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गुरु कौन (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में)

chandravilla
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रेल यात्रा का कुछ अलग ही आनन्द है,भांति भांति के लोग ,विचारधारा,रहन-सहन और न जाने कितनी विविधताओं से परिचय होता है और नवीन अनुभवों की प्राप्ति होती है. सच कहूं तो ऐसा अनुभव (खट्टा-मीठा,कडुआ ,तीखा या कैसा )भी हो स्लीपर क्लास में ही हो पाता है.भले ही हमारे भाई-बन्धु वहाँ बीडी सिगरेट का धुआं छोड़ते रहें,मूंगफली के छिलके या अन्य गंदगी डिब्बे में फैलाते रहें, भीख मांगने के विभिन्न व अनोखे तरीके देखने को मिले गालियाँ सुनने को मिलें,,स्टेशन की चाय पकोड़े वालों के दर्शन हर स्टेशन पर होते रहें.इतना ही नहीं राजनीति पर चर्चा ,धर्म पर चर्चा,अधिकारी को गाली,…………………आदि .आदि . परन्तु फिर भी कभी कभी ये सब अनुभव यात्रा को बोरिंग होने से बचाते हैं.अभी ऐसा ही एक अनुभव मेरी छोटी सी यात्रा में हुआ ,जब मैं मथुरा से मुज़फ्फरनगर लौट रही थी.
२०-२५ यात्रियों का एक दल हरिद्वार के लिए जा रहा था,उनमें महिलाएं,युवतियां,प्रौढ़,युवा बच्चे सभी लोग थे जो २-३ जिलों के थे.मुझको लगता है,कोई विशेष कार्य न होने के कारण रेल यात्रा के समय कुछ भूख अधिक लगती है,.उनलोगों का नाश्ता खान -पीन भी बार बार चल रहा था. सबका खाना एक ही साथ पैक्ड था ,उन लोगों ऩे बड़े प्रेम से मुझको भी अपने साथ भोजन सम्मिलित होने का आग्रह किया .भोजन मेरे पास था, परन्तु उनके पुनः पुनः आग्रह करने पर मैंने जरा सा ले लिया.अच्छे लोग थे .बात चीत में पता चला कि वो लोग अपने एक गुरु जी के साथ हरिद्वार जा रहे थे,जहाँ उनको एक सप्ताह हरिद्वार रहना जहाँ गुरु जी ने पहले से ही कुछ पूजा -पाठ आदि की व्यवस्था की बुकिंग करायी हुई थी.वो लोग कभी भजन कीर्तन तथा कभी मन ही मन जाप करते हुए चल रहे थे ऐसा गुरु जी का आदेश था.बीच में गुरु जी की स्तुति व जयकारा भी चल रहा था..
उन महिलाओं में से एक सुशिक्षित युवती ने मुझसे पूछा ,आपने किसी को गुरु बनाया हुआ है,मेरे न कहने पर उसने मुझको बहुत सारे उपदेश दिए ,और कहा आपने अपनी इतनी सारी आयु बिना गुरु के ही निकाल दी .संभवतः अपने कुछ सुने व अनुभूत ज्ञान के आधार पर उस युवती ने मुझको बताया कि गुरु क्यों आवश्यक है.मैंने उसको अपनी ओर से समझाया और कहा कि, मेरे विचार से अंतरात्मा ही सबसे बड़ा गुरु है,और मुझको गुरु बनाने योग्य कोई दिखा नहीं .उसने मुझको अपने उन गुरु जी की महिमा बखान करते हुए उनको ही गुरु बनाने की सीख दी.खैर ऐसा मैंने कुछ नहीं किया. उन गुरु जी को बार बार बीडी पीते देख या अपनी स्तुति कराते देख क वैसे भी मेरे मन में तनिक भी श्रद्धा उत्पन्न नहीं हो सकी थी और अपनी धारणाओं के अनुसार मुझको उनकी बुद्धि पर तरस आ रहा था.
