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नींव कमजोर तो देश कैसे सशक्त होगा?(भूखे नौनिहाल और निष्क्रिय सरकार)जागरण जंक्शन फोरम

chandravilla
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देश के 42 फीसदी नौनिहालों के कुपोषण से शिकार होने से चिंतित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि यह समस्या राष्ट्रीय शर्म की बात है। उन्होंने कहा कि छह वर्ष तक की आयु के करीब 16 करोड़ बच्चे जो देश का भविष्य हैं, उनमें कुपोषण का यह स्तर कतई स्वीकार्य नहीं है। स्वीकार्य है किसको? और यदि सरकार को स्वीकार्य नहीं तो ये स्थिति इतनी विकट क्यों हुई कि कि गत कुछ वर्षों में सामने आई कुछ रिपोर्टों में भारत में भुखमरी से संबंधित चौकाने वाले आंकड़ें सामने आए हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) और स्वास्थ्य मंत्रालय, 2010 में भारत द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार कुछ आंकड़ें सहारा के आस पास के अफ़्रीकी देशों में पाए जाने वाले भुखमरी के आंकड़ों से भी कहीं अधिक विपन्न स्थिति को दर्शाते हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में भुखमरी से पीड़ित लगभग 50 प्रतिशत लोग भारत में निवास करते हैं।hunger-facts

इसी तरह भारत के लगभग 35 करोड़ लोग न्यूनतम ऊर्जा आवश्यकताओं के हिसाब से 80 प्रतिशत से भी कम भोजन का उपभोग कर पाते हैं। भारत में बाल मृत्यु के लगभग 50 प्रतिशत मामलों का कारण कुपोषण है। इस रिपोर्ट में 2010 में भारत भुखमरी से संबंधित वैश्विक सूचकांक में 119 देशों में 94 स्थान पर है। इन आंकड़ों को भारत को बदनाम करने का षड्यंत्र कहकर हम अपना पल्ला नहीं झाड सकते ,क्योंकि सरकार भी इस गम्भीरतम समस्या को स्वीकार करने पर बाध्य है.हमारे नीति नियंता ये स्वीकार कर चुके हैं कि हम दुनिया के हर तीसरे भूखे बच्चे के अभिभावक हैं. लेकिन क्या प्रधानमंत्री द्वारा इस दुखद विषय को राष्ट्रीय शर्म का विषय कहने और नीति निर्माण की घोषणा से उनके कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है?

