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“हरियाली तीज की शुभकामनाएं.”
हरियाली तीज का सुन्दर,मनोहारी निमंत्रण पत्र मिलने पर बहुत सुखद लगा. मन में उत्सुकता और एकउमंग थी कि बहुत दिन हो गए तीज का झूला झूले हुए, चल कर देखते हैं .वहां पूरा तीज का माहौल मिलेगा,झूलने को मिलेगा. तीज का त्यौहार सभी महिलाओं को याद दिलाता है, उन बीते दिनों की ,जब कुछ दिनों पूर्व ही,आस पडौस में झूलते थे.कोई थकता नहीं था झूलते हुए,न चक्कर आते थे, ,सावन के गीतों का समवेत स्वर सुनायी देता था.और तीज वाले दिन का तो बेसब्री से इंतज़ार रहता था.पहले दिन मेहेंदी से हाथों को सजाकर ,सुबह उत्साह रहता था अपनी मेहंदी दिखाने का.तीज की सुबह थोडा बहुत काम घर में करवाकर हाथों में चूडियाँ पहिन कर सजसंवर कर सहेलियों के जाने की जल्दी रहती थी.सारा दिन झूलना,गीत गाना सावन+फ़िल्मी झूले वाले गीत.,खाना -पीना (जो अब दुर्लभ होता जा रहा है)
अतः प्रोग्राम में जाने का मन बनाया.. तीज महोत्सव में.बहुत भव्य आयोजन ,बड़ा सा पंडाल,खाने पीने के सामान के सुसज्जित स्टाल्स ,सुन्दर,आकर्षक वेशभूषाओं में महिलाएं, लड़कियां उपस्थित थीं . वहां.मंच पर एक उद्घोषिका तीज महोत्सव में सबसे बैठने की अपील कर रही थी, बार बार कहा जा रहा था ,हमारी मुख्य अतिथि महोदया शीघ्र ही कार्यक्रम में उपस्थित होंगीं.मैं भी एक अन्य परिचिता के साथ दोपहर बाद लगभग ३.३० पर वहां जा पहुँची.समय ३ बजे का था.शोरगुल ,बहुत था .उत्साह भी बहुत था,वहां भी परन्तु तीज का नहीं उन हस्ती के आगमन ,स्वागत का जिनके कारण इतना बड़ा आयोजन किया गया था.
सायं ४.३० पर थोडा शोर सा हुआ पता चला मुख्य अतिथि का आगमन हुआ है,थोड़ी अफरा तफरी सी दिख रही थी.खैर अंततः महोदया का शुभागमन हुआ.माल्यार्पण,दीप प्रज्वलन के पश्चात उन्होंने तीज की शुभकामनाएं दीं और सीधे अपने विषय पर आ गयीं .वास्तविकता तो ये थी कि वो कोई राजनीति हस्ती थीं और राजनीतिक दल द्वारा ही कार्यक्रम का आयोजन किया गया था,प्रचारार्थ..इसके बाद फैशन परेड थी ,जिसमें तीज सुन्दरी का चुनाव होना था. पूरे वोल्यूम पर डी जे पर संगीत चल रहा था और युवा पीढी व्यस्त थी.,उस पर चलने वाले भद्दे गीतों का आनन्द लेने में.
शेष उपस्थित सभी लोग ५ रु का सामान २० रु में खरीद कर खा रहे थे.और बेचारे झूले! उनपर तो कोई भूले भटके ही झूल रहा था या फिर बच्चे उनका आनंद ले रहे थे,.कुछ ब्रांडेड वस्तुओं की स्टाल्स थी ,वहां भी कुछ खरीदारी का कार्यक्रम चल रहा था.अर्थात आयोजन तीज पर्व का और तीज के नाम पर कुछ नहीं.बस था तो राजनैतिक प्रचार और महंगें दामों पर बिकता सामान..
थोड़े समय वहां रुक कर लौट आई सोच रही थी कितनी बदल गयी है ,हमारी जीवन शैली! और सोच.(यद्यपि समय के साथ आवश्यक परिवर्तन के पक्ष में हूँ मैं,परन्तु क्या अब त्यौहार मनाने का अर्थ मात्र दिखावा ,अपनी जड़ों से दूर होना है?.)किसी राजनैतिक दल द्वारा स्व प्रचारार्थ आयोजित कार्यक्रम में तीज का आनंद कैसे लिया जा सकता है. बस इतना अवश्य है,.( प्रचार के लिए ही सही) तीज के बहाने नयी पीढी को सेलिब्रेशन का अवसर तो (विशेष रूप से महानगरों में) मिल ही जाता है . यही कारण है कि होली,दीपावली ,दशहरा कार्निवाल के नाम से बड़े आयोजन होने लगें हैं ,जहाँ पर जुए से सम्बन्धित खेल,ड्रिंक्स ,नाच गाने( वो भी अभद्र ) और खाना पीना आदि. तो रहता है.बस नहीं रहता तो त्यौहार से सम्बन्धित कुछ विशिष्ठ व्यवस्था ,जो जोड़ सके संस्कृति से.
