता-पिता के लाड ने समाप्त कर दी थी.
पत्नी सोनल समझदार तो थी परन्तु सभी प्रयासों के पश्चात भी उसको भी असफलता का सामना करना पड़ा विक्रांत को सही राह पर लाने और उत्तरदायित्व का अहसास करने में. आरामपरस्त जीवन के आदि बन चुके विक्रांत का व्यवहार सोनल के साथ भी खराब होने लगा विक्रांत के .माता-पिता को सोनल से सहानुभूति तो थी परन्तु उनके हाथ में कुछ था ही नहीं
जीवन में बहुत सी ऐसी घटनाएँ प्राय समाज में देखने को मिलती हैं . आश्चर्य इस बात पर है कि विक्रांत के विषय में सबकुछ जानते हुए भी स्वयं सोनल और उसके परिवार ने उसका विक्रांत से विवाह क्यों किया.वास्तविकता तो यह थी,कि सोनल की माँ नहीं थी,पिता अवकाशप्राप्त थे,भाई विवाहित था और आय बहुत सीमित थी.लड़की की आयु बढ़ रही थी यद्यपि लड़की जॉब में थी परन्तु विवाह करना जरूरी है अतः पिता ने और स्वयं सोनल ने विवाह की स्वीकृति दे दी.अंतत सोनल ने पति के दुर्व्यवहार से परेशान हो कर और विक्रांत का साथ छोड़ने का निश्चय कर लिया ,नौकरी भी उसको मिल गई. संभवतः उसके जीवन में कभी कभी शेष सकारात्मक परिवर्तन भी हो जाएँ.परन्तु ये घटना कुछ व्यवहारिक प्रश्न खड़े करती है
पुत्र परिवार के लिए इतना आवश्यक है? और यदि है भी तो क्या अवांछित प्रश्रय और छूट देना, (माता-पिता या परिवार द्वारा)स्वयं उस पुत्र का जीवन बर्बाद करना नहीं.
लड़की की यदि परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं तो भी क्या उसको किसी भी अयोग्य व्यक्ति के पल्ले से बांधना उचित है?
आज भी शिक्षित होने पर भी लड़की में इतना आत्मविश्वास क्यों नहीं कि वह आँख बंद कर कुएं में छलांग लगाने को तैयार हो जाती है..
परिवार में पिता के लिए लड़की का भविष्य सुरक्षित किया जाना जरूरी है, या उसको ऐसे व्यक्ति के हाथों सौंप देना .
मेरे विचार से संतान का जन्म ,पालनपोषण ,शिक्षा-दीक्षा विवाह आदि महत्वपूर्ण है और समय पर सम्पन्न होना भी आवश्यक है , परन्तु एक ओर तो पुत्र के मोह में धृतराष्ट्र बनना और दूसरी ओर पुत्री के लिए विवाह को परमावश्यक मानते हुए उसको किसी भी सर्वथा अयोग्य पात्र के हाथों में सौंप देना हमारी मान्यताओं पर प्रश्नचिंह लगाता है.

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