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प्रथाओं और परम्पराओं के माध्यम से ही सांस्कृतिक,सामजिक और धार्मिक विरासत हस्तांतरित की जाती है. राजनीति में भी परम्पराओं का महत्वपूर्ण स्थान है.ब्रिटेन का तो संविधान ही प्रथाओं और परम्पराओं पर आधारित है.विविधता सम्पन्न हमारे देश में संभवतः कोई दिन ऐसा शेष रहता होगा जब कोई पर्व,उत्सव आदि न ,मनाया जाता हो.इन पर्वों को मनाने की विधि भी प्रदेश,स्थानीय यहाँ तक कि परिवारों में भिन्न होती है.प्रथाओं और परम्पराओं के रूप में ही एक पीढी से दूसरी पीढी ये हस्तांतरित होती रहती हैं.विविधता में एकता का आनन्द इसी रूप में उठाते हैं.
इन्हीं परम्पराओं का विकृत रूप किस प्रकार विनाशकारी हो सकता है,अंधविश्वास में परिणित हो जाता है , इसी का एक उदाहरण आपके साथ साझा कर रही हूँ.मेरे एक परिचित सुशिक्षित परिवार में एक बीमार महिला की स्थिति गंभीर थी और वो अपने पति एवं परिवार के साथ रहती थीं.उनके शेष परिजन अर्थात माता-पिता ,भाई बहिन आदि सभी चिंतित और व्यथित थे स्वाभाविक रूप से.. उनका उपचार चल रहा था,एक दिन दुखद समाचार आया कि उनका स्वर्गवास हो गया है.एक बड़े परिवार से सम्बद्ध होने के कारण सभी लोग उनके यहाँ पहुँचने लगे.पुत्री की मृत्यु का समाचार सुनकर वृद्धा माँ दुःख नहीं सह सकी और हृदय गति अवरुद्ध हो जाने के कारण उनका भी निधन हो गया.उनके मायके से कुछ लोग उनके पहुँचने के लिए अपनी यात्रा पर थे.स्थिति भी समस्या पूर्ण थी, क्योंकि वृद्धा माँ का देहावसान हो जाने के कारण दोनो परिवारों में ही उपस्थिति भी आवश्यक थी और वातावरण भी शोक पूर्ण हो गया था.
कुछ ही देर पश्चात पुनः समाचार आया कि वो महिला जीवित हैं.आश्चर्य तो हुआ ही और उत्सुकता भी कि इतना गंभीर समाचार क्यों दिया गया बिना सुनिश्चित हुए.ज्ञात हुआ कि कुछ स्थानों पर ये परम्परा है,कि यदि बीमार व्यक्ति की मृत्यु का समाचार मायके में दिया जाय तो उनके प्राण बच जाते हैं,और इसी लिए उनके परिवार के किसी सदस्य ने ये समाचार उनके मायके में दे दिया.जब तक ये समाचार आया तब तक तो मायके वाले एवं अन्य परिजन रिजर्वेशन के यात्रा के लिए निकल चुके थे.उनको पुनः सूचित किया गया और असुविधाओं को सहन करते हुए वो लोग वापस लौटे.
उन महिला का जीवन का संभवतः अंत आ ही गया था और ४ दिन पश्चात उनकी मृत्यु हो गई.बार बार पता करके लोग पुनः वहाँ पहुंचे.
असुविधा और शोकाकुल परिवार को माता जी का दुःख सहन करना पड़ा.इस घटना से मन में क्षोभ भी हुआ ,प्रथाएं और परम्पराएँ इस रूप में होना कितना दुखद है.ये ठीक है कि जीवन -मरण परमात्मा के हाथ में है,परन्तु ऐसी विकृत परम्पराओं के निर्वाह करने का मेरे विचार से कोई औचित्य नहीं है.माता जी का निधन भी दुखद है और संभवतः किसी अन्य के साथ भी ऐसी सूचना कुछ अनिष्ट कर सकती थी.भयंकर शीत में जाना, लौटना और पुनः वहाँ पहुंचना भी कष्टकारक था.
ऐसा नहीं कि ऐसी परम्पराएँ केवल हमारे यहाँ ही है ,और इसके लिए देश को बदनाम करने वाली भी कोई बात नहीं .,विश्व में किसी न किसी रूप में ये सर्वत्र विद्यमान हैं.
यदि इसी संदर्भ में विश्व की अन्य सभ्यताओं की विशेषताओं पर विचार करें तो कोई भी सभ्यता ऐसी नहीं मिलती जहाँ अंधविश्वासों के उदाहरण न मिलते हों.अपनी सभ्यताओं को अत्याधुनिक मानने वाले देशों के इतिहास में चुडैलों बुरी आत्माओं के ढेरों उदाहरण उपलब्ध हैं.ऐसा नहीं कि उनका मात्र जिक्र है,अपितु किस प्रकार वो आत्माएं सताती रही या कैसे उनका अंत करने के प्रयास किये गये,शैतान आदि की गाथाओं के विदेशों में थोक में उद्धरण मिलते हैं..
! हमारे देश के पंडितों,पुरोहितों को(चाहे वो वास्तव में पंडित अर्थात विद्वान् रहे हैं) को ढकोसले वादी, मिथ्यावादी कहा जाता रहा है,(उपरोक्त श्रेणी में भले ही कुछ प्रतिशत ऐसे तथाकथित पंडितों का भले ही हो) परन्तु इसका अर्थ ये नहीं कि ऐसे उदाहरण अन्य विकसित तथा आधुनिक कहे जाने वाले देशों में नहीं हैं क्या यह छवि आपको किसी धर्म गुरु की दिखाई देती है?यदि नहीं तो केवल अपने देश को बदनाम क्यों करा जाय .