स्वस्थ बच्चे राष्ट्र का भविष्य है, राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए,स्वस्थ बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं,देश के कर्णधार हैं,………………,आदि आदि ये सुन्दर वाक्य हम सदा ही पढते ,सुनते आयें हैं.हमारी कांग्रेस सरकार जिसके हाथ में देश की बागडोर लगभग छः दशक तक रही है,न केवल केन्द्र में अपितु राज्यों में प्राय कांग्रेस का एकछत्र शासन रहा है.कांग्रेस सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जिनको चाचा नेहरु कहा जाताहै,और कहा जाता है,कि उनको बच्चों से अथाह प्रेम था,इतना ही नहीं उनका जन्मदिवस १४ नवम्बर बाल दिवस के रूप में सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है.ऐसे में यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को इतने बड़े स्तर पर कुपोषित होना दुखद और लज्जाजनक तो है ही ,चिंताजनक है,हर उस देशवासी के लिए जिसको देश के प्रति कुछ प्रेम है या सहृदयता शेष है.सरकार नीतियां बनाती तो है परन्तु वो सभी नीतियां या तो कागजी हैं या फिर भ्रष्टाचारियों की भेंट चढ जाती हैं.
.सरकार की नीतियां इस संदर्भ में कितनी सफल रही हैं,इसका प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि देश की नाव को खेने वाले वाले प्रधानमंत्री ही इसको स्वीकार कर रहे हैं.सरकार की कुप्रबंध, भुखमरी एवं कुपोषण के लिए चिंता कितनी है इसका अनुमान तो सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश “We cannot have two Indias. You want the world to believe we are the strongest emerging economy, but millions of poor and hungry people are a stark contrast,” the Supreme Court said on Wednesday pointing to a huge gap between poverty eradication measures and spread of the problem.ये समाचार टाईम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित हुआ था.
ऐसा नहीं कि हमारी भूमि उपजाऊ नहीं है,अन्न उत्पन्न नहीं होता ,हाँ हमारे देश की कृषि मानसून की स्थिति व अन्य कारणों से अनिश्चित रहती है,अन्न की उपज भरपूर न होने पर हमें अतिरिक्त धन व्यय कर विदेशों से अन्न मांगने को बाध्य होना पड़ता है हमें.परन्तु प्रकृति की कृपा दृष्टि व आधुनिकतम साधनों व उपकरणों से रिकार्ड उत्पादन होने के बाद यदि हम उसको बर्बाद करते हों और हमारे देश में भुखमरी के कारण निरीह देशवासियों को मौत का आलिंगन करना पड़ता हो इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है.02-Lunch-Thalis-Bhojan-Indian-150x150
” अन्न देवता है ” अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए,ऐसा हमारी संस्कृति का सन्देश है.बचपन में भोजन ग्रहण करते समय यदि कोई भी खाद्य पदार्थ खाने में नापसंदगी जाहिर की जाती थी ,तो यही कहा जाता था कि भोजन में जो मिले चुपचाप खा लेना चाहिए,झूठा नहीं छोड़ना चाहिए,दूसरे शब्दों में अन्न का एक दाना भी व्यर्थ नहीं करना चाहिए.और व्यवहारिक रूप से यदि देखा जाय तो भी जिस अन्न को खाकर हमारे शरीर में प्राणों का संचार होता है,अर्थात जो हमारे जीवन का आधार है,उसका सम्मान करना हमारा धर्म है.यही कारण है कि हमारे यहाँ भोजन सामने आने पर हाथ जोड़ कर उसका सम्मान किया जाता है,और कृतज्ञता व्यक्त की जाती है.
आश्चर्य होता है,यह समाचार जान कर कि विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश में अन्न की भण्डारण व्यवस्था न होने के कारण अन्न खुले आकाश के नीचे पड़ा पड़ा रहकर वर्षा में भीग कर सड़ जाता है, अन्न का१०%से भी बड़ा भाग चूहे,अन्य खरपतवार आदि नष्ट कर देते हैंऔर शेष बहुत बड़ा भाग हम अपनी लापरवाही से बर्बाद कर देते हैं,,और अपनी आवश्यकता पूर्ण न होने पर फिर हम विदेशों से आयात करते हैं,और अपनी अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाते हैं हमारा देश जहाँ हम एक और तो शीघ्र ही विकसित होने का दावा करते हैं,और दूसरी और भूखे पेट की आग लाखों लोगों को तड़फ तड़फ कर मरने को विवश करती है.. wasteoffood2_630_271x181
हमारे देश में अपना खून पसीना बहा कर खेती में फसल के रूप में स्वर्ण उत्पन्न करने कृषक (आम) प्राय समृद्ध नहीं हो पाता ,एक ओर तो ऋण के बोझ तले दबा रहता है,ऊपर से प्राकृतिक प्रकोप,(कभी सूखा,कभी अतिवृष्टि तो कभी ओलावृष्टि आदि अन्य समस्याएं ) और यदि कभी प्रकृति की कृपादृष्टि बनी रही तो भी वह खिलखिला नहीं पाता.कारण उसके परिश्रम का फल अर्थात उपज संग्रहित करने के जो पारम्परिक साधन उसके पास हैं वो सामान्य परिस्थितियों के लिए भले ही ठीक हों, परन्तु प्राय उपरोक्त कारणों से वो लाभान्वित नहीं हो पाता. सरकारी योजनायें जो कृषकों के लाभ के लिए बनी भी हैं,कृषक के अशिक्षित होने या उन योजनाओं का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण आम कृषक को उनका लाभ नहीं मिल पाता और रहा सहा काम भ्रष्टाचार निगल जाता है,बीजों का वितरण,ऋण की सुविधाएँ आदि पर एजेंट्स का कब्जा है,बहुत ही कम लाभ वास्तविक लोगों तक पहुँच पाता है,और फटेहाली किसान का पीछा नहीं छोडती..