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भारत त्यौहारों -पर्वों का देश है.कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारे अधिकांश त्योहारों का सबंध ऋतुओं से जुड़ा है.देश के अलग अलग भागों में विविधता में एकता के चलते त्यौहार मनाने का ढंग भी भिन्न भिन्न है.उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में भी कुछ त्यौहारों का नाम भिन्न है,कुछ को मनाने का तरीका भिन्न है.परन्तु फिर भी कार्य-व्यवसाय वश एक स्थान से दुसरे स्थान पर बस जाने से तथा मीडिया के प्रचार से अधिकांश त्यौहार सभी स्थानों पर मनाये जाने लगे हैं.
इन्ही पर्वों में एक पर्व है,हरियाली तीज जो उत्तर भारत के कुछ भागों, उत्तर पर्वतीय स्थानों ,हरियाणा,राजस्थान,पंजाब के कुछ भागों में वर्षा ऋतु में श्रावण माह में मनाया जाता है,वहां पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के कुछ भागों में तीज ,हरियाली तीज से लगभग एक माह बाद आती है.परन्तु उसको मनाने का ढंग भिन्न है. पूर्वी उत्तरप्रदेश में हरियाली तीज वाला आनंद दो दिन बाद नाग पंचमी को मनाया जाता है.
शिव पार्वती के विवाह से सम्बन्धित इस पर्व को श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है .सावन के आते ही लड़कियों ,महिलाओं द्वारा तीज की प्रतीक्षा उत्कंठा से करना, तीज पर मायके में लड़कियों को बुलाया जाना शुभ माना जाता रहा है.(आज भी परम्परागत परिवारों में) श्रावण माह से पूर्व लड़कियों को ससम्मान बुलाया जाता है,तीज,रक्षाबंधन आदि पर्वों के पश्चात ही उपहारों,घेवर,श्रृंगार का सामान ,अन्य पकवान तथा वस्त्रों के साथ विदा किया जाता है ,भगवान भोले व माँ पार्वती की आराधना, रिमझिम वर्षा की फुहारें हरी -लाल चूड़ियाँ,पहिने,मेहंदी से सजे हाथ,घेवर (उत्तर भारत का एक विशेष मिष्ठान्न ),झूले,सावन के गीत यही सब दृश्य सावन का होता रहा है.
पेड़ों पर झूले ,महिलाओं का बड़ा सा घेरा और झूलती महिलाएं और सावन के गीत गाती महिलाएं,जिनमें या तो विरहणी द्वारा अपने पिया की याद में गाये गीत प्रमुख होते हैं या फिर माता-पिता का आँगन याद करते हुए मायके में बुलाय जाने का आग्रह. परन्तु उनका आनंद अलग ही होता है .
तद्पश्चात घेवर,चाट का आनंद लेकर सब अपने घरों को वापस .गाँव आदि में लगभग पूरे माह यह झूलने का कार्यक्रम चलता है.हाँ शहरों में कुछ स्थानों पर बस तीज के दिन ही कहीं कहीं झूले दीखते हैं,हाँ गाँव में अभी भी परम्पराएँ विद्यमान हैं.
राजस्थान में तो तीज का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाते हैं.फिल्मों में भी सावन के झूलों पर बहुत से प्रसिद्ध गीत हैं.जो आज भी लोकप्रिय हैं.मथुरा वृन्दावन में बांके बिहारी तथा राधारानी की झूलते हुए झांकियां सर्वत्र दिखती हैं.वहां भी यह पर्व बहुत उत्साह से मनाया जाता है.
आज की भागदौड में त्यौहारों को उस आनंद से मनाने की किसी के पास फुर्सत नहीं .यही कारण है कि त्यौहार व्यावसायिक होते जा रहे हैं.क्या यूँ ही हम अपने त्यौहारों को भूलते हुए बस व्यवसायिक बन कर रह जायेंगें?अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए त्यौहारों ,पर्वों के मौलिक स्वरूप को बनाये रखना होगा तभी ,हम अपनी जड़ों से जुड़े रह सकते हैं..अतः आयोजन सामूहिक तो हों परन्तु सुन्दर पर्वों को केवल व्यवसायिक न बनाया जाय .
(तीज पर पूर्व में भी लिख चुकी हूँ,परन्तु परिवर्तित रूप में प्रकाशित कर रही हूँ )
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