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जागरण द्वारा प्रदत्त विषय यौन उत्पीडन के लिए दोषी कौन ……..इस बार कोई पक्ष-विपक्ष वाला विषय न होकर एक ही समस्या को प्रस्तुत करता है.यौन उत्पीडन एक ऐसी विभीषिका है जिसकी पीड़ा को शायद ही कोई समझ पाता हो.परिजन,पति ,परिचित यहाँ तक कि माता-पिता भी प्राय पीड़ित को ही दोषी मान लेते हैं. एक अबोध बालिका जो शायद इस जघन्य,क्रूर कर्म बलात्कार के शब्दार्थ को समझती भी नहीं,कोई वहशी,विकृत मानसिकता वाला पापी,कदाचारी उसका जीवन नष्ट कर दे तो क्या होगा उसका भविष्य?,बलात्कार ऐसा निकृष्ट दुष्कर्म,है, जो हैवानियत की पराकाष्ठा है. एक युवती जिसके माता-पिता उसके विवाह के स्वप्न संजो रहे हों,ऑफिस से लौटती कोई लडकी ,विवाहित महिला जो ट्रेन में यात्रा कर रही हो खेतों में काम करती ,पहाड़ों पर लकड़ी या घास काटने जाती महिला ,प्रौढ़ा जो स्वयं को सुरक्षित समझती हो परन्तु इन नराधमों के चंगुल में फंसना दुष्टों को हंसने और स्वयं नारी के जीवन को अभिशाप बनाकर घुट घुट कर जीने को विवश कर देता है ? क्या हम आदिम युग में जी रहे हैं?
प्राय पढ़ते हैं कि ५ वर्ष से भी कम की बच्ची को किसी वहशी ऩे अपनी हवस का शिकार बना लिया.कितना लज्जास्पद और घृणित होता है,यह सुनना, पढना या पता चलना कि रक्षक ही भक्षक बन बैठे. शराब के नशे में पिता या पितृवत चाचा,भाई,मामा ,श्वसुर,ज्येष्ठ अपने कलेजे के टुकड़े को ,,अपनी गोदी में खिलाकर अपनी ही बच्ची ,छोटी बहिन,भतीजी,वधु का जीवन बर्बाद करने वाले बन गये.
उनका कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि लाज शर्म तो ऐसे लोगों के शब्दकोश का शब्द है ही नहीं.मारी जाती है पीडिता,जो स्वयं तो शर्मिन्दगी ,समाज की प्रताड़ना झेलती है,समाज में उसका जीना दूभर हो जाता है,यहाँ तक कि उसका पति भी उसका साथ छोड़ देता है उसके ,पालक भी उसको दोषी मानकर उससे किनारा कर लेते हैं परिणामस्वरूप वो प्राय आत्महत्या जैसा कदम उठाकर अपनी इहलीला ही समाप्त कर लेती है..और वो दरिन्दे खिलखिलाते हैं उनके होंसलें और भी बुलंद होते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में पीडिता व उसके परिजन रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराते .रिपोर्ट दर्ज करने पर सर्वप्रथम तो कुछ होने वाला नहीं,साधन सम्पन्न लोगों के विरुद्ध साक्ष्य आदि या तो मिलते नहीं और हो भी तो नष्ट कर दिए जाते हैं. और यदि कोई सुनवाई वर्षों बाद हुई भी तो तब तक पीडिता का सबकुछ उजड चुका होता है,उसके अपने कहे जाने वालों और वह स्वयं समाज में उपेक्षित और तिरस्कृत हो चुकी होती है.ये एक सर्वमान्य तथ्य है कि खोयी इज्जत वापस नहीं आती.,और फिर अदालतों में पूछे जाने वाले अंतरतम को भी चीर कर रख देने वाले प्रश्न और लंबी कार्यवाही !? ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर भरी अदालत के बीच देने की कल्पना कर ही मुख पर ताला लगा लिया जाता है.जब उसके परिजन ही उसका कोई दोष न होने पर उसे उपेक्षित कर देते हैं तो किससे आशा करे अभागी पीडिता.
कुंठित और विकृत मानसिकता तो इस सामाजिक कलंक के मूल में प्रधान होती ही है,अन्यथा अबोध बच्चियां,प्रौढ़ महिलाएं ,मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाएं,खेतों ,खलिहानों और अन्य कार्यस्थलों पर काम करती हमारी बहिनें इस जघन्य जुर्म का शिकार क्यों बनती?