हमारी दोषपूर्ण नीतियों के परिणामस्वरूप एक ओर तो भुखमरी में विश्व में हमारे देश का स्थान नीचे की ओर से देखा जा सकता है जो उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार विश्व में २०-२२ देश ही हमारे से निम्न स्तर पर हैं.कृषि क्षेत्र में पर्याप्त धन व्यय करने के पश्चात हमारी फसल उत्पादन तो बढ़ा है,और गत कुछ वर्षों में उत्पादन आशातीत रहा है परन्तु अभी गत वर्ष की ही बात है जब मीडिया के माध्यम से टनों अन्न वर्षा में भीग कर सड़ता हुआ दिखाया गया,उस अन्न की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि उसका कुछ भाग तो पशुओं के उपभोग के योग्य भी नहीं था.
ये आरोप किसी विपक्षी दल का नहीं स्वयं सरकार के प्रमुख सिपहसालार शरद पंवार की स्वीकारोक्ति थी ,जिन्होंने संसद में स्वीकार किया कि ११७०० तन अन्न जिसकी कीमत ६.८६ करोड़ से अधिक थी वर्षा में भीग कर बर्बाद हो गया.इस पर भी सरकार तो सारे मामले को रफा-दफा ही करना चाहती थी परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ऩे ही सरकार को आड़े हाथों लेते हुए फटकार लगाई कि यदि गेहूं को रखने के साधन आपके पास नहीं तो गरीबों में बाँट दो.जितना अन्न हमारे यहाँ व्यर्थ हो जाता है उतनी कनाडा जैसे देश की सम्पूर्ण उपज है.
उपरोक्त स्थिति गत वर्षों की थी जब सरकार कीमतों पर नियंत्रण करने में सफल नहीं हो पा रही थी और महंगाई सुरसा के मुख की भांति बढती ही जा रही थी.पर्याप्त सीमा तक तो हम स्वयं उत्तरदायी हैं,अपनी राष्ट्रीय समस्याओं के लिए,लेकिन हमारा दुर्भाग्य कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देश दिए जाने पर भी कि भण्डारण की समुचित व्यवस्था के लिए स्थाई वेयर हाऊस बनाये जाएँ और अस्थायी व्यवस्था करते हुए ऐसे केंद्र बनाये जाय जो वर्षा आदि से बचाव कर सकें. परन्तु ऐसा नहीं हुआ और हमारा बहुमूल्य अन्न ऐसे ही बर्बाद होता तहेगा..
केंद्रीय सरकार गरीबों का पेट भरने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की आवश्यकता तो समझ रही है, लेकिन सड़ते हुए अन्न को बचाने के लिए अब तक कोई ठोस उपाय नहीं सोचा गया है। अब यदि अन्न भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं की जा सकी तो खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीबों को यही सड़ा-गला अन्न मिलेगा। दुर्भाग्य है कि जिन हाथों में इस अनाज की वितरण व्यवस्था है उनको या उनके परिजनों को कभी भूखे नहीं सोना पडता उनके यहाँ ,या उनके द्वारा आयोजित पार्टीज में भोजन की विविधताओं पर धन पानी की तरह बहाया जाता है.उनके किसी अपने को भूख से बिलखना नहीं पड़ता. जिन्होने सपने में भी भूख नहीं देखी उन लोगों को दो जून की रोटी को तड़पते लोगों की व्यथा कभी समझ नहीं आएगी।
न जाने क्यों सरकार के नीति नियंता ये नहीं समझ पाते कि कि भारत में कुपोषण के कारण विकास की दर में 2-3 प्रतिशत की कमी आ जाती है। शायद सरकार को इस मद में पर्याप्त धन व्यय करने की आवश्यकता इसलिए भी अनुभव नहीं होती कि बच्चों से उनको वोट तो लेना नहीं है,इसलिए उनके प्रति उदार होने की आवश्यकता नहीं है.सरकार ये भूल जाती है कि कमजोर नींव पर खड़ा भारत सशक्त कभी नहीं बन सकता,

    इन परिस्थितियों से जूझने के लिए जिस कर्मठता ,कर्तव्यपरायणता ,देश के प्रति निष्ठां और सहृदयता की आवश्यकता है,वो आज कहीं भी दृष्टव्य नहीं है . कर्तव्यपरायणता अपने भूतपूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी सदृश जिन्होंने देश को विकट परिस्थितियों में “जय जवान जय किसान ” का नारा देते हुए एक समय स्वयं अन्न छोड़ने का संकल्प लेकर देशवासियों को प्रेरित किया था.,.सरकार को अपनी बनाई नीतियों पर पुनर्विचार करने के साथ उनके क्रियान्वयन को भी सुचारू और भ्रष्टाचार रहित बनाना होगा, देश में जनसंख्या के नियंत्रण के लिए निष्पक्ष नीति बनानी होगी और उसको लागू करना होगा वोट बैंक के दृष्टिकोण से नहीं देश के हित के दृष्टिकोण से.नहीं तो ये आंकडें हमारे विकसित राष्ट्र की ओर बढते तथाकथित क़दमों को यूँ ही अंगूठा दिखाते रहेगें.

(समस्त आंकडें व चित्र नेट से साभार)

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