मन ही मन मैं उस युवती की बात पर विचार करती रही कि क्या सच में मेरा जीवन व्यर्थ हो रहा है,अपना विश्लेषण भी किया और गुरु की जीवन में उपस्थिति पर चिंतन भी किया.मुझको लगा कि मैं कोई अनैतिक कार्य नहीं कर रही हूँ,अपनी और से किसी को हानि नहीं पहुंचा रही हूँ ,किसी का अहित अपनी जानकारी में नहीं कर रही हूँ ,ईश्वरोपासना भी अपनी क्षमता व विश्वास के अनुसार आमजन की भांति करती हूँ. तो गुरु जीवन में क्यों आवश्यक है.बचपन में पढ़ा कबीर का दोहा याद आया “गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पायं ……………”।गुरु की महिमा पर अन्य प्रसंग आदि भी मस्तिष्क में चल रहे थे.परन्तु पता नहीं क्यों मुझको लगा आज तो हर व्यक्ति स्वयं को गुरु सिद्ध करने के लिए तत्पर है,भले ही वह असत्य भाषण करता हो,मादक द्रव्यों का सेवन करता हो,निंदा रस में आनंद लेता हो ,धन लिप्सा उसमें प्रचुरमात्रा में हो ,अपनी वासनाओं पर नियंत्रण न प्राप्त कर सका हो,ईर्ष्या द्वेष,क्रोध आदि मानवीय दुर्गुण उसमें भरपूर हों .
मार्ग दर्शक की जीवन में आवश्यकता तो सभी को होती होगी . आज जबकि सन्मार्ग का अनुसरण करने वाले बिरले ही हैं. और एक अद्भुत भ्रमित करने वाला वातावरण है (तो ये मार्ग दर्शन आवश्यक है ) परन्तु मेरे विचार से मार्गदर्शक का जीवन स्वयं में अन्यों के लिए अनुकरणीय होना चाहिए.
अपने सभी आदरनीय जन से मैं यही सुनती आई हूँ कि गुरु का जीवन में होना अनिवार्य है,.एक बार किसी ने मुझसे कहा कि जिस धार्मिक ग्रन्थ में तुम्हारी आस्था हो उसको ही गुरु मान लो.परन्तु फिर पता चला कि पुस्तकें तो ज्ञान का भण्डार हैं और केवल सिद्धांत या आदर्श प्रतिपादित करती हैं अतः जिसने उन आदर्शों को जीवन में अपनाया हो गुरुपद के योग्य वही है. आज हम जिन गुरुओं या उपदेशकों के विषय में जानती हूँ उनमें इन विशेषताओं से युक्त मुझको कोई भी महान व्यक्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होता.
चलिए ये कुछ उलझे प्रश्न मैं आप पर छोडती हूँ
(१) सच्चा गुरु कौन है?
(२) गुरु जीवन में क्यों आवश्यक हैं?
(३) समस्त मानवीय दुर्गुणों से सम्पन्न व्यक्ति गुरु के सम्मान के योग्य है?
(४)कोई भी मंत्र या दीक्षा देने वाला व्यक्ति गुरु हो सकता है?
(५) स्वयं को गुरु मानने वालों को अपने अनुयायियों से अपनी स्तुति करवानी चाहिए,?
(६) स्वयं में  अपनी समझ के अनुसार कोई  अनुचित कार्य न करने वालों को गुरु की आवश्यकता क्यों है?
(७) आज जबकि अनैतिकता ,दुराचार के इतने कांड प्राय सुनने को मिलते हैं तो ऐसे में युवतियों या महिलाओं को गुरुओं के चक्र में उलझना चाहिए.?
(मेरा उद्देश्य किसी की धार्मिक या व्यक्तिगत आस्थाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है ,ये सामान्य उलझनें या प्रश्न प्राय मस्तिष्क में आते हैं ,इसलिए आपके समक्ष अपनी जिज्ञासाएं रखी हैं.यदि किसी की भावनाओं पर ठेस पहुँचती हो तो मैं क्षमा चाहती हूँ.)
मैं तो आज तक इसी चिंतन में उलझी हूँ . मंच पर विचारवान सज्जन या बहिनें हैं मेरे इन प्रश्नों का उत्तर किसी के पास है? यदि उत्तर है तो कृपया वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में मेरी जिज्ञासाओं का समाधान करें.

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