यदि बलात्कार के कारकों पर हम विचार करें तो अशोभनीय वस्त्र विन्यास इस अपराध में वृद्धि करने वाला एक कारक अवश्य है,परन्तु केवल वस्त्र विन्यास को ही उत्तरदायी नहीं माना जा सकता. शराब और नशे से सम्बन्धित पदार्थ का अत्यधिक सेवन करने वाले लोग इस संदर्भ में संभवतः सर्वाधिक दोषी माने जाते हैं..क्योंकि ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपना विवेक खो बैठते हैं और उनको बच्ची ,प्रौढा या फिर युवती में अंतर नहीं दिखता.
कुंठित मानसिकता का जहाँ तक प्रश्न है इस मानसिकता से ग्रस्त होने के पीछे भी कुछ कारण हो सकते हैं जिनमें ,………..
व्यक्ति के घर का वातावरण ,उसके संस्कार,मित्रमंडली ,दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली , निठल्ला होना आदि अन्य कारक भी व्यक्ति की मानसिकता को कुंठित करते हैं.अत्यधिक पैतृक सम्पत्ति आदि होने पर प्राय धनिक परिवारों के लड़के ऐसे ही अपराधों में प्रवृत्त हो जाते हैं.ऐसी मानसिकता से सम्पन्न लोगों पर अश्लील सिनेमा तथा अन्य भद्दे कार्यक्रम सदा नकारात्मक प्रभाव ही डालते हैं.
इतना मैं अवश्य कहना चाहूंगी कि नारी विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति है,जो पुत्री,,बहिन, प्रेमिका ,पत्नी ,माँ तथा अपने विविध रचनात्मक रूपों में समाज को नवीन दिशा प्रदान करती है,सृजन करती है,परन्तु आज पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण (जिसमें चकाचौंध से प्रभावित होकर उस संस्कृति के दोषों को अपनाया जा रहा है) दूषित होते परिवेश के कारण नारी भी अपनी गरिमा खो रही है.आज तथाकथित आधुनिका बनने के प्रयासों में उसके अश्लील वस्त्र विन्यास,सिगरेट, शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का आदि होना उसको पतन के गर्त में धकेल रहा है(महानगरों में ये स्थिति असाध्य रोग का रूप धारण करती जा रही है).हमारी ये तथाकथित आधुनिकाएँ इन दुष्प्रभावों से अभी आँखें मूंदे भले ही अपने हितैषियों को पिछडा मानती हों परन्तु कभी न कभी उनको पश्चाताप अवश्य होगा परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और ना जाने हमारी कितनी पीढ़ियों को ले डूबेंगी.क्योंकि नारी रचियता है.जैसी रचना होगी वही समाज का स्वरूप होगा.(इस समस्त विश्लेषण का अर्थ ये कदापि नहीं कि नारी मुक्ति आंदोलन के समर्थकों की भांति मैं भद्दे वस्त्रविन्यास की समर्थक हूँ .शालीन और सुसंस्कृत व्यक्तित्व नारी के सम्मान में सदा चार चाँद लगाता है.)
आज हमारा दायित्व है कि हम अपनी बहिनों,बेटियों को उत्तम संस्कार दें ,उनके सद्गुणों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर उनके रचनात्मक गुणों के विकास में सहयोगी बनें .बाल्यावस्था से ही उनको उनके हित -अनहित के विषय में बताया जाए.इसी प्रकार लड़कों का भी संस्कारित वातावरण में पालन-पोषण उनको कुंठित होने से बचाया जा सकता है,साथ ही उनकी रूचि के अनुरूप उनके रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहन देते हुए उनको व्यस्त रखने का प्रयास किया जाय और अवांछित संरक्षण न दिया जाय.
अंत में पुनः एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर भी ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी ,,आज ऐसे केसेस भी सामने आ रहे हैं,जिनमें प्राय महिलाएं भी किसी भी कारण से अपने अधिकारी ,सहकर्मी या अन्य किसी भी व्यक्ति से बदला लेने के लिए भी बलात्कार का आरोप उनपर लगाती हैं.ऐसी परिस्थिति में सम्बन्धित महिला को भी दण्डित किया जाना चाहिए(ये कोई मनगढंत या कपोलकल्पित घटना नहीं वास्त्विकता है. .
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