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सीता और अग्नि परीक्षा (कभी मुक्ति नहीं )

chandravilla
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लोकल बस में बैठे हुए मुक्ता ने पीछे खड़ी कनिका को देखा था  तो चौंक गयी ,सहसा उसको अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ,  परन्तु वो  कनिका ही थी . कनिका ,मुक्ता  की सहेली थी.  दोनों ऩे एक दूसरे को देखा तो परन्तु बस में भीड़ इतनी अधिक थी कि  भेंट न हो  सकी.  .दोनों की मिलने और  बहुत सारी बाते करने की हसरत मन में ही रह गयी.वर्षों बाद आज दोनों सखियाँ  बस  एक दूसरे को देख ही सकी.  ,  महानगर की जिंदगी, भागदौड और कोई संपर्क सूत्र नहीं. ! अगले दिन पुनः वही स्थिति थी, कनिका आज भी भीड़ में बहुत पीछे थी और मुक्ता सबसे आगे.परन्तु उस दिन कनिका ने अपना मोबाइल नम्बर उतरने से पूर्व मुक्ता  के पास पहुंचा दिया.

दिन में तो बात नहीं हो सकी.शाम को घर पहुँचने पर मुक्ता ने अवसर मिलते ही कनिका को फोन लगाया ,  थोड़े शिकवे -शिकायतें होने के पश्चात मिलने का स्थान तय किया और सप्ताहंत में दोनों सखियाँ मिलीं.उत्साह और खुशी का ठिकाना नहीं था.बातों का कोई अंत नहीं था और न ही  कोई ओर छोर  . .पिता का स्थानातरण और पारिवारिक समस्याओं के कारण बिछड़ी दोनों मित्र आज आमने सामने थी .मुक्ता अपने पारिवारिक जीवन और जॉब में व्यस्त थी.कनिका से उसके परिवार के विषय में पहुँचने पर कनिका ने बताया कि उसने शादी की ही नहीं.चौंक गयी मुक्ता .उसकी समझ में यह पहेली नहीं आयी क्योंकि  चंचल कनिका तो  कालेज टाइम से ही मस्त वैवाहिक जीवन के स्वप्न देखती थी. बार बार पूछने पर  कनिका कारण बताने के नाम पर अनमनी ही थी, कि मुक्ता ने उससे राधिका दी के विषय में पूछ लिया.राधिका दी कनिका की ममेरी बहिन थी. बस अब तो कनिका स्वयं को रोक नहीं सकी और बिछड़ने से अब तक की कथा के साथ उसने राधिका दी की कथा सुनायी सहेली को.अपूर्व सुंदरी राधिका दी सभी कलाओं में पारंगत थीं.मुक्ता भी फैन थी राधिका दी की.मृदु भाषिणी ,सदा सहयोग के लिए तैयार रहने वाली,रूप +गुणों की खान  राधिका दी से प्रभावित हुए बिना कोई रह नहीं सकता था……
कनिका ने रोते रोते उनकी कहानी मुक्ता को बताई तो मुक्ता भी अपने अश्रुओं पर नियंत्रण नहीं रख सकी.कनिका ने बताया ,
ऍम बी ए करके राधिका दी को बहुत अच्छा जॉब मिल गया.छोटे से शहर की रहने वाली राधिका दी सरलस्वभाव की  थी,अतः जॉब के लिए    मायानगरी मुम्बई   भेजते समय माता-पिता का चित्त भी चिंताओं से भरा था.परन्तु अपने एक बुजुर्ग  मित्र के पास  बेटी के रहने की व्यवस्था हो जाने से  उनको कुछ राहत सी मिली. बहुत सारी हिदायतों के साथ बेटी को अपना भविष्य उज्जवल बनाने के लिए भेज दिया उन्होंने .कम्पनी की बस से ऑफिस आने जाने की  तथा रहने की व्यवस्था हो जाने के कारण अधिक समस्या नहीं हुई राधिका दी को मुम्बई में .घर और यातायात प्रमुख समस्या हैं महानगरों की.
ऑफिस में अपने सहयोगियों से अच्छी पटती थी दी की.आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी,मृदुभाषिणी,सदा सबके साथ सहयोग करने वाली राधिका दी थी  ही ऐसी,जो मिलता प्रभावित हो जाता. मनोहर, उनके  सहकर्मी ने ऑफिस के काम में उनकी बहुत  सहायता की .राधिका दी के हृदय में कृतज्ञता की भावना थी मनोहर के प्रति.प्राय लौटते समय काम निबटा कर साथ साथ ही निकल जाते थे दोनों.कभी  काफी स्नैक्स आदि लेकर राधिका दी ऑफिस बस के स्थान पर ऑटो या लोकल ट्रेन पकड़ कर घर पहुँच जाती थी. आत्मीयता पूर्ण व्यवहार मिलने से दोनों एक दूसरे के साथ अपनी समस्याएं भी शेयर कर लेते.