अब देखते हैं ,कुछ उदाहरण पाश्चात्य देशों में अन्धविश्वास के…………………
(१) काली बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है, (२) शीशा तोडना विनाश का लक्षण है (३) १३ का अंक अशुभ होता है.यही कारण है कि विदेशों में बहुत से होटलों में १३ नंबर का कमरा नहीं होता , लोग १३ नम्बर से परहेज करते हैं.,बिल्डिंग्स में १३ नम्बर का फ्लोर ही गायब कर दिया जाता है.
(४)दिन के समय उल्लू देखना बहुत अशुभ है.
(५) फर्श पर छतरी गिरने का अर्थ घर में कोई मर्डर होना है.
(६)किसी समारोह में मोमबत्ती बुझने का अर्थ बुरी आत्माओं का वहां निकट उपस्थित होना है. (७)शयन कक्ष में झाड़ू रखना अशुभ होता है.
(८) बिस्तर पर हैट रखना बहुत अशुभ है.
(९) टूटते तारे को देख कर कोई भी उस समय की गयी मनोकामना पूर्ण होती है.
(१०) घर के बाहर जूते उतारना अशुभ होता है तथा नमक गिरना अशुभ है और यदि नमक गिर जाय तो उस व्यक्ति के कंधे पर नमक डालने से अपशगुन दूर होता है.आदि आदि………….. अनगिनत उदाहरण है ऐसे जिन पर स्वयं को आधुनिक वैज्ञानिक सोच युक्त मानने वाले पाश्चात्य देशवासी मानते है,तथा उनके निराकरण का उपाय करते हैं. ! अब विचार करते हैं पाश्चात्य देशों में की गयी भविष्यवाणियों पर जो समय समय पर की जाती रहीं जिनके कारण सम्पूर्ण विश्व में हलचल रही…दूसरे शब्दों में कहा जाय तो त्राहि त्राहि मची रही.. (१)१५३० के दशक में जर्मनी के एक दर्जी द्वारा की गयी भविष्यवाणियाँ तथा स्वयं को तारणहार घोषित किया जाना.इसके कारण बहुत लोग त्रस्त रहे. (२)ईसाई परम्परा के अनुसार ६६६ का अंक शैतान का अंक माना जाता है,अतः १६६६ में सबको भयभीत परेशान रखा गया यह भय व्याप्त करके.कि सृष्टि का विनाश हो जायेगा.
इसी प्रकार अमेरिकी धर्मगुरु द्वारा की गयी १९४० के दशक में विनाश की भविष्यवाणी,इसी प्रकार एक अन्य अमेरिकी धर्मगुरु द्वारा १९१४ में सृष्टि के संहार तथा ईसामसीह के प्रकटीकरण की भविष्यवाणी ,इसी प्रकार पाश्चात्य लेखकों द्वारा १९८८ में,फिर १९९४ में विनाश की भविष्यवाणी
२००० में विश्व के समस्त कम्प्यूटर्स खराब होने की भविष्यवाणी.
श्रीमान केपिंग ऩे ही १९९४ की विनाश की भविष्यवाणी की थी और उन्हीं की भविष्यवाणी २१ मई २०१२ में सम्पूर्ण विनाश की तथा २१ मई२०११ को दोतिहाई विश्व समाप्त होने की थी. (उपरोक्त तथ्य नेट या जागरण से साभार)
! जब फ़ुटबाल विश्वकप के समय सारा विश्व पागल हो रहा था पाल नामक ऑक्टोपस की भविष्यवाणियों को लेकर. तहलका सम्पूर्ण विश्व में मचा रहा,मीडिया में जो सुर्खियाँ उन भविष्यवाणियों को लेकर बनी रही (वो सही थी या गलत या कुछ सेटिंग यह हमारा विषय नहीं ) .ये पाल भारत का नहीं था.
प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि उपरोक्त समस्त गतिविधियाँ यदि भारत में होती हैं,तो भारत को काहिलों,अनपढ़ों तथा पोंगापंथियों का देश कहा जाता है,भर्त्सना की जाती है जबकि हमारा देश कुछ परिस्थितियों वश तथा हमारी अपनी अक्षम्य त्रुटियों के कारण दीर्घ काल तक पराधीन रहा और शिक्षा के क्षेत्र में हम पिछड़ गये,जब कि वर्तमान विकसित देश हमसे आगे निकल गये.,और आज स्वयं को अग्रणी मानने वाले पाश्चात्य देशों में ऐसी भविष्यवाणियाँ की जाती हैं तो वो गलत सिद्ध होने पर भी उचित है!…………….. यहाँ मै यह स्पष्ट करना चाहूंगी कि स्वयं मैं अंधविश्वासों की समर्थक नहीं हूँ और यथासंभव इनका समर्थन किसी को नहीं करना चाहिए …परन्तु जब ये कृत्य सम्पूर्ण विश्व में होते हैं,तो हमें पिछड़ा स्वयं को आधुनिक मानने के दावे पाश्चात्य देश क्यों करते हैं.मेरा मानना है कि जिन लोगों के कारण ऐसी मिथ्या भ्रांतियां प्रसारित की जाती हैं,उनको दण्डित किया जाना चाहिए.मानवाधिकारों का दावा करने वाले तथा स्वयं को अगुआ बताने वाले देश यह क्यों नहीं सोच पाते कि ऐसी भ्रांतियों से कमजोर दिल वाले लोगों को कोई हानि भी पहुँच सकती है,भावनात्मक रूप से भी इन भविष्यवाणियों का दुष्प्रभाव दिखाई देता है. !
! अतः पिछड़े हम नहीं हमको पिछड़ा घोषित करने वाले देश स्वयं एक हीन +श्रेष्ठता के विरोधाभास युक्त भावना से ग्रस्त हैं.
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