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भारतीय संस्कृति के प्रधान गुण सहनशीलता,धैर्य.विनम्रता देवी गुण है,परन्तु कभी कभी ऐसा लगता है,कि हमारे यही गुण हमारी चारित्रिक दुर्बलता के रूप में परिणित हो चुके हैं.देश में प्रतिदिन होने वाले पक्षपात,अनुचित कार्य हमें प्रभावित ही नहीं करते ,ये पक्षपात चाहे वर्ग विशेष को दी जाने वाली सुविधाओं के रूप में हों,क्षेत्र विशेष को दी जाने वाली विशिष्ठ छूट के रूप में.हमारे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो या हमारा राष्ट्रीय गौरव खतरे में हो,हम इस प्रकार निरपेक्ष बने रहते हैं मानों ये हमारे कर्तव्य या अधिकार क्षेत्र से बाहर के विषय हैं.इसी उदासीनता का परिणाम है उत्तरप्रदेश में विद्युतवितरण के संदर्भ में पक्षपात .सर्वाधिक आश्चर्य इस बात का है कि ये चिंता भी उच्च न्यायालय को ही करनी पडी .
यह सही है कि प्रदेश में गंभीर ऊर्जा संकट बहुत लंबे समय से है,देश या प्रदेश में कोई संकट हो तो उसके कारण होने वाले कष्ट को सहन करना हमारा कर्तव्य भी बनता है,क्योंकि देश या प्रदेश हमारा है.परन्तु असंतोष उपजना चाहिए जब ज्ञात हो कि स्वयं को जनता का सेवक कहकर वोट मांगने वाले स्वयं और उनके प्रमुख निर्वाचन क्षेत्र तो ऐश कर रहे हों और शेष जनता अभिशप्त हो ये समस्त समस्याएं झेलने को.क्या आश्चर्य है कि जिस दल का शासन होगा उनके निर्वाचन क्षेत्रों के लिए प्रदेश में कमी का कोई रोना नहीं ,क्या इन छह निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर ही सत्तासीन हुए हैं ये लोग? कोई वी आई पी आने वाला हो तो एक पल का लिए भी बिजली की कटौती नहीं.
ये समस्या धीरे धीरे देश व्यापी बनती जा रही है. व्यवस्था की बदहाली तो गत दिनों सम्पूर्ण विश्व के समक्ष हमें नीचा दिखाने के लिए पर्याप्त थी जब 3 दिन के अन्दर दो बार ग्रिड फेल हुए और एक बार 8 और दूसरी बार 21 राज्यों में अँधेरे का साम्राज्य रहा .वर्तमान समय में जबकि सभी कुछ विद्युत ऊर्जा से संचालित है,सभी व्यवस्थाएं ठप्प हो गईं.
. कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति,वस्तु का महत्त्व वही समझ सकता है,जिसके पास उस वस्तु का अभाव हो,भीषण ग्रीष्म के ताप में झुलसते ऐसे लोगों की गिनती करना भी सरल नहीं जो बिना पंखे के ही रहते हैं,कूलर,और एयर कंडिशनर तो स्वप्न है उनके लिए.आज भी जिन घरों में प्रकाश के नाम पर दिया या लालटेन है.अमेरिकी ऊर्जा विभाग द्वारा प्रदत्त आंकड़ों के अनुसार विश्व में 2 अरब से अधिक लोग आज भी अँधेरे में रहने को अभिशप्त हैं केवल अपने देश की स्थिति पर विचार करें तो आंकड़ों के अनुसार आज भी लगभग 64.55% भारतीयों को ही बिजली का सुख (कुछ सीमा तक) उपलब्ध है जबकि 35. 45% देशवासी आज भी इसी प्रतीक्षा में हैं की कब उनके घर में विद्युत प्रकाश ,पंखे की हवा या अन्य जीवनोपयोगी उपकरणों का प्रयोग हो सकेगा.
