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विजय किसकी सरकार या जनता की? (जागरण जंक्शन फोरम )(क्या आन्दोलन की ……….

chandravilla
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(नव वर्ष में आप सभी के लिए शुभकामनाएं)

 

संभवतः भविष्य में अन्ना हजारे जी का एक भव्य मंदिर बन जाए ,रालेगन सिद्धि एक तीर्थ स्थल बना दिया जाए क्योंकि अन्ना जी द्वारा जनता को भ्रष्टाचार के विरोध में एक जुट करने का उनका अभियान निस्संदेह अभूतपूर्व था .स्वामी रामदेव जी द्वारा जन जागृति के लिए तथा हमारे देश की अकूत धनसंपदा को स्विस व अन्य विदेशी बैंकों से वापस लाकर देश को समृद्ध व भारत माता को उसका गौरव वापस लौटाने के लिए प्रारम्भ किया गया अभियान तो दुर्भाग्य से मीडिया व सरकार के दमन चक्र ने ठप्प करा दिया था परन्तु उसके पश्चात अन्ना जी द्वारा प्रारम्भ किये गये भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने हम देशवासियों के ह्रदय में आशा की किरण का संचार किया और हम सब एक स्वच्छ,स्वस्थ भारत की कल्पना में अन्ना हजारे के साथ जुट गये.यहाँ तक की सम्पूर्ण देश अन्नामय हो गया.स्वाधीनता के पश्चात देशवासियों को इस प्रकार एक साथ जुड़ते देख सभी देशभक्त उल्लसित थे जागरण मंच पर हम सभी ब्लोगर बंधुओं ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया तर्क-वितर्क भी हुए.


अंततः १६ अगस्त को प्रारम्भ हुए .अन्ना के १२ दिन के अनशन के टूटने का समय आया जब संसद में इस पर चर्चा हुई.छोटे बच्चों से लेकर वृद्ध, तथाकथित आधुनिक युवक -युवतियां ,शिक्षित-अशिक्षित धनी-निर्धन अर्थात सभी वर्गों से सम्बद्ध जन की दृष्टि संसद से आने वाले समाचारों पर थी और सबको आशा थी कि अन्ना की कर्मठता और दृढ संकल्प तथा इस अभूतपूर्व जनसमर्थन के समक्ष सरकार को झुकना पड़ेगा और अन्ना व टीम द्वारा प्रस्तावित (जो आमजनता द्वारा भी समर्थित था)जन लोकपाल अस्तित्व में आ जाएगा.आर-पार की लडाई मानकर चल रहे थे हम परन्तु ये क्या! .सरकार और अन्य दलों का इस जन लोकपाल के विरोध में देख कर जनता स्तब्ध रह गयी.

निष्पक्ष दृष्टि से विचार करते हुए देखा तो पता चला कि ये लोकपाल का प्रस्ताव तो संसद में प्रथम बार प्रस्तुत नहीं हुआ था .१९६८ से लंबित ये विधेयक लगभग १० बार प्रस्तुत हो चुका है.परन्तु संसद ऩे इसको आगे नहीं बढ़ने दिया.आखिर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी स्वयं क्यों मारी जाती.मोरारजी देसाई के समय लोकसभा से पारित हुआ ये बिल,राज्य सभा में आगे नहीं बढ़ पाया.इसके पश्चात भी १९७१,७७,८५,८९,९८,२००१,२००५,२००८ में प्रस्तुत होने पर पर भी अटका ही रहा.इस बार भी अप्रैल में अन्ना हजारे के द्वारा प्रारम्भ आन्दोलन के कारण सरकार ऩे अन्ना द्वारा प्रस्तावित विधेयक को परिवर्तित कर संसद के समक्ष प्रस्तुत किया परन्तु (सदस्यों व सरकार की पूर्व अनुमानित नियत के कारण) संसद की स्थायी समिति के पास भेज कर विषय को टालने का भरपूर प्रयास किया गया.

२७ अगस्त २०११ को चर्चा की स्थिति में जो परिदृश्य था उसके अनुसार , भारतीय जनता अन्ना हजारे व टीम को अभूतपूर्व जनसमर्थन प्रदान करने के पश्चात भी किसी भी उपलब्धि से वंछित रह गई और हमारी स्थिति वही रही नौ दिन चले अढाई कोस. परन्तु विस्मयकारी परिणाम !…… जब २७ अगस्त के पश्चात जब सम्पूर्ण देश में एक महोत्सव का वातावरण था मीडिया के माध्यम से जन उत्साह व उल्लास को देख कर तोऐसा लग रहा था मानों भ्रष्टाचार का यमराज अर्थात सशक्त जन लोकपाल अस्तित्व में आ गया या उसके लिए सहमती बन गयी.परन्तु क्या हम मूर्ख नहीं बनाये गए और फिर जन लोकपाल बिल की मूल स्थिति और प्रावधानों को स्वीकार न करने पर जश्न क्यों ? क्या केवल चर्चा कराना ही हमारा ध्येय था ? तो फिर हम भ्रम में क्यों थे.


