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नारी दुर्जनों की कुत्सित दृष्टि से सुरक्षित कभी नहीं रही .

chandravilla
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“नारी तुम केवल  श्रद्धा हो”

,हाँ   नारी क्या  अब   तुम केवल श्रद्धा और पूजा का सम्मान की वस्तु बन कर रह गयी हो.जो  .मंदिरों में देवी के रूप में तुम्हारी उपासना कर ,दुर्गम पर्वतों पर जाकर तुम्हारे  शक्ति स्वरूप के दर्शन कर,तुम्हारे  चरणों में दंडवत कर  स्वयं को धन्य  तो हम मान लेते हैं, दर्शन करने जाने से पूर्व मनौतियाँ तो मानते हैं,कन्या के रूप में तुम्हारा  पूजन तो करते हैं ,तुम्हारे  नाम पर व्रतउपवास  तो रखते हैं,जागरण तो करवाते हैं,परन्तु तुम्हारे   विविध स्वरूपों को दिन रात अपमानित करते हैं, कुदृष्टि डालकर, वस्त्रविहीन कर,अश्लील और अपशब्द बोल कर.  बर्बाद करके.,माँ कही जाने वाली नारी चाहे वो अबोध बालिका हो,किशोरी हो,युवती हो ,प्रौढ़ा हो,या फिर कहीं फंस गयी बेचारी 65-70 वर्षीया वृद्धा.सर से पांव तक साड़ी में लिपटी हो,सलवार सूट में हो,पर्दानशीं हो,या फिर अल्पवसना,घर में हो,घर से बाहर हो,अकेली हो,किसी के साथ हो,पैदल हो किसी भी वाहन में हो सहयात्रियों के साथ ,सड़क चलते गुंडों के द्वारा ,  परिवार के किसी सदस्य द्वारा ,घरेलू नौकर या नियोक्ता या शिक्षक के द्वारा ……………कहीं भी सुरक्षित नहीं.