स्वतंत्रता प्राप्ति के 65 वर्ष पश्चात भी आज तक इन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति न हो पाने के कारणों पर विचार करें तो देश के कर्णधारों की त्रुटिपूर्ण नीतियां,(जिसके कारण तो नए संयंत्र लगते नहीं,उनकी कमजोर लाइन,) और इच्छा शक्ति की कमी तो प्रमुख कारक हैं ही,सर्वाधिक भ्रष्ट बिजली विभाग ,इसमें होने वाली चोरी और सीमातीत लापरवाही इसके लिए उत्तरदायी है.
लापरवाही का उदाहरण है, ये चित्र सड़क पर जलती लाइट्स का और ये समय है दोपहर का .
समस्या तो यह है कि हमारे यहाँ सबकुछ सत्ताधारी दल की मेहरबानी पर है,जो दल सत्ता में है,उनके चहेते उद्योगपतियों को बिजली चोरी के लिए सर्वप्रथम तो कोई हाथ नहीं लगा सकता और यदि किसी कारणवश ऐसा हो गया ,तो उसपर कार्यवाही लंबे समय के लिए अधर में लटका दी जाती है अतः एक एक उद्योग पति पर कार्यवाही होती है,जब सत्ता परिवर्तन होता है और इतने वो अपनी सेटिंग वहाँ भी बना लेते हैं.
ये तो रहे सरकारी कारक ,दोषी आम जनता स्वयं भी कम नहीं ,प्राय सभी के घरों में बिजली की जबर्दस्त बर्बादी है,लापरवाही के चलते अनावश्यक रूप से अपव्यय होता है. घरेलू बिजली के अतिरिक्त भी कुछ समय पूर्व स्ट्रीट लाइट्स के स्विच घरों के बाहर लगा दिए गए थे ,परन्तु बहुत ही कम जागरूक नागरिक ऐसे हैं,जो उनको आवश्यकता न होने पर या प्रात बंद कर दें. घरेलू क्षेत्र में बिजली की चोरी बहुत अधिक होती है.उपर्युक्त पक्षपात के विरुद्ध आवाज़ न उठाना भी बहुत बड़ा दोष है.चुनाव से पूर्व सभी दलों ने 20-24 घंटे सम्पूर्ण प्रदेश को विद्यत आपूर्ति का वायदा करते हैं,परन्तु ,वो कोरे वादे होते हैं जिनको पूर्ण करना उनके लिए प्राथमिकता कभी नहीं होती और जनता ये पूछने का कभी प्रयास नहीं करती कि सत्ताधारी दल के वादों का क्या हुआ जिनके नाम पर उनको सत्ता सौंपी गई थी.
इच्छा शक्ति का उदाहरण गुजरात है जो अपनी आवश्यकताएं तो पूर्ण कर ही रहा है,अन्य प्रदेशों को भी बिजली देने में समर्थ है.अभी ज्ञात हुआ है कि गुजरात में देश में सबसे अधिक विद्युत उत्पादन 30337 मेगा वाट तथा वायु ऊर्जा का सदुपयोग करते हुए 100.50 मेगावाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है. पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हुए बिना ऐसी नीतियों को अपनाया जाना उपयोगी सिद्ध हो सकता है.सौर ऊर्जा के संयंत्र अधिकाधिक रूप से स्थापित कर समस्या का समाधान संभव है, इससे प्रकार गोबर,गन्ने की खोयी आदि से बिजली बनाने को प्रोत्साहन देकर भी बिजली की कमी से साथ ही पूर्व से कार्य कर रहे बिजलीघरों का रख रखाव,जर्जर तारों को मज़बूत तारों से बदल उनका ध्यान रखा जाना. बहुत अधिक आवश्यक है.
उचित सरकारी नीतियां,जनता की अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागृति ही कुछ सीमा तक इस संकट से मुक्ति दिलाने में समर्थ हो सकती है.
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