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घोटाले और कांड हमारी नियति बने रहेंगें यदि……………

chandravilla
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इतने घोटाले देश में हो चुके हैं ,क्या हुआ यदि एक और घोटाला हो गया (आज आम मानसिकता यही बन चुकी है ),जैसे जैसे महंगाई बढ़ रही है घोटालों में धनराशि  का आंकडा बढ़ता जा रहा है,पहले कभी सैकड़ों  में बात होती थी,फिर हजारों में,लाखों में,करोड़ों में,फिर जीरो बढते बढते इतनी हो रही हैं कि आम आदमी तो कल्पना भी नहीं कर पाता. जीप घोटाला,बोफोर्स घोटाला, हर्षद मेहता ,ताबूत घोटाला,N H R M घोटाला,चारा घोटाला,कामन वेल्थ खेल घोटाला 2 G स्पेक्ट्रम  घोटाला,सैन्य विभाग के विभिन्न घोटाले,आदर्श सोसाईटी घोटाला,लवासा प्रोजेक्ट, ,तेलगी घोटाला,हसन अली घोटाला.रेत उत्खनन .अन्न घोटाला,शराब ,बैंक घोटाले…………….. और  वर्तमान में चर्चित हुआ कोयला घोटाला.एविएशन और ऊर्जा घोटाला भी इसी श्रृंखला की कड़ियाँ हैं.इन घोटालों में देश को कितनी हानि हुई देश का गरीब कितना और गरीबी की दलदल में फंसा, ,मध्यम वर्ग पर  टैक्स की मार किस प्रकार बढ़ती जा रही है,और प्रत्येक देशवासी पर ऋण का भार कितना बढ़ रहा है,देश कितना पिछड़ा विकास की राह पर ,इन सबके आंकडें संगृहीत कर प्रकाशित किये जाय तो शायद एक पुस्तक  तैयार हो जायेगी.

वास्तविकता तो ये है कि जिस प्रकार किसी दवा की  डोज़ लेते लेते शरीर आदि  हो जाता है उसी प्रकार   घटना की पुनः पुनः  पुनरावृत्ति होने पर जनता को भी अंतर नहीं पड़ता. मुझको लगता भी नहीं कि किसी घोटाले या स्कैम से अब जनता की कुछ  प्रतिक्रिया होती  है.यदि अंतर पड़ता भी है तो बस 2-4 दिन जब तक वो मामला मीडिया की सुर्ख़ियों में रहता है.   यदि जनता सजग  होती तो आज तक हमारे नेतागण यूँ खुले आम जनता के गाढे खून पसीने की कमाई को लूट लूट कर  हम पर राज नहीं कर सकते थे.