नारी पूर्ण सुरक्षित तो शायद कभी भी नहीं रही उसका अपमान तो हमेशा ही हुआ है,उसको उपभोग की वस्तु सदा ही माना गया है, उसकी शारीरिक संरचना सदा शत्रु बनी रही.   इसके प्रमाण उपलब्ध हैं,हमारे पौराणिक ग्रंथों में जब धोखे से नारियों का अपहरण हुआ या शील हरण हुआ ,ऐतिहासिक  वृतांतों में नारियों का अपहरण,राजाओं के  रनिवासों में सुन्दर नारियों का संग्रह मानों अलमारियों में सुन्दर वस्त्र सजा कर रखे गये हों,सुन्दर नारियों को प्राप्त करने के लिए राज्यों को बर्बाद कर देना,आदि..ये प्रवृत्ति बढ़ती गयी मुस्लिम आक्रमणकारियों के आगमन के बाद.जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ऩे धन सम्पत्ति ,मंदिरों को तोडना और स्त्रियों को लूट कर अपने हरम की शोभा  बनाया.आक्रमणकारियों ऩे तो  चाहे वो मुस्लिम रहे हों,पुर्तगाली,या फिर ब्रिटिश सभी इन कुत्सित कार्यों में संलिप्त रह कर नारी को सदा अपमानित किया.
परन्तु दुखद है,आज की स्थिति ,जब एक ओर दावा किया जाता है,प्रगतिशील होने का,आधुनिकता का दम भरने का ,सुशिक्षित होने का और दूसरी ओर घर से बाहर निकलने पर क्या घर में भी अस्मिता सुरक्षित नहीं.ऐसी घटनाओं की गिनती यदि करने लगें तो शायद नहीं कर सकें ,क्योंकि कुछ केस दबंगों द्वारा विविध दवाब ,रिश्वत आदि के कारण पंजीकृत नहीं होते,अधिकांश शिकायत लिखवाने  का साहस नहीं कर पाते.उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में देश में हर तीन मिनट पर एक महिला अपराध की शिकार हो रही है। हर 29 मिनट में किसी न किसी महिला के साथ बलात्कार हो रहा है निश्चित रूप से आंकडें तो इससे अधिक भयावह है क्योंकि यदि इन आंकड़ों को सच भी मान लिया जाय तो भी छेड-छाड जो कई बार बहुत घातक होती है इसमें सम्मिलित नहीं.
गुवाहाटी की घटना ने हर संवेदनशील प्राणी को शायद दहलाया तो है,परन्तु ये घटना कोई पहली बार तो नहीं घटी बस अंतर इतना है कि अभी जरा सुर्ख़ियों में है,अभी तक कितने बलात्कारियों को ऐसी सजा सुनायी गई जो  उनकी या उनके अनुयायी गुनाहगारों की   की रूह तक कांप उठे,कितने अधिवक्ताओं ने स्वयं को मानवता के दृष्टिकोण से सोचते हुए उन बलात्कारियों के केस लड़ने से रोका.कितनों को इस चिंता ने सताया कि पीडिता के रूप में कभी  उनकी बहिन,पुत्री ,प्रेमिका ,पत्नी …………यहाँ तक कि माँ कोई भी  हो सकती है.
मीडिया ने सुर्ख़ियों में घटना को तो ला दिया पर क्या इस घटना को शूट करने वाले ये नहीं सोच सके कि यदि इस स्थान पर उनका कोई अपना होता तो भी क्या पहले वो घटना को कैमरे में उतारते ,उनका दायित्व उस समय उसको बचाने का नहीं था.क्या उनके लिए शाबाशी या चैनल की टी आर पी बढ़ना किसी की इज्जत से अधिक महत्वपूर्ण था.
प्रश्न तो एक हज़ार हो सकते हैं परन्तु उत्तर केवल एक है कि संवेदनाएं समाप्त हो गई हैं,जब तक अपने पैर में बिबाई का दर्द न हो ,किसी अन्य का दर्द प्रभावित नहीं करता.
मैं ये स्वीकार करती हूँ कि अपनी सुरक्षा अपने शत्रुओं से स्वयं करनी पड़ती है,गोलियों की बौछार चल रही हो और निहत्थे वहाँ  पहुँच जाएँ तो जीवित आ सकना असंभव है. इसी प्रकार लुटेरों के सामने अकेले आत्मरक्षा के साधनों  के अभाव में जाकर सुरक्षित लौट आना बुद्धिमता नहीं.इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकना कोई हंसी खेल तो नहीं क्योंकि समाचारपत्र के अनुसार पुनः गुवाहाटी में ऐसी एक अन्य घटना घट चुकी है.
अब प्रश्न आता है ,महिलाओं का वस्त्र विन्यास ,शालीनता नारी का आभूषण है ,पब , बियर बार में जाना हमारी संस्कृति नहीं
.यदि केवल आधुनिक वस्त्र विन्यास ही इसका कारण होता तो शेष सभी नारियाँ सुरक्षित होतीं.क्या अबोध बालिकाएं दरिंदगी का शिकार नहीं होती.क्या सूट, साड़ी पहनने वाली बहिनें समाज की कुत्सित दृष्टि से सुरक्षित रह पाती हैं.क्या केवल वस्त्र विन्यास को जिम्मेदार मानने वाले ये भूल जाते हैं कि बलात्कार की विभीषिका से  नारी कभी बच नहीं सकी.छोटे वस्त्र गत कुछ वर्षों से अधिक प्रचलन में हैं,परन्तु इससे पूर्व भी नारी को ये दंश सदा डसता रहा.अंतर है,तो अब मीडिया की अति सक्रियता के कारण ऐसे केसेस चर्चा में आ जाते हैं, साथ ही कुछ सीमा तक  पीडिता ने स्वयं और उनके अभिभावकों ने इन मामलों को दबाना थोडा कम किया है.
निवारण तो मुख्तया अपराधी के लिए जघन्य सजा और अविलम्ब कार्यवाही है ,कार्यवाही निष्पक्ष हो तभी उसका औचित्य है.अपनी संवेदनाओं को जगाए बिना इसी प्रकार समाज मूकदर्शक बना रहेगा और पीडिता की चीखें उनके कानों में लगी रूई को पार नहीं कर सकेगी.पीडिता का मौन तो और भी घातक है,समाज को पीडिता के प्रति अपनी सोच में परिवर्तन लाना आवश्यक है और आवश्यक है उसके परिवार का सहयोग .
हाँ अंत में एक बात अनुचित रूप से चर्चा में आने के लिए झूठे केस पंजीकृत करा लाभ उठाने वाली लड़कियां भी दंड की अधिकारिणी हैं.

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