गणपति बप्पा मोरया (गणेश चतुर्थी पर )
(आप सभी को गणेशोत्सव मंगलमय हो.गणेश जी हमको ,हमारे नेताओं को सद्बुद्धि प्रदान करते हुए हम सभी के विघ्न दूर करें और मंगल करें)
त्यौहारों,पर्वों व आनन्द से पूर्ण उत्सवों की भूमि भारत में तो वर्ष पर्यंत देश के किसी न किसी कोने में इनकी छटा छाई रहती है.विविधतासम्पन्न हमारे देश में त्यौहारों को मनाने का स्वरूप थोडा बहुत स्थानीय रूप से भिन्न होता है,परन्तु सम्पूर्ण देश में ही उनका आनन्द लिया जा जाता है.जिस प्रकार उत्तर भारत में जन्माष्ठमी पर्व,कांवड मेला,दशहरा ,होली आदि पर्वों की धूम रहती है.आज हरितालिका तीज का उत्सव सुहागिन महिलाएं मना रही हैं ,कल अर्थात गणेश चतुर्थी से अब गणेशोत्सव का कार्यक्रम १० दिन तक चलेगा देश के विभिन्न भागों में..
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा “
मंगल करन विघ्न हरण गणेश जी का स्मरण सभी सनातनधर्म अनुयायी किसी भी शुभकार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व करते हैं.गणेश जी की आराधना से ही कोई कार्य प्रारम्भ किया जाता है.,तथा गणेश जी की आराधना किसी भी कार्य के निर्विघ्न सम्पन्न होने के लिए की जाती है.
गणेशोत्सव का आयोजन सम्पूर्ण देश में ही होता है,परन्तु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विख्यात है.सम्पूर्ण महाराष्ट्र में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेशोत्सव मनाया जाता है.विशेष रूप से मुम्बई ,नासिक ………. पुणे, जिसको महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है,विशेष उत्साह से मनता है.ऐसा नहीं की केवल महाराष्ट्र में ही यह उत्सव मनाया जाता है,आंध्रप्रदेश,कर्नाटक आदि दक्षिण भारतीय प्रदेशों में भी इसकी धूम रहती है.अब तो उत्तर भारत में भी गणेशोत्सव के आयोजन होने लगे हैं .
महाराष्ट्र में गणेशोत्सव मनाने की परम्परा का श्री गणेश तो इतिहास विख्यात राष्ट्रकूट,चालुक्य ,सातवाहन वंशीय राजाओं के समय में हो गया था वीर शिवाजी,की माता जीजाबाई ने इसको विधिवत स्वरूप प्रदान किया. , पेशवाओं के समय में यह उत्सव और भी उत्साह से मनाये जाने लगे .परन्तु गणेशोत्सव को एक रचनात्मक ,सकारात्मक रूप प्रदान किया परम आदरनीय लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी ने.
तिलक जी के समय में गणेशपूजा घर घर में प्रचलित थी परन्तु उन्होंने इसको सार्वजनिक कार्यक्रम का स्वरूप प्रदान किया.गणेशोत्सव को केवल धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित न बना कर जन समुदाय को परस्पर एकता के सूत्र में पिरोने का माध्यम बनाया.भगवान गणेश की सार्वजनिक पूजा की शुरूआत 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में की। उन्होंने गणेशोत्सव पर्व के माध्यम से विभिन्न प्रांतों, जाति, संस्कृति और भाषा-भाषी जनों को भारत की आजादी के लिए एकता के सूत्र में आबद्ध करने का प्रयास किया और अपने मकसद में वो काफी हद तक सफल भी रहे। वर्तमान में न केवल महाराष्ट्र में बल्कि अन्य प्रांतों में भी भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेशोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है। त्रिमूर्ती (लाला लाजपत राय,विपिनचंद्र पाल तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक )लाल,पाल,बाल में बाल के नाम से विख्यात तिलक ने गणेशोत्सव को धार्मिक कुरीतियाँ अस्पृश्यता के दोषों को दूर करने तथा ,शिक्षा के प्रचार प्रसार का माध्यम बनाया तथा उनका सबसे महत्पूर्ण योगदान रहा स्वाधीनता आन्दोलन में इन मंडलों के माध्यम से अलख जगाने में,जनजागृति उत्पन्न करने में.
