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माँ सौतेली होती है?

chandravilla
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अभागा ही था वंश , ,जब संसार में आने पर उसके आँखें खोलते ही उसकी माँ ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं.’माँ ‘ शब्द का उच्चरण करते ही जिस अपनत्व ,पवित्रता का अहसास माँ और संतान दोनों को होता है,उससे दोनों ही वंछित रह गए थे.वंश पहली संतान ,उसके जन्म की प्रतीक्षा में सभी व्यग्र थे परिवार में.सबने स्वप्न संजोय थे, रंजन और रागिनी तो संतान के जन्म की सूचना सुनिश्चित होते ही ,संतान की शिक्षा-दीक्षा ,नाम , खिलौने और न जाने क्या क्या …हर पल कल्पना संसार में ही खोये रहते थे .
कल्पना की नीवं पर यथार्थ का महल सबका बन सके ,ऐसे भाग्य सभी का नहीं होता ,और ऐसा ही हुआ रंजन और रागिनी के साथ.प्रेम की नींव पर खड़ा उनका संसार उनके पुत्र के जन्म लेते ही तिनका- तिनका बन कर बिखर गया .एक नवीन खुशी जो उनके प्रेम संसार में चार चाँद लगा देती,की आहट सुने बिना ही रागिनी, अपनी धरोहर,अपने पुत्र को पति रंजन और अपनी बहिन कामिनी के पास छोड़ कर संसार से विदा हो गई.रंजन तो एकदम गुमसुम हो गया था ,कुछ भी नहीं सूझ रहा था.हर समय रागिनी के साथ देखे स्वप्न उसको क्लांत बनाये रखते थे.
‘ वंश’ का यही नाम सोचा था रंजन और रागिनी ने (पुत्र जन्म होने पर ) का तो माँ से परिचय भी नहीं हुआ.परिवार में शोक की लहर छा गई.रंजन के माता-पिता नहीं थे ,एकलौती विवाहित बहिन भी पारिवारिक समस्याओं के कारण उनके पास नहीं आ सकती थी.रंजन जिस कम्पनी में कार्यरत था ,उसके पास समय का बहुत अभाव था.अवकाश भी कब तक लिया जा सकता था.वंश के जन्म के समय आयी हुई उसकी मौसी कामिनी भी अधिक समय नहीं रुक सकती थी.किसी आया आदि के भरोसे नवजात शिशु को कैसे छोड़ा जाता.विकट समस्या थी.परिचितों ,मित्रों ने उसको दूसरे विवाह का सुझाव भी दिया परन्तु अपनी प्रिया रागिनी के अतिरिक्त अन्य किसी की कल्पना !
नवजात शिशु को तो हर पल देखभाल की आवश्यकता थी. एक मात्र सहारा कामिनी ही दिख रही थी .कामिनी सुशिक्षित थी ,अपने भविष्य के प्रति सजग कामिनी जॉब को लेकर बहुत उत्साहित थी. उसके सहपाठी ,सविनय ने उसके समक्ष विवाह प्रस्ताव भी रखा था. अभी उत्तर तो नहीं दे सकी थी कामिनी ,परन्तु मन ही मन वह बहुत प्रसन्न थी.सविनय का साथ पाकर कोई भी युवती स्वयं को धन्य मानती और यहाँ तो स्वयं प्रस्ताव ही सविनय की ओर से आया था..होनी को कौन टाल सका है.सबके समझाने पर रंजन और कामिनी को समझौता करना पड़ा वंश की खातिर और उनको विवाह सूत्र में बाँध दिया गया.
कठिन परीक्षा थी कामिनी की .अपनी बहिन की धरोहर जो स्वयं उसकी बहिन का ही प्रतिरूप था, के लिए अपने स्वप्न संसार को अपने ही हाथों से उजाडकर बहिन के पति को अपने पति रूप में स्वीकार किया था उसने.
पल भर में ही जीवनचर्या ही बदल गयी थी कामिनी की.
,वंश के प्रति उत्तरदायित्व के कारण उसके लिए जॉब संभव नहीं था ,दिन और रात में नवजात बच्चे के साथ व्यस्तता .रंजन को अपने सभी कार्य स्वयं करने की आदत थी परन्तु पत्नी के रूप में उसका भी ध्यान रखने में उसका सारा समय कहाँ चला जाता था,उसको पता ही नहीं लगता था.कोई भी पल एकाकी होने पर सविनय के साथ भावी जीवन बिताने के उसके स्वप्न भी उसके जीवन में झाँक लेते थे.
समय और व्यस्तता को घाव भरने वाला बहुत महत्वपूर्ण मलहम माना जाता है,ऐसा ही क्रम बनने लगा था कामिनी वंश,रंजन और गृहस्थी की चाहरदीवारी में रम गयी थी.वंश भी उसके साथ प्रसन्न रहता था..शिशु को जो भी अपनत्व प्रदान करता है,वही उसका अपना है.वंश बड़ा हो रहा था. कामिनी और वंश दोनों ही माता-पुत्र की भांति एक दूसरे को प्रिय थे.एक दिन जब उसकी नौकरानी ने न जाने किस कारण उसके जन्म के विषय में कुछ प्रश्न पूछ लिया तो , ऐसे मोड़ पर ही कामिनी ने एक महत्वपूर्ण निर्णय भविष्य की समस्याओं से बचने के लिए लिया और वह था परिवार को यहीं तक सीमित रखने का.सौतेली शब्द से उसको घृणा थी और वह अपने संसार को इस काली छाया से मुक्त रखना चाहती थी ,अतः उसको यही उपयुक्त लगा..रंजन ने भी उसके प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी.
.वंश के विद्यालय जाने का समय आ गया था.प्रखर मेधा का स्वामी वंश, कामिनी के परिश्रम,वात्सल्य व उसको समय देने के कारण बहुविध प्रतिभा सम्पन्न बन गया था.हर क्षेत्र में सफलता उसका अनुसरण करती थी.रंजन उसको देख कर प्रसन्न थे ,उत्साह वर्धन करते थे और सभी साधन उन्होंने रागिनी व वंश की सुख सुविधा हेतु उन्होंने जुटा रखे थे.
किशोरवय की ओर बढ़ते वंश पर कामिनी ने तन -मन धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था.स्कूल की शिक्षा पूर्ण कर वंश के अपना करियर निर्धारित करने का समय आ गया था.रंजन और कामिनी दोनों ही आदर्श माता-पिता की भांति वंश को सर्वोच्च शिखर पर देखना चाहते थे, इस समय वंश तो समयाभाव के कारण अधिक समय नहीं दे पाते थे,परन्तु कामिनी ने अपने सभी शौक ,इच्छाओं पर लगाम लगा दी थी.अंततः कामिनी की तपस्या सफल हुई. वंश को देश के सर्वोच्च शिक्षा संस्थान में प्रवेश मिल गया.समय पंख लगाकर उड़ रहा था .वंश की सफलताएँ ही कामिनी को उल्लसित रखती थीं.भाग्य भी ना जाने कैसा छल करता है ,अचानक हृदयाघात से रंजन ने उसका साथ छोड़ दिया .कामिनी का तो संसार ही उजाड़ गया.वंश भी बहुत दुखी था.उसके भविष्य का ध्यान रखते हुए कामिनी ने उसको अपने भविष्य को स्वर्णिम बनाते हुए अपने पिता की इच्छाएं पूर्ण करने को कहा.अपनी भावनाओं किसी प्रकार नियंत्रित किया.कामिनी को रंजन के कार्यालय में नियुक्ति का प्रस्ताव मिला ,अपने को व्यस्त रखने के इरादे से उसने नियुक्ति स्वीकार कर ली.अब कामिनी का समय घर और कार्यालय में बीत जाता था.