राधिका दी विश्वास भी करने लगी थीं मनोहर का.अचानक ही एक दिन मनोहर ने उनके समक्ष शादी का प्रस्ताव रख दिया.राधिका दी को बुरा नहीं लगा क्योंकि उनको भी मनोहर का साथ अच्छा लगने लगा था.अपने माता -पिता से भी उन्होंने कुछ सकुचाते हुए मनोहर के प्रस्ताव के विषय में बताया.भिन्न जाति,रहन-सहन का पता चलने पर माता-पिता को कुछ असहज लग रहा था,परन्तु सगे सम्बन्धियों और मुम्बई वासी मित्र से बात करके उन्होंने मनोहर के विषय में जानकारी करने को कहा.सब कुछ सामान्य देख कर और मनोहर से प्रभावित हो कर मित्र ऩे राधिका दी के पिता को तैयार कर लिया.मनोहर के मातापिता तो किसी सड़क दुर्घटना का शिकार हो स्वर्ग सिधार चुके थे, ,हाँ एक छोटा अविवाहित भाई अवश्य था जो जॉब के कारण दुबई रहता था.
राधिका दी के माता-पिता ऩे मुम्बई आकर मनोहर से स्वयं भी मिलकर दोनों का विवाह सादगी  से  सम्पन्न करा दिया.मनोहर के कोई  दूर के सम्बन्धी और भाई तथा ऑफिस के साथी,मित्र उपस्थित रहे ,कुछ समय वहीँ रूककर वो लोग अपने शहर लौट आये.मनोहर और राधिका दी ऩे अपना अलग घर ले लिया था.घूमने फिरने  में कब समय पंख लगाकर उड़ गया  पता ही नहीं चला.घर, ऑफिस,घूमना- फिरना यही दिनचर्या रहती थी दोनों की.दोनों की जोड़ी लोगों के लिए चर्चा व कुछ के लिए ईर्ष्या का विषय थी. राधिका दी का साथ पाकर मनोहर भी स्वयं को धन्य ही मानते थे.
एक दिन दोनों फिल्म देखकर लौट रहे थे ,बाईक पर सवार मनोहर और राधिका दी को चारों तरफ से कुछ मवाली छाप गुंडों ने घेर लिया. सस्ती बातें करते हुए उन गुंडों के इरादे कुछ नेक नहीं थे.राधिका दी की सुन्दरता को लेकर उन गुंडों के कमेन्ट सुनकर उन दोनों ऩे अनहोनी का  अंदाजा लगा लिया था.दोनों की बहुत देर तक हाथापाई हुई और अंत में वही हुआ जिसका दर उनदोनों को  था ,गुंडे राधिका दी को उठाकर ले गये.मनोहर अकेले हाथ मलते कुछ भी नहीं कर सके.
पुलिस में शिकायत दर्ज कराना ,निरर्थक भागदौड यही सब दो दिन तक चलता रहा.तीसरे दिन राधिका दी भाग कर घर पहुँची ,अपने घर आकर उनको राहत मिली.मनोहर घर पर  ही थे.राधिका दी उनके गले लगकर बिलखती रही.परन्तु उनको अहसास हुआ कि मनोहर की प्रतिक्रिया कुछ विचित्र थी ,उन्होंने कोई ढाढस नहीं बंधाया  दी को. बस औपचारिकता वश उनको चुप कराया.दी की आशा के विपरीत मनोहर ऩे उनसे ढंग से बात भी नहीं की.
दी ऩे   आपबीती सुनाने का प्रयास किया  .परन्तु मनोहर बोले बचा ही क्या है.दी को लगा वो कुछ समझी नहीं उन्होंने पूछा अर्थात? मनोहर का ठंडा सा उत्तर था, दो दिन कैसे रही तुम गुंडों के साथ.लोग क्या कहेंगें ,सोचेंगें.दी तो मानों आसमान से गिरी ,परन्तु मनोहर की सोच नहीं बदली.पति की आँखों में अविश्वास और उपेक्षा,वो भी जब वो पति के साथ ही थीं और निर्दोष थीं.  सहन नहीं कर सकी दी,  और नींद की गोलियाँ खाकर स्वयं चिर निंद्रा में सो गई.
मुक्ता की आँखों  से आंसू झर झर बह रहे थे,कनिका तो अब  कुछ संयत थी,मुक्ता को भी पता चल गया था कि कनिका ने शादी क्यों नहीं की. वो नहीं समझ पा रही थी कि राधिका दी का दोष क्या था ,उनका सौंदर्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु बन गया !,भारी मन और सिसकियों पर काबू पाकर मुक्ता अपने घर को रवाना हुई क्योंकि घर भी दूर था और समय भी बहुत हो चला था.घर पहुंचकर भी उसको इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला कि निर्दोष होने पर भी सीता को ही सदा अग्नि परीक्षा क्यों देनी पड़ती है

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