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रिश्तों का मोल

chandravilla
chandravilla
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गत दिनों    एक परिवार में रिश्तों का ऐसा कलुषित रूप देखने को मिला जहाँ परिवार में भाई  अपने भाई भतीजे और पिता  का ही हत्यारा बन बैठा था,ऐसे उदाहरण समाज में चहुँ ओर दिखते हैं,उन्ही को देखकर आश्चर्य होता है कि एक ही मातापिता की संतान ,एक ही खून और ऐसी निष्ठुरता ,निर्ममता ! इन्ही विचारों को इस बार कुछ पंक्तियों में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हूँ.कमियां बहुत सी हैं,मैं जानती हूँ ,उनको सुधारना चाहती हूँ.जागरण मंच ही ऐसा मंच है जहाँ ऐसा संभव है.आपका सहयोग अपेक्षित है.



रिश्तों के मायने बदल जाते हैं,
नए दायरों में जब बंध जाते हैं.
खो जाती है अंतरंगता कहीं दूर
तेवर बदले बदले नज़र आते हैं.

साथ ही पले ,बड़े होते हैं सब
सुख दुःख में रोते हँसते जब
क्यों दूरियां बढा लेते हैं इतनी
कि  अपने दुश्मन बन जाते हैं.



जिस खून से रिश्ता जुड़ा,प्यासे
उसी के  जाने कैसे बन जाते हैं.
स्वार्थ के चश्मे से उजला नहीं
बस  केवल स्याह ही देख पाते हैं.


धन यश सब कुछ  पा लेते   हैं ,
बस अपनेपन को ठुकराते  हैं,
रिश्ते अनमोल होते हैं जग में ,
उनका मोल नहीं जान पाते हैं.




आओ मिटा देते हैं कटुता सभी ,
मिठास से रिश्तों को सजाते हैं

दीवारें घृणा  की नहीं आओ ,

रिश्तों का उपवन महकाते हैं.



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