chandravilla
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रावण कुम्भकर्णी विशाल चतुरंगिनी सेना का
कहर धरा के ऋषि-मुनियों पर जब टूट रहा था,
हाहाकार,क्रंदन स्वर चहुँ ओर से गुंज रहा था
अनाचार से भारित यह भूमंडल भी डोल रहा था
पिनाक टंकार स्वर देवों ने अंबर तक गुंजायाथा
दिव्यशस्त्र चला असुरों का नाम निशाँ मिटायाथा
विजय घोष नाद किया सत्य ध्वजा फहरायाथा.
पुनः शान्ति छायी धरा हर मन संतोष आया था.
आज पुनः कलिकाल के दानवों ने फन फैलायाहै,
प्रदूषित कर डाले भूमंडल को ऐसा विष फैलाया है.
इनके घृणित कृत्य देखो धरा संतुलन डगमगाया है.
पीड़ित मानव मूर्छित सा है निज साहस गंवाया है.
फूंक शंख,गदा,धनुष बल या फिर चक्र घुमाना है,
मूर्छित मानव को भगवन फिरसे होश में लाना है,
पुकार रही यह धरा प्रभु चमत्कार अब दिखलाना है,
अवतार प्रभु जो राहत दे,अवतरित उस रूप आना है,
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