वंश का एम् टेक भी पूर्ण हो गया और उसको मनोनुकूल नियुक्ति भी.अब कामिनी के समक्ष एक ही महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व शेष रह गया था वंश को विवाह सूत्र में बाँधने का.उसने वंश से ही उसकी पसंद के विषय में जानना चाहा तो उसने कोई विशेष रूचि प्रकट नहीं की.अंततः एक सुशिक्षित,सुदर्शना लड़की देख कर विवाह प्रस्ताव पर विचार किया.आज लड़की के माता-पिता उनसे मिलने आ रहे थे,खुश थी कामिनी.सभी विषयों पर बातचीत के पश्चात,अचानक ही लड़की की माँ बोली “हमने सुना है आप वंश की सौतेली माँ हैं,इसलिए थोडा संकोच है,लड़की देने में.”
कामिनी का चेहरा फक्क पड़ गया.काटो तो खून नहीं जैसी स्थिति हो गई उसकी.जिस दंश से वो आज तक स्वयं को बचाती रही थी ,वही जीवन के महत्पूर्ण मोड पर उसके सामने था.वंश भी स्तब्ध रह गया.वास्तविकता तो ये थी कि वह इस सच्चाई से परिचित नहीं था.उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस माँ को उसने सर्वस्व माना है,वह उसकी माँ नहीं .लड़की के परिजन तो वापस चले गए थे,परन्तु वातावरण बोझिल हो गया था.कामिनी भी इस झटके से स्वयं को असहज अनुभव कर रही थी और वंश ठगा सा रह गया था.
कामिनी ने स्वयं को संयत करते हुए वंश को सम्भालना चाहा तो वंश ने कुछ समय अकेला रहने की इच्छा व्यक्त की.समझदार कामिनी ने उसकी इच्छा का मान रखा और स्वयं अन्यत्र व्यस्त हो गयी.तीन चार दिन वंश अनमयस्क सा रहा ,कामिनी ने उसको यथार्थ से परिचित कराना भी चाहा.अभी वह तैयार नहीं कर पा रहा था स्वयं को.
उधर कामिनी किंकर्तव्यविमूढ़ सी यही निश्चय नहीं कर पा रही थी कि उसका अपराध क्या है,उसने तो अपना जीवन ,अपनी खुशियाँ ,अपने स्वप्न सबकी कीमत पर वंश का जीवन संवारा था और उसको क्या मिला उदासीनता ,बेरुखी .यदि वंश की माँ होती भी तो इससे अधिक और क्या कर सकती थी.यही सब प्रश्न उसके अंतरतम को झिंझोड़ रहे थे.
वंश संभवतः कामिनी के साथ सहज हो भी जाय परन्तु क्या अपना जीवन न्यौछावर करने वाली उसकी माँ का जन्मदात्री न होना उसका दोष है. वास्तव में समाज में कुछ पूर्वाग्रह भी रहते हैं.जन्म-मृत्यु तो विधि के हाथ में है,ऐसी विषम परिस्थिति में जिस नारी ने अपना सर्वस्व ही दांव पर लगा दिया, उसको सौतेली कहना नारी का अग्नि परीक्षा में असफल होना नहीं?

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