तुम्ही हो माता ,पिता तुम्ही हो
अपने पिता को शत शत नमन करते हुए,उन माँ का भी श्रद्धा स्मरण जिन्होंने हमारे जीवन में पिता की भी भूमिका निभाई,पिता की मृत्यु बहुत पूर्व हो गई थी ,माँ की आयु भी कम थी और मुझको तो पिता की शक्ल भी याद नहीं ,दुनिया में तो अब माँ भी नहीं है,परन्तु कितनी दक्षता से उन्होंने स्वयं को और अपने परिवार को संभाला,अतः मेरे लिए तो वही माता और वही पिता
साथ तुम्हारा छूट गया था ,परिवार अधर में था,
मुझको तो जीवन -मृत्यु का,कुछ ज्ञान नहीं था.
तुम रोती थी,हमको अपने आंचल में छुपाती थी.
रुदन का कारण क्या है,नहीं हमको ये बताती थी.
कमाना तुमको ही था ,और घर भी संभालना था.
हम पर आयी हर मुसीबत की ढाल बन जाना था.
समाज के भेड़ियों से तुमको स्वयं को भी बचाना था.
हमारे भविष्य को भी तुमको गढना औ संवारना था.
कैसे संभाल लिया माँ सब तुमने पिता भी बनकर.
(कविता मुझको नहीं आती,अतः उस दृष्टि से कृपया न देखें ,बस अपने श्रद्धा सुमन अर्पण करने का प्रयास किया है.हाँ यदि इन पंक्तियों में यदि कुछ सुधार हो सकता तो कृतज्ञ रहूंगी. )
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