२७ अगस्त को जन लोकपाल बिल पर हुई चर्चा में कोई स्पष्ट सहमति दलों ऩे नहीं दी जन लोकपाल बिल पर सर्वाधिक समर्थन में खडी .भारतीय जनता पार्टी ऩे प्रधानमंत्री को दायरे में लेने पर सशर्त शब्द जोड़ दिया,न्यायधीशों को लोकपाल के दायरे में लेने पर असहमति प्रकट की.,सांसदों को भी जनलोकपाल के अंतर्गत रखने पर नकारात्मक ही रुख रखा परन्तु सिटी जन चार्टर ,दंड देने का हक़,नीचे के पायदान के कर्मियों ,लोकायुक्त,तथा सी बी आई पर स्पष्ट सहमति दी.

राजद सुप्रीमो लालू तो ये मानने को तैयार नहीं थे कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है,उनके अनुसार जितना भ्रष्टाचार बताया जा रहा है उतना नहीं है(वो तो सारा चारा हज़म कर चुके हैं),बसपा ऩे कोई भी शर्त स्वीकार नहीं की,माकपा,द्रुमुक के उत्तर टालने वाले,सपा का अस्पष्ट रुख ,शरद यादव द्वारा बेतुकी दरार डालने वाली शर्त कि पिछड़े वर्ग,अनुसूचित जातियों की भागीदारी हो (कोई उनसे पूछे भ्रष्टाचार से प्रभावित सभी वर्ग हैं,इसमें जाति धर्म कहाँ से बीच में आ गया.)

कांग्रेस ऩे प्रधानमंत्री को सम्मिलित करने की` शर्त को विचाराधीन रखा,सिटीजन चार्टर को सशर्त ,दंड देने का हक़ विचारार्थ ,राज्यों में लोकायुक्त विचारार्थ,निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मी सशर्त,सी बी आई विचारार्थ,न्यायाधीश नहीं,सांसद नहीं. अर्थात एक भी शर्त पर कांग्रेस ने स्पष्ट सहमति नहीं दी.
(उपरोक्त आंकडें या विवरण समाचारपत्र तथा समाचार चैनल्स की सूचनाओं पर आधारित)

विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ऩे सबसे आग्रह अवश्य किया था ,कि जनलोकपाल बिल को मज़बूत रूप में पारित किया जाय जिससे भावी पीढियां भ्रष्टाचार मुक्त रहें.और अधिकांश प्रावधानों को बिना शर्त स्वीकार भी किया परन्तु जब इस बिल पर सत्ताधारी दल या उनके सहयोगियों ऩे स्पष्ट सहमति नहीं दी तो एक सशक्त लोकपाल बिल कैसे पारित हो सकता था .आखिर पारित तो सांसदों को ही करना था,,और उनकी स्पष्ट स्वीकृती या सहमति प्रमुख मुद्दों पर नहीं होने से आन्दोलन या अनशन की सफलता कैसे मानी जासकती थी.परन्तु जश्न तो मनाया गया.

जनाक्रोश का उफान तो शांत हो गया था और ये भी निश्चित है कि पुनः पुनः जनता में जोश जगाना कोई सरल काम नहीं.अतः अन्ना जी का मीडिया द्वारा बहु प्रचारित मुम्बई अनशन सफल होना संभव ही नहीं था ऐसा लग रहा था मानों कोई औपचारिकता पूर्ण की जा रही है,.अन्ना जी का स्वास्थ्य पहले से ही साथ नहीं दे रहा था,.रुग्ण शरीर के साथ आन्दोलन का कोलाहल और सब शांत.हो जाना कुछ विचित्र सी स्थिति है. .अतः ऐसा लग रहा है कि सरकार का उद्देश्य तो पूर्ण हो ही गया क्योंकि अब जनता के लिए काले धन का मुद्दा गौण हो गया है और सरकार द्वारा प्रस्तुत सरकार की कठपुतली लोकपाल (जो सी बी आई की भांति) एक औपचारिकता है से कोई लाभ नहीं होने वाला.सरकार ने भी निश्चिंतता की श्वास ले ली है .अन्ना की भी लोकप्रियता और बढ़ गयी तो घाटे में कौन रहा बस जनता जनार्दन जिसको कुछ नहीं मिला.सदा बनी है और बनती ही रहेगा जनता.

क्या यही नियति थी जनता के एकसूत्र में बंधने की ? कभी कभी तो लगता है कि सशक्त लोकपाल लाने की कवायद में जनता सरकार की कुटिल नियत को ही भुला रही है(जो आज तक की स्थिति के अनुसार आना संभव ही नहीं है) और जश्न मनाने का अवसर सरकार के लिए बन गया है न कि जनता के लिए.


(ईश्वर करे आक्रोश के कारण ये सारे अनुमान मिथ्या सिद्ध हों देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो और जनता की विजय हो)

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