राजनीति और भ्रष्टाचार परस्पर  पर्याय बन चुके हैं आज.राजनीति में प्रवेश के इच्छुक प्राय सभी जन  समाज सेवा ,राष्ट्र सेवा की भावना को आधार बनाकर  इस क्षेत्र से नहीं  जुड़ते हैं अपितु उनका एकसूत्री कार्यक्रम होता है , रातों रात धनकुबेर बनने की अपनी कल्पना को  साकार करना ,सत्ता सुख का आस्वादन,  और  ऐसा प्रबंध कर जाना    कि  उनकी आने वाली कई पीढियां  शाही विलासी जीवन जी सकें.इन लोगों का  सम्पूर्ण जीवन भ्रष्ट साधनों का सहारा लेकर इसी उधेड़ बुन में बीत जाता है. स्वयम को जनता का सेवक कहकर राजनीति में प्रवेश करने वाले ये पापात्मा  एक दम ही चोला बदल लेते हैं और स्वयं को जनता का  भाग्य विधाता मान उसी जनता  को अपना गुलाम मान लेते हैं.जिसके कारण वो जीरो से शीर्ष पर पहुँच सके.आश्चर्य तो इस बात का है कि बदनामी रूपी कीचड से पूर्णतया काले हो चुके ये सफेदपोश पता नहीं कौन सी अफीम खा कर राजनीति के क्षेत्र में पदार्पण करते हैं कि देश का धन लूट लूट कर खाने के पश्चात भी  इनका पेट भरता ही नहीं .
यदि उपरोक्त स्थिति के मूल कारणों पर विचार करें तो मेरे विचार से प्रधान कारण है, जनता की निष्क्रियता और आम आदमी को संवैधानिक और अन्य व्यवस्थाओं की जानकारी न होना.हमारे देश में निर्धनता के आंकडें दिल को दहलाने वाले हैं,जो कि अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुसार तो  हमारे देश में 55% जनसँख्या गरीबी रेखा के नीचे है जबकि हमारे अपने मानदंडों के अनुसार भी देश में 30  करोड से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे स्तर पर जीवन यापन करते हैं,और जो सीमा रेखा से जरा सा ऊपर हैं भी वो भी कभी भी इसी  गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में सम्मिलित हो सकते हैं.स्वाभाविक रूप से देश के इतने लोगों के पास समय और क्षमता होने का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता कि वो इस संदर्भ में सोच सकें.आधे पेट या भरपेट रोटी के जुगाड में रहना,फटे बदहाल जीवन को जीना उनकी विवशता है.उनके लिए ‘कोई होय नृप हमें का हानि वाली स्थिति है ‘
उच्च वर्ग में  भी शीर्ष वर्ग को लाभ पहुंचाते हुए तो ऐसी भ्रष्ट व्यवस्थाएं प्रकाश में आती ही हैं ,यदि देखा जाय तो जितने भी घोटाले हैं बड़े बड़े उद्योगपतियों को लाभान्वित करने के लिए ही होते हैं और  स्वयं सरकार लाभान्वित होती है.अतः उनसे किसी भी  ऐसे सकारात्मक कार्य की आशा कैसे की जाय?
मध्यम वर्ग का जहाँ तक प्रश्न है,ऐसे घोटालों और कांडों से जो देश की अर्थव्यवस्था को हानि पहुँचती है,उसका प्रत्यक्ष प्रभाव झेलना तो उनको  पड़ता है, विविध टैक्स के थपेड़े खा कर.सरकार के  जनता को सब्सिडी देने के नाम पर इतना हो हल्ला मचता है  और घोटाले करने पर कोई रोक टोक नहीं होती . परन्तु मध्यम वर्ग  अपनी सामान्य पारिवारिक  परेशानियों में उलझे रहते हुए  या तो आवाज उठाता  ही नहीं और यदि कभी आवाज़ बुलंद करता भी है तो उसकी आवाज का कोई ठोस परिणाम राजनीति के चतुर खिलाड़ी आने नहीं देते ,उनकी बांटने की नीति उनको एक नहीं होने देती जिसका परिणाम होता है बिल्लियों की लड़ाई में नेता रूपी वानर लाभ उठाते हैंऔर जनता के हाथ से अवसर छिटक कर दूर चला जाता है.मध्यम वर्ग के जोड़े एक एक तिनके को सरकार कैसे अपने नियंत्रण में कर लेती है इस कार्टून से स्पष्ट है
jnta
एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है,अपराधियों को सजा न मिल पाना ,सर्वप्रथम तो न्यायिक प्रक्रिया इतनी दुरूह और लंबी है और उसको उलझा कर भ्रष्ट उपायों का आश्रय लेकर अधिकांश मामले तो अपराधियों द्वारा  इतिहास  ही बना दिए  जाते हैं और कुछ अपराध सिद्ध हो भी गया तो उसका दंड उनको कुछ प्रभावित  नहीं करता , थोड़ी बहुत जेल की हवा खा भी ली तो क्या अंतर पड़ता है, क्योंकि जेल में अपने प्रभाव से ये राजनैतिक अपराधी  सब सुख सुविधाओं का उपभोग करते हैं और रिमोट से सम्पूर्ण राजनीति का संचालन भी   करते हैं और बाहर निकल कर स्वयम को और बड़ा स्टार मान लेते हैं., कुछ लाख का दंड उनके लिए कुछ अर्थ नहीं रखता और बाहर आते ही  पुनः कमर कस कर मैदान में कूद पड़ते हैं या अपने परिवार के किसी सदस्य को प्रविष्ट करा देते हैं.
विपक्ष का संगठित न होना जनता के लिए बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न कर देता है,क्योंकि कोई ठोस विकल्प उसको भ्रष्ट सरकार का जब तक नहीं मिलता ,उन्ही की शरण में जाना जनता की विवशता है ,यही कारण है कि इतने बड़े कांड के पश्चात भी अपराधियों के माथे पर शिकन तक नहीं आती.
उपरोक्त परिस्थितियों में निष्कर्ष यही निकलता है देश के हित में व्यक्तिगत मतभेदों को भुलाकर एक हुआ जाय और कांग्रेस सरकार का ठोस,सर्वमान्य  विकल्प जनता को उपलब्ध हो.ऐसे घोटालों के अपराधियों को इतनी कड़ी सजा मिले कि उनकी सभी संपत्ति चल-अचल बेच कर देश के खजाने को जो चूना उन्होंने लगाया है,उसकी पूर्ति  की जाय.और जनता उनको सर्वथा नकार दे.
सर्व महत्वपूर्ण विकल्प है कि किसी भी अपराधी  या उसके परिजन को निर्वाचन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति नहीं मिले.जबतक राजनीति में अपराधियों और उनके परिजनों का प्रवेश प्रतिबंधित नहीं होगा ये कांड हमारी नियति बन देश को यूँ ही रसातल में धकेलते रहेंगें और हम अभिशप्त रहेंगें अपनी खून पसीने की कमाई लुटवाने के लिए.

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