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निर्लज्जता का चरम या स्पष्ठ्वादिता ?

chandravilla
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हमारे देश से भ्रष्टाचार मिटना निश्चित रूप से कोरी कल्पना है क्योंकि मेरे विचार से व्यवस्था के तीनों प्रधान अंग सत्तापक्ष,विपक्ष तथा जनता में बस सत्ताधारी ही अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं ,कण कण में व्याप्त भ्रष्टाचार इसका प्रमाण है. सत्तापक्ष  आवश्यकता से अधिक बुद्धिमान भी है, क्योंकि वो ये जानते हैं कि विपक्ष संगठित नहीं होगा , और यदि कुछ आशा दिखती भी है तो अपनी चालों से उसको एक सूत्र में बंधने नहीं दिया जाता. बिल्लियों की लड़ाई में तमाशा देखना सरकारको बहुत अच्छे तरह आता है . जनता का जहाँ तक प्रश्न है ,जनता की स्मरणशक्ति तो बहुत ही कमजोर है.इस रग को सरकार भली भांति जानती है ,इसीलिये तो ………………………

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कोई अंतर नहीं पड़ता ,जनता सब भूल जाती है. केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि कोयला वोइला रहने दो, अरे कल परसों की ही बात है बोफोर्स था, है ना याद, भूल गये हम. वैसा ही कोयले का है, थोड़े दिन हाथ काले, धोए कि दोबारा हाथ साफ़.
आप जानते हैं ये बयान हमारे गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का है ,ये स्पष्टवादिता है या निर्लज्जता की चरम सीमा.लेकिन मेरे विचार से उन्होंने कुछ अनुचित नहीं कहा क्योंकि हमारे राजनेता अपने मतदाताओं की रग भली भांति पहिचानते हैं कि जनता सबकुछ भुला देती है और यही कारण है,कि हमारा देश भ्रष्टाचारी देशों की सूची में शीर्ष पर पहुँचने के लिए कृतसंकल्प है.
देश में भ्रष्टाचार कैसे मिट सकता है ,जबकि भ्रष्टाचार रहित तो कोई कोना बचा ही नहीं है .महान आश्चर्य है कि आज एक असाध्य रोग भ्रष्टाचार से सभी पीड़ित हैं जो .राजनीति ही नहीं सभी क्षेत्रों की प्रधान समस्या है,जिसका उपचार भी बहुत दुष्कर बन चुका है. भ्रष्टाचार, संयोग है दो शब्दों का, भ्रष्ट+आचार अर्थात भ्रष्ट आचरण या अनैतिक आचरण. यद्यपि भ्रष्टाचार का अस्तित्व तो सर्वत्र और सदा ही रहा है.इतिहास , पौराणिक ग्रंथों के अनुसार , जब ये अनाचार ,पाप या भ्रष्टाचार सीमातीत हो गया तो पृथ्वी पर प्रभु को पुनः पुनः अवतार लेना पड़ा.,अंतर बस इतना कहा जा सकता है कि तब आटे में नमक से भी कम मात्रा में भ्रष्टाचार या इसके पर्यायवाची अनाचार ,अधर्म विद्यमान रहे होंगें , तो आज आटा तो है ही नहीं बस नमक रूपी भ्रष्टाचार का ही बोलबाला है.
घोटालों की यदि चर्चा करें तो देश में प्रतिदिन एक नया घोटाला सामने आ खड़ा होता है;वास्तविकता तो ये है कि जिस प्रकार किसी दवा की डोज़ लेते लेते शरीर आदि हो जाता है उसी प्रकार घटना की पुनः पुनः पुनरावृत्ति होने पर जनता को भी अंतर नहीं पड़ता. मुझको लगता भी नहीं कि किसी घोटाले या स्कैम से अब जनता की कुछ प्रतिक्रिया होती है.यदि अंतर पड़ता भी है तो बस 2-4 दिन जब तक वो मामला मीडिया की सुर्ख़ियों में रहता है.
इस तथ्य को हमारे राजनेता अच्छी तरह समझ चुके हैं यही कारण है कि आत्मा रहित इन लूटेरों पर कोई नियंत्रण नहीं लग पाता .देश का धन लूटना .विदेशी बैंकों में पहुँचाना ,और आवाज बुलंद करने वालों को कुछ झूठे सच्चे आरोपों में जकड कर चुप कर देना और जनता सर्वप्रथम तो चिंता करती ही नहीं और यदि कुछ सक्रियता दिखती भी है ,तो नेताओं के हाथ में देश में कभी आरक्षण तो कभी कोई नया तमाशा खड़ा कर उनका ध्यान भंग कर दिया जाता है.
कैसे आशा करें कि हमारा देश कभी विकसित देशों की कतार में खड़ा हो सकेगा.यूँ ही विकासशील या पिछड़े देश का बिल्ला हमारे साथ रहेगा,भुखमरी,निर्धनता,बेरोजगारी ,साक्षरता ,पेय जल ऊर्जा संकटों………….. आदि समस्याओं के चक्रव्यूह में घिरा हुआ.
देश का भविष्य जनता के हाथों में है क्योंकि जनता ही भ्रष्ट व्यवस्था को दण्डित कर सकती है.जनता ये कार्य तभी कर सकेगी जब एक संगठित ,ठोस विकल्प उसके समक्ष हो .
जनता में जागृति की लौ को प्रदीप्त रखने के लिए कुछ दृढ निश्चयी नेताओं का आगे आना जरूरी है,जो त्रस्त जनता का पथप्रदर्शन निरंतर करते रहें. इस संदर्भ में मुझे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के ये शब्द याद आ रहे हैं ,”कुछ भी हासिल करने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है ……………”.और आज के संदर्भ में यह कीमत है अपने कर्तव्यों या अधिकारों के प्रति जागरूकता और राजनैतिक दुश्चक्रों से स्वयं को बचाए रखना.
अतः अपनी स्मरण शक्ति को प्रबल रखते हुए नेताओं के भ्रम को तोडना अनिवार्य है

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