स्वाधीनता संग्राम में कवि गोविन्द तथा वीर सावरकर ने मित्र मेला नाम से संस्था बनाई जो विशेष मराठी गीतों के माध्यम से महाराष्ट्र की जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति उत्पन्न करते थे,इन कार्यक्रमों में वीर सावरकर,तिलक ,के अतिरिक्त सुभाषचंद्र बोस ,सरोजिनी नायडू ,मदन मोहन मालवीय तथा अन्य महाराष्ट्रियन नेता सम्मिलित रहते थे,.अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने में इन कार्यक्रमों का महत्पूर्ण योगदान रहा. अंग्रेजी शासन की रिपोर्ट में इन मंडलों के कार्यक्रम पर चिंता जताई गयी .अंग्रेज जान गये की लोकमान्य तिलक द्वारा प्रारम्भ किये गये ये मंडल उनकी जड़ें खोद रहे हैं अतः उन्होंने विविध आरोपों में तिलक को बंदी भी बनाया .आज भी इन मंडलों का स्वरूप बहुत व्यापक है और आज सम्पूर्ण महाराष्ट्र में ५० हजार से भी अधिक गणेशोत्सव मंडल है,
महाराष्ट्र में ये १० दिन बहुत धूम धाम वाले होते हैं.कई मास पूर्व अधिकांश कारीगर इन मूर्तियों के निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर देते हैं,जो उनको रोजगार प्रदान करता है. अपने परिचितों से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थान स्थान पर गणपति स्थापना होती है,जहाँ रात्रि में विविध आयोजन होते हैं भीड़ जुटाने के लिए तथा अपनी लोकप्रियता तथा अपनी साख बढ़ाने के लिए फ़िल्मी कलाकारों का नृत्य व अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं..जितना भव्य पंडाल उतनी ही रौनक. मुम्बई में लाल बादशाह के नाम से गणेश जी का पंडाल तो आज लोकप्रियता के चरम पर है जहाँ मन्नत मानने के लिए पूरी पूरी रात लोग पंक्ति में अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं. शायद ही कोई फ़िल्मी स्टार ऐसा होगा जो अपनी उपस्थिति वहां दर्ज न कराता हो.इसके अतिरिक्त भी अनेकानेक भव्य पंडाल वहां लगाए जाते हैं.मुम्बई का सिद्धिविनायक मंदिर तो इस समय किसी भव्य तीर्थ का ही रूप ले लेता है. पुणे में दगडू शेठ के गणपति आदि विख्यात हैं.पुणे के चारों और स्थित अष्टविनायक के आठों मंदिरों तथा सभी मंदिरों ,सामाजिक संस्थाओं ,आवासीय सोसाईटीज द्वारा ,यहाँ तक कि .घर घर में भी गणपति स्थापित होते हैं. कहीं २-३ दिन के और कहीं अधिक अपनी सामर्थ्य व सुविधा के अनुसार. फ़िल्मी कलाकारों भी इस पर्व की महत्ता से भली भांति परिचित हैं अतः धर्म , जाति सम्प्रदाय सबको भुलाकर भी इन आयोजनों में भाग लेते हैं. राजस्थान में भी गणेश पूजा और स्थापना का कार्यक्रम जोरों शोरों से चलता है. विदेशों में भी गणपति स्थापना का आयोजन वहाँ के नियम कानूनों को ध्यान में रखते हुए उत्साहपूर्वक किया जाता है.लन्दन,अमेरिका,आस्ट्रेलिया तथा अन्य स्थानों पर जहाँ भारतीय संस्कृति को मानने वाले लोग विद्यमान है,iस पर्व का आयोजन करते हैं,मारीशस में तो इस पर्व की लोकप्रियता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वहाँ गणेश चतुर्थी को. सार्वजनिक अवकाश रहता है गणेश जी का पूर्ण स्वागत सत्कार,पूजा अर्चना कर इनको विसर्जित किया जाता है. घरों में स्थापित गणेश जी तो विसर्जित करने का समय अलग अलग होता है,परन्तु पंडालों में स्थापित गणपति का विसर्जन अनंत चतुर्दशी से ही प्रारम्भ होता है.
प्रारम्भ में एक पवित्र उद्देश्य को लेकर स्थापित इन मंडलों का स्वरूप भी अब विकृत हो रहा है. अधिकांश संगठनों का स्वरूप व्यवसायिक होने के साथ नकारात्मक प्रतिद्वंदिता पूर्ण हो गया है.इस सांस्कृतिक आयोजन को राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है,परिणाम स्वरूप काले कारनामे अब इनकी आड़ में होने लगे हैं.मर्डर ,रक्तपात तक हो जाते हैं.
इतनी मूतियों के विसर्जन से जल प्रदूषण की समस्या अपने विकराल रूप में पहुँच जाती है.विषैले रासायनिक रंगों व अन्य वस्तुओं से निर्मित ये मूर्तियाँ जल जंतुओं के लिए जीवन के लिए संकट बन जाती हैं .इसके अतिरिक्त भी विसर्जन के समय उमड़ी भीड़ के कारण यातायात की समस्या .ट्रेफिक जाम की समस्या होती है.
इतने बड़े आयोजनों में दोषों और अव्यवस्थाओं का होना कुछ आश्चर्य नहीं .इन समस्त दोषों के जनक भी हम हैं और सकारात्मक सोच रखते हुए,देश,समाज और पर्यावरण की चिंता करते हुए हम ही इन दोषों का हम ही निवारण भी कर सकते हैं अर्थात हमने ही रोग को जन्म दिया है और हम ही इसका अंत कर सकते हैं..जैसे की कुछ व्यवहारिक जानकारी से पता चला कि पुणे में व कुछ अन्य स्थानों पर महानगरपालिका की ओर से छोटे छोटे कृतिम तालाब बना दिए जाते हैं,वहीँ पर इनका विसर्जन करने की अनुमति होती है.कुछ संगठनों के प्रयास से उत्पन्न जागृति के कारण पर्यावरण के दृष्टिकोण से मित्र के रूप में मिटटी व प्राकृतिक रंगों से बनी मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं और इको फ्रेंडली मूर्तियां स्थापित होने लगी हैं.,जिससे जल प्रदूषण से बचा जा सके.इसी प्रकार जनता की जागृति शेष दोषों को भी दूर कर सकती है.
अंत में बुद्धि दायक मंगल कारक गणेश जी से प्रार्थना कि अज्ञान तथा अन्य कलुशों को दूर कर कल्याण करें.पर्व पर्व ही बने रहे विकृत राजनीति का अखाड़ा नहीं.
“गणपति बाप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ”
और साथ ही स्मरण व नमन लोकमान्य तिलक जी का जिन्होंने स्वाधीनता की अलख जगाने व समाज की कुरीतियाँ दूर करने का ये निराला ढंग हमें बताया.इसी मार्ग का अनुसरण करते हुए हम अपने देश से अन्धकार रूपी अज्ञान को मिटायें और ज्ञान की अलख जगा
( गत वर्ष भी गणेश चतुर्थी पर लिखा था,इस बार कुछ नयी जानकारी जो मुझको मिली उसमें सम्मिलित की है )
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